पुणे (तेज समाचार डेस्क). निःस्वार्थ सेवा और कर्तव्य पथ पर चलते हुए सीमा पर विकलांग हुए सैनिकों के बलिदान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में भारतीय सेना ने वर्ष 2018 को सीमा पर अक्षम सैनिकों का वर्ष घोषित किया. इसी के सम्मान में गुरुवार को बॉम्बे इंजीनियरिंग समूह (बीईजी) और केंद्र, किर्की, पुणे मुख्यालय दक्षिणी कमांड द्वारा ‘सम्मान समरोह’ का जश्न मनाया गया. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थल सेना नायक बिपिन रावत रहे.
समारोह बॉम्बे इंजीनियरिंग समूह (बीईजी) और केंद्र के युद्ध स्मारक में एक पुष्पांजलि समारोह के साथ शुरू हुआ, लेफ्टिनेंट जनरल एसके सैनी, किर्क के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, लेफ्टिनेंट जनरल एसके प्रशसार और करीब 600 विकलांग सैनिकों सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे. इस कार्यक्रम में भारत के पहले पैरालंम्पिक्स स्वर्ण पदक विजेता और पद्मश्री पुरस्कार विजेता नायक मुरलीकांत पेटकर (सेवानिवृत्त), भारत के युद्ध घायल फाउंडेशन के अध्यक्ष, लेफ्टिनेंट जनरल विजय ओबेरॉय मौजूद रहे. सभी विकलांग सैनिकों का स्वागत करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल एस के सैनी ने दक्षिणी कमांड क्षेत्र के सभी विकलांग सैनिकों का प्रोत्साहन करते हुए उनके जज्बे की प्रशंसा की.
इस अवसर पर मौजूद सभी विकलांग सैनिकों को संबोधित करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि सेना को अपने सैनिकों पर गर्व है और आश्वासन दिया है कि सेना अपने विकलांग सैनिकों की उचित देखभाल करेगी जो अपनी मातृभूमि से लड़ने और उनकी सेवा करते समय अक्षम हो गए हैं. समारोह के दौरान मुख्य अतिथि द्वारा देश के वीरों को समर्पित भारतीय सेना के डीआईएवी द्वारा प्रकाशित एक पत्रिका का अनावरण भी किया. साथ ही जनरल ने यह भी कहा कि, सशस्त्र बलों के अधिकारी और जवान “जो तनाव का सामना नहीं कर सकते” और “परिचालन कर्तव्यों से बचने और अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए उच्च रक्तचाप, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का हवाला देते हुए खुद को विकलांग बने हैं वह जल्द ही कार्रवाई से सामना करेंगे. उन्होंने कहा, “सेना वास्तव में विकलांग सैनिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना जारी रखेगी, लेकिन मैं उन लोगों को चेतावनी दे रहा हूं जो अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए विकलांगता से जूझने का नाटक कर रहे हैं, जल्द ही सेना मुख्यालय से कार्रवाई का सामना करेंगे. इस समारोह में विकलांग सैनिकों द्वारा नृत्य, गीत और संगीत का प्रदर्शन भी किया गया. इस कार्यक्रम में शामिल हुए जवानों का जज़्बा सभी को एक उत्साहित कर रहा था. अपने देश के लिए अपने अंग गवां देने के बाद भी इन रणबांकुरों के माथे में एक सिकन तक नहीं थी.