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सावित्रीबाई फुले की सहयोगी मुस्लिम महिला शिक्षिका ‘फातिमा शेख’

Tez Samachar by Tez Samachar
March 7, 2018
in विविधा
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सावित्रीबाई फुले की सहयोगी मुस्लिम महिला शिक्षिका ‘फातिमा शेख’

महिलाओं ने स्वयं के हक़ के लिए जो आंदोलन चलाया उन दिनों की स्मृति को उजागर करने के लिए 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1910 की अन्तर्राष्ट्रीय महिला परिषद में पारित किये गये प्रस्ताव के अनुसार 8 मार्च यह दिन विश्व महिला दिन के रूप में निश्चित किया गया। महिला दिन के उपलक्ष्य में महिलाओं का कर्तृत्व, उन्होंने किये हुए कार्य की प्रशंसा की जाती है, उनके कार्य को सराहाया जाता है। मात्र ऐसी भी कुछ महिलाएँ है जिन्होंने अपने कार्य, कर्तृत्व से समाज के सम्मुख आदर्श स्थापित किया है। उन कर्तृत्ववान महिलाओं का स्मरण इस महिला दिवस पर करना आवश्यक है। शिक्षण के प्रती समाज में जागृती हो, इस उद्देश्य से अनेक लोगों ने सत्कार्य किया। इनमें से एक फातिमा शेख इस महिला का नाम है। जिन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य किया। आज इस महिला दिवस के अवसर पर जिन्हें विशेष रुप से प्रसिद्धी नहीं मिली ऐसी फातिमा शेख के कार्य को अधोरेखित करता आरिफ आसिफ शेख का यह लेख….

समाजसुधारक एवं स्त्रियों को शिक्षित करने की शुरुआत करनेवाली महिला के रूप में सावित्रीबाई फुले से हम सभी परिचित है। महाराष्ट्र के स्त्री शिक्षण के शुरुआती दौर में उनके पति ज्योतिराव फुलें सहित उन्होंने बड़ी कामगिरी की। स्त्री शिक्षण का प्रसार सावित्रीबाई फुले ने किया और भारत की प्रथम मुख्याध्यापिका के रूप में इतिहास के पन्नो पर उन्होंने अपनी पहचान बनाई।

जिस तरह से स्त्री शिक्षण का नाम लेते ही सावित्रीबाई का स्मरण होता है ठीक उसी तरह मुस्लिम स्त्री शिक्षण का नाम लेते ही फातिमा शेख का नाम अग्ररूप से लिया जाता है। उस वक्त की प्रतिकूल सामाजिक, धार्मिक परिस्थिती में एक मुस्लिम स्त्री ने शिक्षण के कार्य के लिए घर के बाहर निकलना यह बहुत ही साहस की बात थी। सावित्रीबाई की जिद, मेहनत देखकर फातिमा शेख ने भी उनके साथ स्त्री शिक्षण का कार्य शुरु किया। स्त्रियों को शिक्षित करने के कार्य में सावित्रीबाई फुले को फातिमा शेख ने बहुमूल्य सहयोग दिया।

आगे चलकर शिक्षित होने के पश्चात फातिमा शेख ने प्रथम महिला मुस्लिम शिक्षिका होने का मान प्राप्त किया। जिस समय शिक्षण बहुसंख्य लोक शिक्षण से दूर थे, लड़कियों को शिक्षण का हक़ तो था ही नहीं। परंतु भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षण से वंचित थे। महात्मा ज्योतिबा फुलें ने बहुजनों की दुर्गति को नज़दीक से देखा था। बहुजनों के पतन का कारण शिक्षित न होना यहीं था। यदी उन्हें शिक्षित किया जाएँ तो यह चित्र बदल सकता है ऐसा उन्होंने पूर्ण विश्वास था। बहुतांश लोगों के घरों तक जाकर शिक्षण का प्रचार-प्रसार होना चाहिए और विशेषत: ज्योतिबा फुले लड़कियों को शिक्षित करने के लिए बहुत आग्रही रहे। इसका शुभारंभ उन्होंने अपने घर से ही किया। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित किया। उसके पश्चात शिक्षण के प्रचार कार्य की शुरुआत की। मात्र इस कार्य के लिए सभी ओर से विरोध होने लगा।

1 जनवरी 1848 में पुणे के बुधवार पेठ के भिंडी बाडे में महात्मा फुले ने लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल स्थापित किया। उस समय केवल छह लड़कियोंने स्कूल में प्रवेश लिया था। मात्र महात्मा फुले के पिता गोविंदराव को लोगों ने भडकाना शुरु किया। लोगों ने उनसे कहा कि, यह स्कूल बंद करवाओं वरना हम आपको आपके पत्र (ज्योतिबा) को समाज से बहिष्कृत कर देंगे। ऐसी स्थिती में भी ज्योतिबा अपने निर्णय पर बने रहे और शिक्षण देने का कार्य जारी रखा। तब गोविंदराव ने महात्मा ज्योतिबा फुले को घर से बाहर निकाल दिया। ऐसे में महात्मा फुले के नज़दीकी मित्र उस्मान शेख ज्योतिबा की मदद के लिए आगे आए। और उन्होंने गंजपेठस्थित अपने रहते घर में फुले दम्पत्ति को आश्रय दिया। उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ति को सिर्फ रहने के लिए ही जगह नहीं दी बल्कि संसार उपयोगी हर चीज दी। उस्मान शेख की बहेन फातिमा शेख थी। फुले दम्पत्ति को जब शिक्षिका तैयार करने के लिए स्कूल शुरु किया तब उस स्कूल में दाखिला लेने वाली प्रथम विद्यार्थिनी यह फातिमा शेख ही थी। उस स्कूल से शिक्षिका के रूप में प्रशिक्षित प्रथम शिक्षिका फातिमा शेख ही थी और वह महाराष्ट्र की प्रथम मुस्लिम प्रशिक्षित शिक्षिका के रूप में जानी गई। फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के बराबर शिक्षिका के रूप में उत्तम कार्य किया है। इस संदर्भ का उल्लेख डॉ. मा. गो. माली लिखित महात्मा फुले गौरवग्रंथ के पेज क्रमांक 47 पर किया हुआ है।

महाराष्ट्र में महिलाओं के शिक्षण के आरंभिक काल में अनेक व्यक्तियों का योगदान लाभान्वित होने की बात दर्ज है परंतु उसमें फातिमा शेख भी थी। दुर्दैव की बात कि संकुचित विचारसरणी के लोगों ने फातिमा शेख के कार्य प्रकाश में नहीं आने दिया। इतिहास में महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका के रूप में फातिमा शेख का नाम उजागर नहीं होने दिया। इसलिए फातिमा शेख की स्मृति भी कायम रखना आवश्यक है। फातिमा शेख यह प्रथम महिला शिक्षिका थी यह बात ध्यान में लेते हुए समाज में कार्यरत शैक्षणिक व सामाजिक संस्थांओं ने पहल कर दसवी-बारहवी कक्षा की परीक्षा प्रथम क्रमांक से उत्तीर्ण करने विद्यार्थिनियों को  फातिमा शेख के नाम से पुरस्कार घोषित करना चाहिए ताकि लड़कियों को प्रोत्साहन मिल सके।

स्त्री शिक्षण के संदर्भ में आज के समय में कहीं भी विरोध नहीं है, अब उतना विरोध नहीं होता। सभी समाज-धर्म-पंथ-की लड़किया-स्त्री शिक्षित हो रही है। सद्यस्थिती में विविध क्षेत्र में उच्च पद पर स्त्रिया विराजमान होकर पूर्ण जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभा रही है। आज अनेक मुस्लिम महिला शिक्षित होकर महत्वपूर्ण पद पर विविध क्षेत्र जैसे, वैद्यकीय, वकिल, पत्रकारिता, शिक्षण आदि सभी क्षेत्र में यशस्वीरूप से कार्य कर रही है। आज जो भी महिलाए शिक्षित होकर अपनी सफलता का परचम लहरा रही है उस शिक्षण का पौधा आज से लगभग 200 वर्ष पहले फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने रोपित किया जिसका आज विशाल बरगद सा पेड हो गया है तथा सभी महिला वर्ग शिक्षित हो रही है। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले को इस कार्य के लिए भूल पाना असंभव ही है। इसलिए आज विश्व महिला दिन के अवसर पर उनका यह स्मरण

                                                          

आरिफ आसिफ शेख   9881057868

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