जामनेर (नरेंद्र इंगले): निकाय चुनाव मे उमदा प्रचार के बावजुद कमजोर छदमी संगठन तथा अतिआत्मविश्वास के कारण धाराशायी हो चुके विपक्ष मे उभरती मायूसी से जमुरीयत के हितैशीयो मे चिंता व्यक्त कि जाने लगी है . नेता संजय गरुड कि अगवायी मे लडे गए निगम चुनाव के नतीजो ने विपक्ष के आनेवाले सभी रणनीतीक प्रयासो को क्षतीग्रस्त कर दिया है . रैलीयो के प्रचार मे शिक्षा संस्था से जुडे विवादो का ठीकरा मंत्री महाजन पर फ़ोडकर अस्तीत्व के लिये लड रहे विपक्ष का संघर्ष लोगो द्वारा सिरे से नकारने कि मुख्य वजह विपक्ष का अवसरवाद बताया गया जो ढाई साल पहले निगम मे सत्तापरीवर्तन से आवाम ने अनुभव किया था . वहि प्रत्येक चुनाव मे सहयोगी दल कांग्रेस कि आम लोगो मे दिखती अडीयल भुमीका भी गठबंधन को अंदरुनी चोट पहुचाने के लिये कारगर साबीत हुयी , संजय गरुड के अलावा पारस ललवाणी , सुरेश धारीवाल , प्रदीप लोढा जैसे नेताओ को खुद कि सिमीत लोकप्रियता मे इजाफ़े कि रुची शायद हि कभी रहती दिखी हो . नतीजो के बाद अब तक विपक्ष कि ना कोई समीक्षा बैठक हुयी है और न हि किसी तरह कि सकारात्मक कोशिश . ऐसे मे अगले महिने मे जिनींग सोसायटी के आम चुनाव है जिस पर भी कोई मंथन नहि . उसके बाद अक्तूबर 2018 मे तहसिल शिक्षा संस्था के चुनाव होंगे जो प्रस्थापीतो और विस्थापीतो के लिये बेहद महत्वपूर्ण है . इन चुनावो मे कुल 17 सिटो के लिये संस्था अध्यक्ष आबाजी नाना पाटील के नेतृत्व मे मंत्रीजी अपना पैनल उतार सकते है , वहि जानकारो के मुताबीक अपने कब्जे वाला यह अंतीम शक्तीपुंज बचाने के लिये ललवाणी और धारीवाल को पूर्व मंत्री सुरेश जैन के नेतृत्व पर भरोसा व्यक्त करने के अलावा अन्य बेहतर विकल्प बचता नजर नहि आ रहा है . संस्था को लेकर उच्च न्यायालय तथा प्रशासन समक्ष कयी कानूनी व्यावधानो के मामले न्यायलंबीत है . शिक्षा संस्था का यहि वह चुनाव है जिसके नतीजे विपक्ष कि अंतीम साख तय करेंगे . बहरहाल वर्तमान मे मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस मे पसारी मायूसी दुर करने की समस्या नेता संजय गरुड के लिये किसी चुनौती से कम नहि है .