सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
नीरव मोदी कांड (पीएनबी घोटाले) के बाद देश के अलग-अलग महानगरों से बैंकिंग सेक्टर के ‘फ्रॉड’ सामने आने की मानो बाढ़-सी आ गई है. ऐसा लगता है कि देश-प्रदेश में व्यापम घोटाला, राफेल घोटाला, चिक्की घोटाला, या चूहा घोटाला से बढ़कर हो गए हैं ये बैंक घोटाले! निर्लज्ज नीरव कांड के बाद सात ऐसे बैंकिंग फ्रॉड सामने आए हैं, जिनसे राष्ट्रीयकृत बैंकों को पूरे 23 हजार करोड़ की चपत लगी है. इनमें पीएनबी घोटाला, रोटोमैक घोटाला, कनिष्क ज्वेलर्स घोटाला, रीड एंड टेलर घोटाला, यूको बैंक घोटाला, ओरिएंटल बैंक घोटाला और टोटेम इन्फ्रास्ट्रक्चर घोटाला शामिल हैं. विडंबना यह कि कुछ सहकारी बैंकों और एलआईसी में भी घोटाले हुए हैं.
सामान्यत: जनता में यह धारणा बनी है कि बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से ही ऐसे सारे फ्रॉड/घोटाले होते हैं. मगर इसके लिए क्या हम सभी बैंक कर्मचारियों को दोषी ठहरा देंगे? दरअसल, ऐसे बड़े-बड़े घोटाले बैंक के सामान्य कर्मचारी या अफ़सर नहीं करते! इन काण्डों को बैंक के टॉप लेवल के आला अधिकारी, उच्च पदों पर बैठे अपने आकाओं के साथ मिलकर ही अंजाम देते हैं! किंतु बदनाम हो जाते हैं पूरे बैंक कर्मी. यानि बैंकर्स! क्या कभी हमने और आपने बैंकर्स की समस्याएं, उनकी मनोदशा और काम के दबाव को जानने-समझने की कोशिश की? बैंक कर्मचारियों को नजदीक से जानने पर उनकी व्यथा वाकई भयानक लगती है.
कड़वा सच तो यह भी है कि 10 लाख से अधिक लोगों का यह जत्था भयंकर मानसिक तनाव से गुजर रहा है. इतना कि उनके भीतर की घुटन हदें पार कर चुकी हैं. तभी तो इनके ‘वी बैंकर्स’ नामक ढाई लाख कर्मियों के समूह ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर 21 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर काले कपड़े पहनकर केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में प्रदर्शन किया. यह प्रदर्शन किसी बैंक यूनियन के बैनर तले ना होकर ‘वी बैंकर्स’ के झंडे तले किया गया. क्योंकि आजकल की यूनियनें तो सरकार की ‘दलाल’ बन कर राजनेताओं और पदाधिकारियों के तलुवे चाटने में जुटी रहती हैं. वे हमेशा सरकार के दबाव में रहती हैं और कई प्रकार के समझौते कर अपना उल्लू सीधा करती रहती हैं!
अब यह कहां का न्याय है कि बैंक कर्मियों को केंद्र सरकार के काम (बैंकिंग कार्यों के अलावा भी) करने पड़ रहे हैं. आजकल बैंक वालों को लाइफ इंश्युरेंस, गाड़ियों का बीमा, म्युचुअल फंड तक बेचना पड़ रहा है. ‘अटल पेंशन’ जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं में भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है. ‘आधार कार्ड’ बनाने या लिंक करने के काम में भी इन्हें झोंक दिया गया है! और तो और, बैंक कर्मियों की चुनाव ड्यूटी भी लगा दी जाती है. अब तो सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं के परचे भी सुरक्षा की दृष्टि से बैंक कर्मियों की देख-रेख में रखे जाने लगे हैं! जबकि ये सारे कार्य केंद्र सरकार के कर्मचारियों का है. केंद्रीय कर्मियों को हफ्ते मात्र 5 दिन ही काम करना पड़ता है और उनका बेसिक वेतन भी इनसे बहुत ज्यादा है.
सवाल यहां कम तनख्वाह मिलने के साथ-साथ कई प्रकार के काम करवाए जाने का भी है. टारगेट पूरा करने के दबाव का है. जरा-सी गलती होने पर ‘मेमो’ मिलने या ट्रांसफर करवाए जाने का है! तभी तो ‘नोटबंदी’ के दौरान काम के प्रेशर के चलते कई बैंक कर्मियों की मौत हो गई. बैंक वालों को अक्सर शुगर, ब्लडप्रेशर और हार्ट की बीमारी रहती है. लोगों को लगता होगा कि बैंक की नौकरी सबसे अच्छी है. बैंक वाले सुखी रहते हैं. यह धारणा अब गलत साबित हो रही है. लाखों बैंक कर्मी बुझे हुए चेहरे के साथ जाते हैं और ‘सूखी’ हुई शक्ल लेकर रोते-रोते घर लौटते हैं! तमाम बैंक शाखाओं में स्टाफ की भयंकर कमी है. नई भर्तियां नहीं हो रही हैं. बेरोजगार सड़क पर हैं और बैंकों में 6 लोगों का काम 3 कर्मचारी कर रहे हैं! लगता है, अब मजबूरी का नाम ‘महात्मा गांधी’ ना होकर ‘बैंक कर्मी’ हो गया है!
– सुदर्शन चक्रधर- 9689926102



