नई दिल्ली – हे भगवान् आज फिर रावण जला दिया जायेगा !! बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतिक के रूप में. बिना किसी आत्म्परिवर्तन के हम स्वयं ही आंकलन कर लेंगे की हम खुद बहुत अच्छे हैं और समाज की सारी अच्छाईयां हमारे घर में पानी भरती हैं. रावण सदियों से बुरा था, बुरा ही रहेगा. हम सभी कुरीतियों से परे साफ़ सुलझे आदर्शवादी इंसान हैं, हमें पुरा अधिकार है रावण पर रौष प्रकट करने का . हमें अधिकार है रावण को जलाने का.. खैर होना भी चाहिए.. दीपक तले अँधेरे को कौन देखता है. तम्बाकू हानिकारक है भला इस चेतावनी को कौन पढता है. अब सवाल यह उठता है की रावण में ऐसा क्या था जो आज हमारे समाज में मोजूद नहीं है, फिर अकेला उसे ही जलाने की जिद्द क्यों ?? आधा गिलास भरा को सकारात्मकता व आधा गिलास खाली को नकारात्मक के चश्मे से देख कर भी हम रावण की नकारात्मकता देखना ही पसंद करेंगे. विधान ही ऐसा बना दिया गया है . बरहाल रावण जलाने की पुरातन परम्पराओं का निर्वाह करते हुए एक बात यह भी समझ लें की रावण उच्च कोटी का विद्वान भी था, इसी लिए प्रभु श्रीराम ने रावण वध के उपरान्त अनुज लक्ष्मण को रावण के पास जाकर सीख लेने का आदेश दिया था. जहाँ एक और देश भर में रावण दहन होगा वहीँ रावण का पूजन भी इस देश की संस्कृति में होता है, उसकी विद्द्वता, ज्ञान , सयंम के लिए. देश के चर्चित दामिनी काण्ड के बाड सोशल मीडिया पर एक सन्देश घूम रहा था की काश रावण मेरा भाई होता जो अपनी बहन सुपनखा के अपमान का बदला तो लेता.. सच यह समाज में फैली क्रूरता, छल- कपट, कुरीतियों के प्रति व्याकुलता है, असहायता ही है की हम सुरक्षित नहीं मान पाते खुदको ! खैर हम बात कर रहे थे रावण के विद्द्वान द्रष्टिकोण की. इलाहाबाद में स्थित ऋषि भारद्वाज के मंदिर से प्रतिवर्ष विजयादशमी लंकाधिपति रावण की शाही सवारी निकाली जाती है . इतना ही नहीं प्राचीन शिव मंदिर में महाराजा रावण की आरती और पूजा-अर्चना के साथ रावण बारात के नाम से प्रसिद्ध अनूठी शोभा यात्रा में दशानन रावण को हाथी पर रखे चांदी के विशालकाय हौदे पर बैठा कर नगर में शोभायात्रा के रूप में निकाला जाता है . शोभायात्रा में अलग अलग रथों पर रावण की पत्नी महारानी मंदोदरी व परिवार के दूसरे लोग विराजमान होते हैं . विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के उदगम स्थल माने जाने वाले, ऋषि भारद्वाज की नगरी इलाहाबाद में महाराजा रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है. विशेष बात यह है की विजयादशमी पर रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. और रावनमय वातावरण में दशहरा उत्सव शुरू होने पर यहाँ राम का नाम लेने वाले का नाक-कान काटकर शीश पिलाने का प्रतीकात्मक नारा भी लगाया जाता है. यही खासियत है इस देश की विविधता में, तभी तो भारत को सम्पूर्ण देश कहा जाता है. कहते हैं रावण जन्म से एक ऋषि पुत्र था, रावण का नाम दशग्रीव था, उस समय राक्षसों के राजा को रावण उपाधि से अलंकृत किया जाता था. भगवान विष्णु द्वारा राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर राक्षसों के प्रमुख राजा सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी को परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा से विवाह करने का आदेश दिया. विवाह उपरांत बच्चा पैदा होने पर एक ब्रह्मवादी महात्मा महर्षि विश्रवा का पुत्र होने के बाद भी अपनी राक्षसी माता कैकसी की प्रेरणा से रावण राक्षस बन गया. रावण स्वरुप को वर्णित करते समय उसे दस सिर वाला असाधारण व्यक्तित्व, छह दर्शन और चार वेदों का ज्ञाता कहा जाता है. महर्षि विश्रवा के गुणधर्मों के चलते रावण एक प्रकांड पंडित था, वह रसायन और भौतिक शास्त्र का अलौकिक ज्ञाता था, उसे धरती पर जन्मे प्रथम वैज्ञानिक के रूप में भी जाना जाता है . कुबेर से पाये पुष्पक विमान में भी उसने कई प्रयोग किये थे . संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता का बखान किया गया है, वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था. रावण ने अपने संगीत प्रेम को दर्शाते हुए एक वाद्य यंत्र भी बनाया था, जो आज के वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है. रावण भगवान शंकर का अनन्य भक्त था, रावन चाहता था कि संसार में वह ही शिव का सबसे बड़ा भक्त कहलाये. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसलिए रावन ने भगवान शिव के निवास स्थल कैलाश पर्वत को उठा कर अपनी लंका में ले जाने की चेष्टा की उसने अपनी पूरी शक्ति से पर्वत उठा लिया. किन्तु शिव जी नहीं चाहते थे कि उनके भक्तों में कोई तुलना की जाए इसलिए वे रावण के हठ से क्रुद्ध हो गए और कैलाश को अपने अंगूठे से दबा दिया, रावण उसमें दब जाने ही वाला था कि उसने तुरंत क्षमा याचना करते हुए एक अति सुंदर काव्य रचना की , जिसमें शिवजी के तांडव नृत्य का वर्णन किया गया है. वह अलौकिक काव्य रचना आज “शिव तांडव स्रोत्त” के नाम से जानी जाती है. यहाँ पर रावण के इस स्वरुप से स्पष्ट होता है की रावण कुशल नर्तक भी था, रावण एक महान कवि भी था. रावण ज्योतिष विद्या में व तीक्ष्ण बुद्धि वाला माना गया है. रावण की विद्वता से प्रभावित होकर भगवान शंकर ने स्वयम अपने घर की वास्तुशांति हेतु आचार्य पंडित के रूप में दशानन को निमंत्रण दिया था. वेदों की ऋचाओं पर अनुसंधान कर रावण ने विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रयोग प्रस्तुत करने की भी बात कही जाती है. वह आयुर्वेद की जानकारी भी रखता था. पौराणिक कथाओं में तो ऐसा भी कहा जाता है की लंका पर पुल बाँधने के बाद , सेतु पूजन हेतु श्रीराम ने रामेश्वरम महादेव की स्थापना की. तब प्रकांड ज्ञानवान जामवंत ने प्रभु राम को सुझाया कि शिवलिंग की स्थापना किसी बड़े पंडित से पूजन के साथ करवाई जाए. इस पर प्रभ राम ने रावण को आमंत्रित किया और रावण सहर्ष पूजन हेतु आया. किन्तु पूजन के समय रावण ने कहा : हे राम आप विवाहित हैं, और विवाहित पुरुष कभी पत्नी के बिना कोई शुभ कार्य नहीं कर सकते, यह शास्त्रोचित मर्यादा है. इस लिए पूजन के समय आपकी भार्या का साथ होना आवश्यक है. प्रभु राम की विवशता देख रावण ने अपने तेज़ व शिव वरदान से सीता माता को पूजन में प्रकट किया और पूजन सम्पन्न किया. हालांकि किन्ही कथाओं में प्रभु राम की इस पूजा में माता सीता की जगह साथ में सुपारी रखने का उल्लेख भी मिलता है .
कहने का तात्पर्य यह है की यदि जलाना है तो हम अपने भीतर की बुराइओं को जलाएं, अपने मन के भीतर बसे रावण को मारें, साथ ही रावण की इन अच्छाईओं को ग्रहण करें. रावण बुराई का प्रतिक हो सकता है, लेकिन आज समाज की जो दुर्दशा है उसमें यह तो बताओ कौन रावण नहीं है?? समाज का पुरुष वर्ग हो यां महिला वर्ग सभी तो अपने भीतर कुरीतियों के रावण को बसाए बैठे हैं. बात प्रारंभ करते ही संशय व्यक्त किया था की.. हे भगवान् आज फिर रावन जला दिया जायेगा !! शायद यही सच है झूठे, अहंकारित समाज में अपनी कुरीतियों-बुराइयों को ढक कर दुसरे की बुराई को उजागर करते हुए रावण जलाने की परंपरा का निर्वाह कर दिया जाएगा..