बेंगलुरु (तेजसमाचार प्रतिनिधि ) – कर्नाटक में सरकार बनाने के इंतजार में बैठी बीजेपी और कांग्रेस, जेडीएस को राज्यपाल वजुभाई के फैसले का इंतजार है। राज्य में विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ ऐसे आए हैं कि कोई भी पार्टी अकेले सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं है। राज्य में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है । हालांकी दोनों पक्षों की ओर से दावा किया जा रहा है, ऐसे में फैसला अब राज्यपाल को अपने विवेक के आधार पर करना है। राज्यपाल वजुभाई आर. वाला नरेंद्र मोदी के सबसे वफादार लोगों में से एक हैं। संघ के साथ 57 वर्षों तक जुड़े रहने वाले वजुभाई जनसंघ के संस्थापकों में से एक हैं। वह इमर्जेंसी के दौरान वह 11 महीने तक जेल में रहे। गुजरात सरकार में वित्त मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे वजुभाई ने नरेंद्र मोदी को विधानसभा पहुंचाने के लिए खुद की सीट भी छोड़ दी थी। वर्ष 2014 में कर्नाटक का राज्यपाल बनने से पहले वजुभाई लगातार सात चुनाव जीत चुके थे और उन्होंने रिकॉर्ड 18 बार गुजरात सरकार का बजट पेश किया था ।
विदित हो कि कर्नाटक की 224 सीटों में 222 के नतीजे घोषित हो गए हैं और बीजेपी को 104, कांग्रेस को 78, जेडीएस गठबंधन को 38 और अन्य को दो सीटें मिली हैं। ऐसे में कोई भी पार्टी बहुमत के जादुई आंकड़े 112 को नहीं छू सकी है। हालांकि, कांग्रेस ने जेडीएस के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री प्रॉजेक्ट करके सरकार बनाने का प्रबल दावा पेश किया है। दूसरी तरफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी ने भी बहुमत से आठ सीटें कम होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा पेश किया है। ऐसे में राज्यपाल के सामने भी अच्छी-खासी चुनौती उत्पन्न हो गई है।
वजुभाई और मोदी के बीच रिश्ते कितने मजबूत हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मोदी के लिए वजुभाई ने अपनी सीट खाली कर दी थी, जिससे जनवरी 2002 में उपचुनाव हो सके। उस समय मोदी गुजरात से अपना पहला चुनाव लड़ने जा रहे थे। वजुभाई वाला उस समय केशुभाई पटेल की कैबिनेट में मंत्री थे। राजकोट-2 सीट जो पटेलों का गढ़ थी, वहां उन्होंने मोदी की बड़ी जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। अगले विधानसभा चुनावों में मोदी ने मणिनगर से चुनाव लड़ा और वजुभाई वाला को वापस अपनी सीट वापस मिल गई।
एक समय ऐसी अफवाह थी कि उन्होंने हिंदी भाषी राज्य में खुद को भेजने की इच्छा जताई थी। कहा जा रहा था कि वह आनंदीबेन को एमपी का गवर्नर बनाए जाने के बाद नाराज थे। बता दें कि वह बीजेपी के राजकोट के पहले मेयर थे। उन दिनों वह बीजेपी को फंडिंग करते थे, जो उस समय गुजरात में सत्ता में नहीं थी। 1980 के दशक में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले सौराष्ट्र में बीजेपी को बड़ी ताकत बनाने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।