नई दिल्ली ( तेजसमाचार प्रतिनिधि ) – सोमवार को देश की सबसे बड़ी अदालत ‘सर्वोच्च न्यायालय’ जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 35A पर अपना फैसला सुनाएगी. जम्मू कश्मीर की राजनीति से जुड़े इस अहम फैसले को लेकर कश्मीर में गहमागहमी का माहौल बन गया है. अलगाववादी ताकतें अनुच्छेद 35A पर आने वाले फैसले को लेकर काफी अस्वस्थ दिखाई दे रहीं हैं. हुर्रियत कांफ्रेंस ने चेतावनी दी है कि अगर फैसला उनके खिलाफ आया तो घाटी में बगावत की स्थिति बन जाएगी. इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने भी अनुच्छेद 35A पर अपना रुख रखते हुए कहा था कि इस प्रावधान को हटाया गया तो घाटी की जनता विद्रोह कर देगी.
क्या है अनुच्छेद 35-A –
अनुच्छेद 35-A, की मूल भावना जम्मू-कश्मीर के भारत के अंग बनने से पहले के वहां के शासक महाराज हरि सिंह द्वारा लाए गए एक कानून से लिया गया है. इस में हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ बाहर से आने वालों के अधिकारों का जिक्र किया था. बाद में पाकिस्तानी कबीलों के आक्रमण के बाद हरि सिंह ने भारत में विलय की घोषणा की.
विलय के बाद जम्मू-कश्मीर की कमान शेख अब्दुल्ला के हाथों आ गई, उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से घाटी के लिए विशेष प्रावधानों की बात की और 370 धारा संविधान में शामिल किया गया जो जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है.
1952 में दोनों नेता के बीच हुए करार के बाद राष्ट्रपति के आदेश पर जम्मू कश्मीर के हित में संविधान में कुछ और प्रावधान शामिल किए गए. अनुच्छेद 35-A, भी इन्ही में से एक था. बहुत कम लोगों को पता है कि अनुच्छेद 35-A, धारा 370 का ही हिस्सा है.
1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बना. इसमें भी स्थानीय नागरिकों को लेकर महाराजा हरि सिंह की परिभाषा को ही स्वीकार किया गया. यानी जो व्यक्ति 14 मई 1954 को या उससे पहले 10 वर्षों से राज्य का नागरिक रहा हो और उसने वहां संपत्ती हासिल की हो वही वहां का नागरिक माना जाएगा. इताना ही नहीं यदि यहां की स्थानीय लड़की किसी बाहरी आदमी से शादी कर लेती है तो उसे संपत्ती से हाथ धोना पड़ेगा.
अनुच्छेद 35-A के अनुसार राज्य के बाहर से आए लोगों को यहां स्थायी निवास की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही उन्हें यहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी करने वजीफा या अन्य रियायत पाने का अधिकार भी नहीं है.
इस धारा के लागू होने के कुछ दिनों बाद ही इसे हटाये जाने की मांग की जाने लगी. सबसे पहले यह दलील दी जा रही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया है, इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए.
दूसरी तरफ, यह भी दलील दिया जा रहा है कि देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर में आए. लेकिन साजिश के तहत अनुच्छेद 35 के हवाले इन शरणार्थियों को निवासी प्रमाण पत्र से वंचित कर दिया गया. इनमें 85 फीसदी पिछड़े और दलित समुदाय से हैं. स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इस अनुच्छेद की आड़ में सरकार कश्मीर में विवाह करने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ भी भेदभाव किया जाता है.
अनुच्छेद 35-A की आड़ में हो रहे भेदभाव को देखते हुए लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी गई थी कि इस अनुच्छेद का हवाला दे सरकार लोगों को संविधान से प्रदत्त मूल अधिकारों का उल्लंघन किया है. अतः सुप्रीम कोर्ट को इसे तुरत खारिज कर देना चाहिए.
अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू कश्मीर विधानसभा के स्थायी निवासियों को पारिभाषित करता है. वर्ष 1954 में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा एक आदेश पारित करते हुए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए को जोड़ा गया था, जिसके तहत राज्य विधायिका को यह अधिकार दिया गया कि वो कोई भी कानून बना सकती है. इन अनुच्छेद के तहत राज्य की विधायिका उन कानूनों को अन्य राज्यों के निवासियों के साथ समानता का अधिकार और संविधान द्वारा प्राप्त किसी भी अन्य अधिकार के उल्लंघन के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है.
1947 का बंटवारा साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ था और उसी समय से पाक के हिन्दू जो कश्मीर आये उनको आज तक वो अधिकार नहीं मिले , जिसके वो हकदार थे. उन्होंने कहा कि भारत का नेतृत्व शुरु से ही हमें गुमराह करता रहा और संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया जिनकी वजह से जम्मू कश्मीर के शरणार्थी गुलामी की जिन्दगी जी रहे हैं. वह देश के प्रधानमंत्री को चुन सकते हैं और यहाँ तक कि देश की राजनीति का हिस्सा भी बन सकते हैं , परंतु राज्य के किसी भी चुनाव में वोट नहीं दे सकते और न ही किसी चुनाव में भाग ले सकते हैं. मतलब कि वह देश के नागरिक तो हैं पर जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक नहीं हैं.
35A ने वाल्मिकी समाज को बंधुआ मजदूर बनाकर रख दिया है. आज वाल्मिकी समाज का भविष्य सिर्फ और सिर्फ सफाई कर्मचारी बनने तक सीमित हो गया है. वाल्मिकी समाज जम्मू-कश्मीर के ऐसे वंचित हैं , जिन्हें दलित का प्रमाण-पत्र तक नहीं मिला. इससे ज्यादा शर्मिंदगी की बात और क्या होगी कि आजाद देश में रहकर वह आज भी आजाद नहीं हैं. जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक विसंगतियों ने हमारे साथ भद्दा मजाक किया है. वाल्मिकी समाज के बच्चे चाहे कितना भी पढ़ लें वो कोई भी सरकारी नौकरी नहीं कर सकते , न ही वो किसी व्यावसायिक कोर्स में दाखिला ले सकते हैं.
इस धारा 35A के अनुसार अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसकी स्थायी निवासी प्रमाण भी रद्द हो जाता है. साथ ही उसके बच्चों के भी अधिकार समाप्त हो जाते हैं और उन्हें जम्मू-कश्मीर के सविंधान में दिया कोई भी अधिकार नहीं मिलता.
इस धारा 35A के कारण गोरखा समाज के अधिकारों का भी हनन हो रहा है. पीआरसी न होने की वजह से उनके बच्चों को चौकीदारी के अलावा कोई नौकरी नहीं मिल सकती. वह इस राज्य में कोई जमीन नहीं खरीद सकते.
विशेषज्ञों का कहना है कि अनुच्छेद 35A भारतीय सविंधान के साथ एक धोखा है. बिना संसद में लाए कोई अनुच्छेद कैसे पास हो सकता है , ऐसा धोखा 1954 में हुआ जिसका भुगतान जम्मू-कश्मीर के पीड़ित आज तक कर रहे हैं.