भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद फिर से प्रचलित हो रही है. न सिर्फ देश में, बल्कि विदेश में भी इसकी मांग बढ़ रही है. वर्तमान केंद्र सरकार भी इसके प्रचार-प्रसार में सक्रियता दिखा रही है. राजधानी नई दिल्ली में आयुर्वेद चिकित्सा पर आधारित एम्स की स्थापना इस दिशा में एक बड़ा कदम है.
आयुर्वेद की बढ़ती मांग को देखते हुए कई बड़ी कंपनियां इस कारोबार में उतर आई है और बेहतर पैकेजिंग और मार्केटिंग के बूते अंग्रेजी दवा कंपनियों को मात देने लगी है. इसके बावजूद जंगलों से जड़ी-बूटी लाकर आयुर्वेद की दवा तैयार करनेवाले गांव के वैद्यों की बात ही कुछ और है. अपने पूर्वजों से चिकित्सा का ज्ञान लेकर ये वैद्य आज भी सामान्य से लेकर असाध्य रोगों तक के मरीजों की उम्मीद हैं.
– दूर-दूर तक है वैद्य वकील मरांडी की ख्याती
झारखंड के देवघर के करौं प्रखंड स्थित मोहलीडीह गांव में रहनेवाले वैद्य वकील मरांडी भी ऐसे ही ग्रामीण चिकित्सक हैं जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है. वकील मरांडी के चिकित्सीय ज्ञान का ही नतीजा है कि प्रखंड मुख्यालय से लगभग चार किमी दूर इस अदिवासी बहुल गांव की ख्याति झारखंड के गिरिडीह, दुमका, बोकारो, देवघर समेत बंगाल व बिहार तक फैली हुई है. जड़ी-बूटी के सहारे चिकित्सक वकील मरांडी कई रोगों का इलाज करते हैं. ऐसे तो यहां सप्ताह के प्रत्येक दिन मरीजों का इलाज किया जाता है. लेकिन, बुधवार व रविवार को यहां विशेष भीड़ रहती है. इन दो दिनों में लगभग 300 मरीजों का इलाज किया जाता है. सहायक ओबिसर मरांडी, ज्ञानेश्वर मरांडी, साहेब टुडू, छोटेलाल की मदद से वकील लोगों का इलाज करते हैं.
– परंपरागत हुनर के धनी
चिकित्सक वकील मरांडी ने कहा कि यह ज्ञान उन्हें दादा स्व. मेघू मरांडी, पिता सुकल मरांडी व चाचा सुजन मरांडी से मिला है. बचपन से दोनों को जड़ी-बूटी से मरीजों को इलाज करते देखा करता था. देखते-देखते थोड़ी जानकारी हासिल कर ली.
1976-77 में रानी मंदाकिनी उच्च विद्यालय करौं से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद से मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया. बाद में उन्होंने मधुपुर, कोलकाता व रांची से आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रशिक्षण भी लिया. वकील ने बताया कि अब तक आधा दर्जन कैंसर मरीजों का इलाज कर चुके हुए हैं. यहां हड्डी रोग के मरीज सबसे अधिक इलाज के लिए पहुंचते है. गठिया, वात, पथरी, बवासीर, मधुमेह आदि का इलाज वह 30 वर्षों से सफलता से कर रहे हैं. बताया कि यहां वैसे मरीज यहां आते हैं जो बड़े-बड़े व नामी-गिरामी अस्पतालों में इलाज कराकर थक चुके हैं.
– आयुर्वेदिक वनस्पतियों के लिए जंगलों को बचना होगा
वकील मरांडी का कहना है कि क्षेत्र में जंगल का अस्तित्व खत्म हो जाने से जड़ी बूटी खोजने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है. इसके लिए दुमका जाना होता है. अंग्रेजी दवा के प्रयोग से साइड इफेक्ट की संभावना रहती है. कारण यह रासायनिक तत्वों से बनी होती है. लेकिन जड़ी-बूटी से तैयार दवा के सेवन से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. जड़ी-बूटी से तैयार दवा में काफी ताकत होती है. बताया कि हड्डी को मात्र 24 घंटे में जोड़ा जा सकता है. मधुमेह व पथरी के मरीजों को तीन माह में ठीक करने का दावा किया है.
– मरीज के चेहरे की मुस्कान देती है संतोष
इलाज के नाम पर वकील मात्र दस रुपये फीस लेते हैं. इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक दवा लेने पर मरीजों को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. उनका मानना है कि गरीबों की सेवा करने से परम सुख प्राप्त होता है.
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