जामनेर (तेज समाचार प्रतिनिधि). निकाय चुनाव के बाद से शहर में सार्वजनिक पेयजल वितरण व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गयी है. पूरे गांव में नयी पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा होने के बाद मंत्री महाजन ने इस योजना का लोकार्पण किया था. इस बात को कई महीने गुजर चुके है. जिसके बाद प्रशासन ने जनता को फील्टर का शुद्ध पानी मुहैया कराने की हामी भरी थी. लेकिन अब तक न फील्टर प्लांट शुरू हो पाया है और न ही नयी जल वितरण लाइन को उच्च क्षमता से संचालित किया जा सका है.
आज नगर में करीब 5 दिनों के अंतराल से पेयजल आपूर्ति की जा रही है, उसमें भी कई इलाकों से नागरिकों की ये भी शिकायतें आ रही है कि नलकों से आ रहा पीने का पानी बेहद दूषित है, जिसके पीने से पेट से जुडी कई बीमारियां सिर उठाने लगी है. परिणाम स्वरूप अस्पतालों के बेड्स मरीजों से पटने लगे है. आम चुनाव के नतीजों मे एक तरफा सत्तासीन भाजपा के नवनियुक्त जनसेवक गली मोहल्लों में जनता के बीच जाकर अपनी जीत को इस कदर भुनाने मे लगे है कि मानो उनकी जीत की उपलब्धि किसी चमत्कार से कम न हो. पेयजल से जुड़े पूरे मामले को अब आम लोग अलग ही तर्क से जोड़ कर देख रहे है, जो सीधे डॉक्टर लॉबी से प्रशासन के कथित हितसंरक्षण की ओर इशारा करते नहीं चूकते हैं.
नगर को पानी मुहैया कराते वाघुर डैम में करीब 48 प्रतिशत जलभंडार मौजूद है, जिसमें निगम के लिये 10 फीसदी पेयजल आरक्षित किया गया है. जिसमें से कुछ ही खर्च किया गया है. बावजूद इसके अप्रैल के मध्य में ही लोग पानी के लिये तरस रहे हैं. वहीं शहर में एक तबका ऐसा भी है जिनके पुराने नलके टैक्स भुगतान के अभाव से निगम द्वारा सख्ती से बंद कराये जा चुके हैं. कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक इस मामले मे निगम प्रशासन द्वारा उच्चतम न्यायालय के उस आदेश को कुडेदान मे फेंका गया है, जिसमें कहा गया है कि पेयजल प्रत्येक जीव का हक है और कोई भी संस्था उसे इस हक से वंचित नहीं रख सकती है.
नलकों के अभाव से सैकडों टैक्स पेयर्स टैंकर से पानी मंगवाने के लिये मजबूर है. चुनाव नतीजों में सूफड़ा साफ होने के बाद अवसाद का शिकार बने विपक्ष के कारण आम जनता की समस्याओ के लिये आवाज बुलंद करने के लिये कोई विकल्प दिखायी नही पड़ रहा हैं. बहरहाल बढती जलकिल्लत और उसमें भी दूषित वितरण पर आंख मुंदे बैठे प्रशासन से आम जनता ने तत्काल उपायों की मांग की जा रही है.