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सरकार के सहयोग के अभाव में दम तोड़ रहा है विश्व प्रसिद्ध “कुचाई सिल्क”

Tez Samachar by Tez Samachar
March 9, 2018
in Featured, प्रदेश
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सरकार के सहयोग के अभाव में दम तोड़ रहा है विश्व प्रसिद्ध “कुचाई सिल्क”
विश्व प्रसिद्ध झारखंड के कुचाई सिल्क की खेती करने वाले किसानो की बदहाली को प्रस्तुत करती शशि भूषण की विडियो सहित एक ज़मीनी रिपोर्ट …

 

जमशेदपुर ( शशि भूषण तेज़समाचार ब्यूरो ) – आज पूरे देश में झारखंड के कुचाई सिल्क की एक अलग पहचान है। झारखंड में मुख्य रूप से कुचाई  सिल्क के लिए सरायकेला-खरसावां प्रसिद्ध है। कभी कुचाई सिल्क की खेती करने वाले हज़ारों किसान हुआ करते थे ।लेकिन उत्पाद से अच्छा पैसा न बनने के कारण खेती से जुड़े किसानो की हालत दयनीय होती जा रही है । जिसके चलते अब दिन ब दिन कुचाई सिल्क की खेती से किसान मुहं मोड़ रहा है ।

यहाँ के किसानो की शिकायत है कि  विश्व प्रसिद्ध कुचाई सिल्क को बचाने के लिए सरकार की ओर से कोई सहायता यां पहल नहीं की जा रही है । अगर यही आलम रहा तो यहाँ का कर्जे में डूब रहा किसान महाराष्ट्र की तर्ज़ पर आत्महत्या के लिए मजबूर हो जायेगा ।

विदित हो कि वर्ष 1905 को स्वदेशी आंदोलन शुरु किया गया था । और वर्ष  2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 7 अगस्त को पहले हस्तकरघा दिवस की शुरुआत की गई थी । तब जा कर किसानो को लगा था कि अब झारखंड के कुचाई सिल्क को एक बहुत बड़ा सहारा मिल सकेगा । इसके विपरीत यहाँ का कुचाई किसान अपनी बदहाली के आंसूं रोने व आजीविका के लिए अन्य रोज़गार तलाशने पर मजबूर हो गया है ।

कुचाई सिल्क के निर्माण के लिए सबसे पहले पेड़ से समय पर कुकुन को तोड़कर बाजार में लाया जाता हैजहां इसकी गुणवत्ता के आधार पर ग्रेडिंग कर रेट तय किया जाता है।इसके बाद यह कच्चा माल कारीगरों के पास पहुंचता है। एक प्रक्रिया के तहत बर्तन में पानी में इसे उबाला जाता है । जिससे इसके धागे इससे अलग होने लगते हैं। इसके बाद कारीगरों द्वारा बारीकी से इन धागों को निकाला जाता है और रेशम का धागा तैयार किया जाता है । तैयार धागों से इच्छा के अनुसार कपड़ों का निर्माण किया जाता है । राज्य के कई हिस्सों में रेशम के धागों और कपड़ों का निर्माण होता है ।

सरायकेला-खरसांवा गाँव ने  कुचाई रेशम वस्त्र उत्पादन में कुछ हटकर अपनी पहचान बनाई है । आज राज्य में बड़ी संख्या में महिलाएं इस कार्य से जुड़ी हुई हैं। किन्तु यहां कार्यरत महिलाएं 8 से 10 घंटे मेहनत करती हैं और बदले में 1500 से 2000 रूपया प्रति माह की आमद हो पाती है ।

समय रहते सरकार, स्वयंसेवी संगठन यदि न चेते तो विश्व प्रसिद्ध कुचाई सिल्क झारखंड ही नहीं बल्कि अपने अस्तित्व से भी खो जायेगा ।

Tags: # कुचाई सिल्कझारखंड
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