सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
होली, तो हो ली. रंग-अबीर -गुलाल खेलकर हम-आप सब ने मना ली. देश के लाखों, करोड़ों लोगों ने इस दिन जरूर शराब, वाइन, व्हिस्की, वोडका, बीयर या भांग-गांजा आदि का नशा किया होगा. मगर सब-कुछ जानते हुए भी लोग इसे पीते ही हैं कि इनका नशा, इन्सान की जिंदगी को कितना बदरंग, बदनाम और दुखदायी कर देता है. अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत इसका ज्वलंत और ताजा उदाहरण है. उनकी मौत पर कितना भी सस्पेंस हो, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके खून में शराब के अंश मिले हैं. बाथटब डेढ़ फुट गहरा होता है. कोई भी पियक्कड़ सहसा इसमें डूब कर नहीं मर सकता! किंतु श्रीदेवी शराब के नशे में इतनी चूर हो गई कि बाथटब में डूब कर मर गई. उनकी मौत और अंतिम यात्रा को दृश्य मीडिया ने इतना बढ़ा-चढ़ा कर ‘लाइव’ दिखाया, जैसे प्रधानमंत्री की मौत हो गई हो! हजारों लोगों ने श्रद्धांजलियों का ऐसा तांता लगाया, मानो वह सरहद पर देश के लिए शहीद हो गई हो! धिक्कार है ऐसे मीडिया का, जिसने शराब से मृत सेलिब्रिटी को ‘महान’ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी!
माना कि श्रीदेवी पदमश्री सम्मान प्राप्त, बॉलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार थीं, मगर क्या वे देश के लिए रोज शहीद होने वाले सैनिकों से ज्यादा ‘महान’ थीं? जिसकी मौत पर खबरिया चैनल्स ने 80 घंटे तक लगातार कवरेज दिया. श्रीदेवी ने पैसा कमाने फिल्मों में जबरदस्त अभिनय किया. अपार शोहरत और दौलत हासिल की, लेकिन देश के लिए ऐसा क्या किया? जिसके कारण खबरिया चैनलों ने पूरे 80 घंटे तक देश का ध्यान अन्य मुद्दों से भटका कर सिर्फ श्रीदेवी की मौत-मिट्टी पर ही लटका-अटका दिया! उनकी असमय मौत से देश पर कौनसा संकट आ गया था? देश की कौन सी सामाजिक – आर्थिक हानि हो गई? जो मीडिया ने ‘मौत का तमाशा’ दिखा दिया! शराब पीकर मरी थीं वह! देश के लिए नहीं मरीं! देश के लिए सीमा पर अपनी जान न्योछावर करने वाले शहीदों का तो इतना ‘लाइव कवरेज’ क्यों नहीं दिखाता यह ‘बिकाऊ मीडिया’? जबकि उसी दिन कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख जयेंद्र सरस्वती का देहांत हुआ, मगर मीडिया की नजर में धर्माचार्य वैसे ही रह गए! क्योंकि ग्लैमर जो बेचना था उन्हें!
वहीं, सत्ता और वर्चस्व की गर्मी में सियासी दल के एक नेता (मंत्री) ने बिहार में शराब के नशे में धुत हो नेशनल हाईवे पर 9 स्कूली बच्चों को अपनी गाड़ी से कुचलकर मार डाला! यह भी श्रीदेवी कांड के दौरान घटित भीषण दुर्घटना थी, जिसे दो-चार-10 मिनट की खबर या चर्चा में निपटा दिया हमारे खबरिया चैनलों ने! अगर विपक्ष के किसी नेता – मंत्री की गाड़ी से 9 स्कूली बच्चे रौंदे जाते, तो यही मीडिया आसमान सिर पर उठा लेता! लेकिन ये बच्चे बिहार के सरकारी स्कूलों के थे. वंचित-शोषित समाज के थे. इसीलिए बिकाऊ मीडिया ने न तो ‘राष्ट्रवादी जोश’ दिखाया, न उस शराबी नेता की बखिया उधेड़ी! जबकि बिहार में शराबबंदी है. फिर भी यहां सत्ता की साझेदार भाजपा का मनोज बैठा नामक मंत्री शराब पीकर अंधाधुंध गाड़ी चलाते हुए 9 बच्चों को सड़क पर कुचल कर मार डालता है! तो कहीं कोई शोक या मातम नहीं मनाया जाता! क्योंकि ये बेबस बच्चे, श्रीदेवी जितने ‘महान’ नहीं थे! तो क्यों न धिक्कार किया जाए बिहार के सत्ताधारी-शराबी नेताओं और ऐसे मीडिया का!
दरअसल शराब ही हमारी सामाजिक बुराइयों की जड़ है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों पर ‘इंडिया स्पेंड’ नामक संस्था द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में शराब के कारण प्रतिदिन 15 लोग या हर 96वें मिनट पर एक भारतीय की मौत होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत में 40 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है. शराब के कारण न केवल घरेलू हिंसा बड़ी है, बल्कि अन्य जघन्य अपराध और सड़कों पर होने वाले हादसे भी बढ़े हैं. शराब से होने वाली मौतों के मामलों में महाराष्ट्र प्रथम, मध्यप्रदेश द्वितीय और तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है. यह एक लत है, जिसे हम सबको मिलकर रोकना होगा. वरना शराब तो हम में से कई लोगों की जिंदगी को पी ही रही है!
– सुदर्शन चक्रधर 96899 26102