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हाथ नहीं, मन का मिलन ही श्रेष्ठ

Tez Samachar by Tez Samachar
March 30, 2020
in Featured, विविधा
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हाथ नहीं, मन का मिलन ही श्रेष्ठ

हाथ नहीं, मन का मिलन ही श्रेष्ठ

किसी भी बीमारी को दूर करने के लिए यूं तो चिकित्सा की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके लिए जीवन में संयम भी बहुत हद तक कारगर साबित होता है। जिसके जीवन में संयम और अनुशासन का प्रभाव होता है, वह निरोग रहने के मार्ग पर कदम बढ़ाने को प्रवृत होता जाता है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए अभी तक जो भी बातें सामने आ रही हैं, उसके अनुसार दूरियां बनाना ही इसे आगे बढऩे से रोक सकती है। हम भली भांति जानते हैं कि संक्रामक बीमारी किसी व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद फैलती जाती है। संपर्क में आने से बचने के लिए सरकार की ओर से बहुत ही कठोर कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग इसके भयावह परिणामों की ओर से आंखें बंद करते दिखाई दे रहे हैं।
– हमारी संस्कृति में है क्वारेंटाइन की परंपरा
आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया है, तब हम अपने घरों में कैद होने के लिए बाध्य हैं, लेकिन अभी भी कुछ लोग बिना किसी कारण के घरों से बाहर निकलते दिखाई दे रहे हैं। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो केवल बाहर का दृश्य देखने ही निकल रहे हैं। आज दुनिया के लोग इस वायरस से बचने के लिए अपने आपको क्वारेंटाइन कर रहे हैं। लेकिन हम अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि भारतीय संस्कृति में क्वारेंटाइन की परम्परा आदिकाल से रही है। विदेशी संस्कृति में जीवन यापन करने वाले लोग भारत के जीवन जीने के नियमों का हमेशा मजाक उड़ाते रहे हैं, लेकिन अब उन्हें भी यह समझ में आने लगा है कि स्वागत करने के लिए नमस्कार करना विश्व के स्वास्थ्य के लिए हितकर है। विदेशी लोग यह नहीं जानते कि हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है और जब हम समझाते थे तो वो हमें जाहिल बताने पर उतारु हो जाते। हम शवों को जलाकर नहाते रहे और वो नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं और आज आपको कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।
– हमारे जन्म से शुरू होता है क्वारेंटाइन का चक्र
हमारे यहां बच्चे का जन्म होता है तो जन्म के बाद मां-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महीने भर तक, मतलब होम क्वारेंटाईन करते हैं। ऐसे समय में उन घरों का पानी भी नहीं पिया जाता। हमने सदैव होम हवन किया, समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है, आज विश्व समझ रहा है, हमने वातावरण शुद्ध करने के लिये घी और अन्य हवन सामग्री का उपयोग किया। हमने आरती को कपूर से जोड़ा, हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें। हमने वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किये, हमने मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं। हमने भोजन की शुद्धता को महत्व दिया और उन्होंने मांस भक्षण किया। हमने भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये, और उन्होंने चम्मच का सहारा लिया। हमने घर में पैर धोकर अंदर जाने को महत्व दिया। हमने मेले लगा दिये कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिये। हमने अमावस्या पर नदियों में स्नान किया, शुद्धता के लिये ताकि कोई भी जीवाणु या वायरस हो तो दूर हो जाये। हमने बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया। हमने भोजन में हल्दी को अनिवार्य कर दिया, और वो अब हल्दी पर सर्च कर रहे हैं।
– सूतक को वैज्ञानिक प्रणाली से प्रमाणित किया जा रहा
हम चन्द्र और सूर्यग्रहण की सूतक मानते हैं, ग्रहण में भोजन नहीं करते हैं और वो इसे अब वैज्ञानिक पद्धति से प्रमाणित कर रहे हैं। हमने दूर से हाथ जोड़कर अभिवादन को महत्व दिया और वो हाथ मिलाते रहे। हम तो उत्सव भी मनाते हैं तो मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके और वो रातभर शराब पी-पीकर। हमने होली जलाई कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हवन सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये। हमने गोबर को महत्व दिया, हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं को नष्ट करते रहे, वो इससे घृणा करते रहे। हम दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं और आपके यहॉ कई सालों तक पुताई भी नहीं होती। अरे हम तो हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं और अन्य देशो में तो एक ही कपड़े सप्ताह भर तक पहना जाता है। हम अतिसूक्ष्म विज्ञान को समझते हैं आत्मसात करते हैं और वो सिर्फ कोरोना के भय में समझने को तैयार हुए। हम उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ हम ऐसी देव संस्कृति में जन्मे हैं जहां क्वारेंटाईन का आदिकाल से महत्व है। यही हमारी जीवन शैली है।
– दकियानूसी नहीं है हमारी संस्कृति, परंपरा
हम जाहिल, दकियानूसी, गंवार नहीं। हम सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं। आज हमें गर्व होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है। हमें भी भारतीय संस्कृति के महत्व को, उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है क्योंकि यही जीवन शैली सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सबसे उन्नत हैं, गर्व से कहिये हम सबसे श्रेष्ठ हैं।
सुरेश हिन्दुस्थानी
द्वारा श्री राजीव उपाध्याय एडवोकेट
कैलाश टॉकीज के पीछे, हरिहर मंदिर के पास
लश्कर-ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
मोबाइल – 9770015780
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