देश की एकता अखण्डता को एक सूत्र में पिरोये राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के प्रति शायद ही कोई होगा जिसको गौरव महसूस न हो. राष्ट्रगान का 27 दिसंबर से खास नाता है. दरअसल , 27 दिसंबर 1911 को पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में राष्ट्रगान गाया गया था. हालांकि इसे साल 1905 में बंगाली में लिखा गया था. जबकि जन-गण-मन को 24 जनवरी 1950 में भारत के राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया था.
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म सात मई 1861 को तत्कालीन कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था. कहते हैं कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ साल की उम्र में ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं.उनका लिखा ‘जन गण मन’ पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले गाया गया था. अमृत बाज़ार पत्रिका’ में यह बात साफ़ तरीके से अगले दिन छापी गई.
पत्रिका में कहा गया कि कांग्रेसी जलसे में दिन की शुरुआत गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित एक प्रार्थना से की गई. ‘बंगाली’ नामक अख़बार में ख़बर आई कि दिन की शुरुआत गुरुदेव द्वारा रचित एक देशभक्ति गीत से हुई. टैगोर का यह गाना संस्कृतनिष्ठ बंग-भाषा में था, यह बात ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ नामक अख़बार में भी छपी.
राष्ट्रगान को पूरा गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है जबकि इसके संस्करण को चलाने की अवधि लगभग 20 सेकंड है. राष्ट्रगान में 5 पद हैं. रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान को ना केवल लिखा बल्कि उन्होंने इसे गाया भी. इसे आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले मदनपिल्लै में गाया गया था.
भारत का राष्ट्र गान अनेक अवसरों पर बजाया या गाया जाता है. राष्ट्र गान के सही संस्करण के बारे में समय समय पर अनुदेश जारी किए गए हैं, इनमें वे अवसर जिन पर इसे बजाया या गाया जाना चाहिए और इन अवसरों पर उचित गौरव का पालन करने के लिए राष्ट्र गान को सम्मान देने की आवश्यकता के बारे में बताया जाता है. सामान्य सूचना और मार्गदर्शन के लिए इस सूचना पत्र में इन अनुदेशों का सारांश निहित किया गया है.