पुणे (तेज समाचार डेस्क). कोरोना की चपेट में आये लोगों को बचाने के लिए सभी तकनीकी संस्थान युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं. अभी तक संक्रमण की दवा तो दुनिया में कोई भी नहीं बना पाया है, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने दो सप्ताह पहले से दवा का परीक्षण शुरू कर दिया है. यह परीक्षण करने वाली पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी है, जिसने जीवित कोरोना वायरस पर दवाओं का ट्रायल शुरू किया है. इसे पूरा होने में कुछ सप्ताह या महीनों तक का समय लग सकता है.
– अप्रैल के पहले सप्ताह से शुरू हो चुका है ट्रायल
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार अप्रैल के पहले सप्ताह में वायरस पर ड्रग ट्रायल शुरू हो चुका है. डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी व आईसीएमआर के वैज्ञानिक वैक्सीन के शोध अध्ययन में भी जुट चुके हैं. एनआईवी के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक किसी भी दवा के ट्रायल में कम से कम 10 से 12 दिन का समय लगता है. इसके बाद ही इस पर फैसला लिया जाता है. इसमें अभी वायरस को आइसोलेट किया गया है. हालांकि भारत ने पहले मामले के साथ ही वैज्ञानिक प्रयोग शुरू कर दिए थे. इसके चलते वायरस को आइसोलेट करने में करीब डेढ़ महीने का समय लगा. इसी के साथ ही चीन, अमेरिका, जर्मनी, कोरिया की तरह भारत भी वायरस को आइसोलेट करने में तो सफल हो गया लेकिन कौन सी दवा से वायरस नष्ट होगा, इसका अभी पता नहीं चल सका है.
– पहले वायरस को आइसोलेट किया गया
एनआईवी पुणे की निदेशक डॉ. प्रिया अब्राहम का कहना है, परीक्षण के लिए पहले वायरस को आइसोलेट किया गया है. एक दवा का ट्रायल करने में वैज्ञानिकों को कम से कम 10 से 12 दिन का वक्त लगता ही है. इसके बाद ही सही निष्कर्ष का पता चलता है. केरल में 30 जनवरी को भारत का सबसे पहला मरीज मिलने के बाद ही वैज्ञानिकों ने जांच के साथ ही शुरुआती तीनों सैंपल पर शोध शुरू कर दिया था. हालांकि, उन्हें तीनों सैंपल को आइसोलेट (पृथक) करने में सफलता नहीं मिल सकी. वैज्ञानिकों ने बताया कि उस वक्त काफी निराशा हाथ लगी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कुछ ही दिन बाद मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली, लखनऊ और जयपुर से मिले 12 सैंपल पर फिर अध्ययन शुरू हुआ. करीब दो सप्ताह बाद वैज्ञानिकों को इसे अलग करने में कामयाबी मिल गई. एनआईवी के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस पर परीक्षण के उसे आइसोलेट करने के बाद कुछ समय तक निष्क्रिय रखा. इसके बाद जीवित वायरस की कई प्रतिकृतियां भी तैयार कर लीं. आईसीएमआर के अनुसार विज्ञान में किसी भी वायरस को आइसोलेट करना सबसे मुश्किल होता है.