56 इंच का सीना, इन्हें छूट रहा पसीना
अपने नेताओं के गैरजिम्मेदाराना, नकारात्मक और विवादास्पद बयानों से असहमति जता कर क्या कोई राजनीतिक दल जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है? उस स्थिति में तो कतई नहीं जब पार्टी के अगुआ पर ही तथ्यहीन आलोचनाओं के आरोप लगते रहे हों. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में एक नाम बी के हरिप्रसाद है. वह राज्यसभा सदस्य हैं. सदन में उनकी उपस्थिति का रिकार्ड अच्छा है. हरिप्रसाद का ताजा विवादास्पद बयान टुच्ची राजनीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है. उनकी टिप्पणी राजनीति में शिष्टता के गिरते स्तर को दर्शाती हैं. उन्होंने पुलवामा में आतंकी हमले को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच मैच फिक्सिंग का नतीजा बताया है. हरिप्रसाद यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि पुलवामा हमले के बाद के घटनाक्रम पर नजर डालें तो पता चलता है कि मोदी और इमरान के बीच मैच फिकि्ंसग थी. कांग्रेस ने हरिप्रसाद के बयान को उनकी निजी राय बता कर पल्ला झाड़ लिया. कांग्रेस पहले भी इसी तरह पल्ला झाड़ नौटंकी दिखाती रही है. लेकिन इससे क्या वह उस नुकसान से बच पाएगी जिसके बादल घुमड़ने लगे हैं. हरिप्रसाद की बातों से एक बात तो साबित हुई है कि उम्र बढ़ने और सांसद या विधायक बन जाने मात्र से किसी में समझदारी, जिम्मेदारी और परिपम्ता की गारंटी नहीं दी जा सकती. अतः चिंता का विषय यह है कि क्या यह राष्ट्र ऐसे गैरजिम्मेदार नेताओं को झेलने के लिए अभिशप्त हेै?
पुलवामा आतंकी हमला और उसके बाद बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की जवाबी कार्रवाई के बाद देश में बयानवीर राजनेताओं ने मौखिक जुगाली से देशवासियों को निराश किया है. सियासी छल-छिद्र में माहिर इन लोगों ने भारतीय सेना का भी अप्रत्यक्ष अपमान किया है. सेना का मनोबल कमजोर करने की कोशिश की गईं. बुरी बात यह लगी कि इनके गैरजिम्मेदाराना बयानों को आधार बना कर पाकिस्तान सरकार, राजनेता और मीडिया भी भारत सरकार और सेना पर हंस रहे हंै. लगभग सारे विपक्षी दल इस काम में लगे हैं. कांग्रेस ने रिकार्ड बना लिया. बालाकोट आतंकी हमले के बाद सबसे पहला बुरा बयान कांगे्रस के नवजोत सिंह सिद्धू का आया जिन्होंने जैश ए मोहम्मद की ओर से किए गए हमले के लिए एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान को दोषी मानने से इंकार कर दिया. उम्मीद यह की जा रही थी कि सिद्धू के बयान पर कांग्रेस अप्रसन्नता व्यक्त करेगी. ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद कांग्रेस के कथित वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पुलवामा आतंकी हमले को एक दुर्घटना निरूपित कर दिया. कांग्रेस की ओर से शर्मनाम व्यवहार की झड़ी तो पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट स्थित जैश ए मोहम्मद के आतंकी टे्रनिंग कैम्प पर बमवर्षा के बाद लग गई. प्रमाण मांगे जाने लगे. सिद्धू ने कटाक्ष किया कि बम आतंकी कैम्प पर गिराये गए थे या जंगल में लगे पेड़ों पर? दिग्विजय और कुछ कांग्रेसी नेता एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं. एयर स्ट्राइक पर पहला सवाल तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था. सम्भवतः राहुल की अगुआई वाली कांग्रेस को ममता की स्टाइल पसंद आ गई. अचानक कांग्रेस के सियासी रंगरूटों से लेकर ऊपर वाले तोपची तक सक्रिय हो गए. सभी बालाकोट में मारे गए आतंकवादियों की संख्या जानना चाहते हैं. कोई कह रहा, बालाकोट स्ट्राइक का प्रमाण दो और किसी मारे गए आतंकियों की वास्तविक संख्या चाहिए. बेहद फूहड़ तर्क दिया जा रहा है कि सरकार से प्रश्र करने का अधिकार विपक्ष को है. दिग्विजय कहते हैं, अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के मारे जाने का प्रमाण दिया था तब बालाकोट स्ट्राइक का प्रमाण देने में क्या मुश्कि्ल है. मीडिया से बात करते समय वायुसेना प्रमुख को कहना पड़ा सेना का काम टारगेट पर कार्रवाई का होता है, हम लाशें गिनने का काम नहीं करते.
एक राजनीतिक विश£ेषण में पुलवामा और बालाकोट को लेकर की जा रही राजनीति का काफी हद तक सही कारण बताया गया है. अधिकांश राष्ट्रवादी शक्तियां इस बात से सहमत होंगी की बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद मोदी एक ऐसे राष्ट्रनायक के रूप में उभरे हैं जिसके लिए राष्ट्र, उसकी रक्षा और सम्मान से बढ़ कर कुछ नहीं है. पुलवामा आतंकी हमले के बाद के घटनाक्रम को याद करें. विपक्ष ने सरकार को घेरने पूरी ताकत लगा दी. कांग्रेस के रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोदी पर कटाक्ष कर सवाल किया था कि कहां गया 56 इंच का सीना? आतंकियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही थी. पाकिस्तान को सबक सिखाने सरकार पर काफी दबाव था. सरकार ने जो सही लगा वह किया. बालाकोट में एयरा स्ट्राइक कर जैश के शिविर को उड़ा दिया गया. बालाकोट एयर स्ट्राइक पाकिस्तान के लिए भारत की ओर से अप्रत्याशित प्रतिक्रिया थी. वह भांैचक रह गया. लेकिन, चौकाने वाली बात यह रही कि पाकिस्तान से ज्यादा भारत में कुछ लोग डिप्रेशन में आ गए. कुछ बुद्धिजीवी, कुछ मीडिया वाले और कुछ विपक्षी राजनेताओं की प्रतिक्रिया से लगा मानो उनके अरमानों पर एयर स्ट्राइक कर दी गई हो. समूचा विपक्ष सन्निपात की स्थिति है. हाथों से तोते उड़े उड़ गए. चैतन्य हुए तो अहसास हुआ होगा कि एयर स्ट्राइक का श्रेय मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति को मिल रहा है. इसके बाद राष्ट्रहित और राष्ट्र सम्मान जैसे विषयों पर सियासत हॉवी होने लगी. एक पखवाड़े तक सुनाई दिए अनर्गल प्रलाप को भला कौन देशप्रेमी याद रखना चाहेगा? घिन सी आने लगती है. क्या राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए कोई राजनेता अपने देश, सरकार और सेना तीनों के सम्मान को इस हद चोट पहुंचाने की कोशिश कर सकता है? आपका भाजपा से विरोध है या मोदी से नफरत करते है, यह आपका सिरदर्द है. आप तो राष्ट्र के सम्मान, प्रतिष्ठा और दुनिया में उसकी विश्वसनीयता को चोट पहुंचाने में संकोच नहीं कर रहे.
पुलवामा हमले के सात दिनों बाद ही कांग्रेस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था. बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद मानों विपक्ष का मानसिक संतुलन ही डगमगा गया. कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां उस ममता बनर्जी के साथ सुर से सुर मिलाने लगीं जो स्वयं शासन के आधारभूत आचरण को भी पूरा नहीं कर पातीं. सभी जानते हैं कि ममता की कार्यप्रणाली के चलते ही तृणमूल कांग्रेस देश की सबसे गैरजिम्मेदार राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी है. ममता बनर्जी ने दिमागी दिवालियापन का सबूत दिया है. एयर सट्राइक पर अखिलेश, मायावती, उमर और मेहबूबा बयान कूड़ेदान में फेंकने योग्य रहे. लेकिन, सवाल यह है कि राहुल गांधी कांग्रेस को कहां ले जाने पर तुले हैं. उनके मार्गदर्शक और सलाहकार कौन हैं? अक्सर लगता है जैसे पुलवामा और बालाकोट मुद्दों की आड़ में मोदी और भाजपा की खिंचाई करने के प्रयास में राहुल कांग्रेस को मटियामेट करके ही दम लेंगे. बरसों तक कांग्रेस को आंख बंद करके वोट देते रहे लोग बेचैन हैं. सवाल उनके मन में उठते होंगे. राहुल ने पिछले लगभग एक माह के दौरान जनता की नब्ज टटोलने के लिए क्या किया? राहुल ने यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि सिद्धू, दिग्विजय, सुरजेवाला, सिब्बल, खुर्शीद, मनीष तिवारी और अब हरिप्रसाद जैसे महानुभावों के कारण पार्टी को कितना नफा-नुकसान हुआ. क्या ऐसे नेताओं पर कांग्रेस अध्यक्ष का कोई नियंत्रण नहीं रह गया? या मान लें कि विवादास्पद बयान देने वालों को पार्टी नेतृत्व की मौन सहमति प्राप्त है. सच जो भी हो किन्तु दोनों ही स्थितियों में नुकसान कांग्रेस का होना तय है. याद करें कि 2014 से पहले यूपीए की मनमोहनसिंह सरकार के कुछ मंत्रियों की बयानबाजी कांग्रेस को चुनावी नुकसान का कारण बनी थी. यह मानना गलत नहीं होगा कि कमोवेश वैसे ही हालात पुनः दिखाई दे रहे हैँ. एक अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार पिछले बीस-पच्चीस दिनों के दौरान राहुल गांधी की लोकप्रियता के ग्राफ ने तेजी से गोता लगाया है. यह धारणा बन रही है कि चुनावी फायदे के लिए कांग्रेस और कुछ विपक्षी पार्टियां राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों की अनदेखी करने पर उतारू हैं. भाजपा के लोग यह संदेश फैलाने में सफल होते नजर आने लगे हैं कि मोदी विरोध में अंधे हो कर कुछ विपक्षी राजनेता राष्ट्र विरोध पर उतर आए हैं.. एयर स्ट्राइक को लेकर विपक्ष कितने ही सवाल उठा कर मोदी विरोध का माहौल बनाने की कोशिश कर ले लेकिन सच यह है कि इससे मोदी का ग्राफ ऊंचा उठता महसूस किया जाने लगा है. आखिर मुद्दा राष्ट्रवाद का बन चुका है. मोदी ने आम लोगों को प्रभावित किया है. ऐसी वास्तविकता के चलते हरिप्रसाद जैसे राजनेताओं के बेसिरपैर के बयान कांग्रेस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने वाले साबित हो सकते हैं. आज राहुल के पीछे खड़े इक्का-दुक्का विपक्षी नेता कल पछताते नजर आएं तो हैरानी नहीं होगी.
अनिल बिहारी श्रीवास्तव,
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