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चक्रव्यूह – जो जीता, वो सिकंदर हारा सो बंदर…!

Tez Samachar by Tez Samachar
May 19, 2018
in Featured, विविधा
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चक्रव्यूह – जो जीता, वो सिकंदर हारा सो बंदर…!

सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं.  उनके फेसबुक पेज से साभार !

आखिरकार जिसकी संभावना थी, कर्नाटक में कई दिन चले नाटक का अंत वैसा ही हुआ और 55 घंटों के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा! मगर इस पूरे खेल में ‘राजतंत्र’ जीत गया और लोकतंत्र हार गया. लोकतंत्र बचाने के नाम पर लोकतंत्र का ही चीरहरण होता दिखा. इस कर्नाटकीय नाटक में कई पात्र देखे गए. राजनेता, राजभवन, सुप्रीम कोर्ट, सदन और सड़क! यह दुखद है कि सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर सत्ता के भूखे भेड़ियों ने कुर्सी पाने के लिए ऐसा नंगा नाच कर्नाटक में खेला, कि संविधान की आत्मा भी कराहने लगी. कांग्रेस ने तो यहां तक कह डाला था कि यहां ‘संविधान का एनकाउंटर’ हो गया. जबकि देश जानता है कि कांग्रेस राज में ही संविधान की धज्जियां कई बार उड़ायी गयीं. राजभवन से सुप्रीम कोर्ट तक हुए ‘सत्ताहरण’ के तमाम प्रसंगों ने देश-प्रदेश की जनता को यह सोचने पर विवश कर दिया कि हमारे जनप्रतिनिधियों के लिए लोकतंत्र और संविधान कोई मायने नहीं रखते. उन्हें सिर्फ कुर्सी से प्यार है. सत्ता से प्यार है …और इसी कारण आज लोकतंत्र लाचार है!

यह सच है कि कर्नाटक में सत्ता के लिए अनैतिकता का तांडव हुआ. लोकतंत्र की गर्दन का मर्दन हुआ. भाजपा के पास बहुमत का जादुई आंकड़ा न होने के कारण 100-100 करोड़ में बिकाऊ विधायकों की बोलियां लगीं. कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के कुछ विधायकों को ऑफर देने या उनके बिक जाने अथवा ‘गायब’ हो जाने की खबरें सामने आयीं. सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ? क्या जनता ने इन विधायकों को ‘बिकाऊ घोड़ा’ समझ कर अपने क्षेत्र से निर्वाचित कर विधानसभा में भेजा था? फिर तो सत्ता के पॉवर और करोड़ों की रकम के लालची ये सफेदपोश ऐसे में देश और प्रदेश को भी बेच डालेंगे! इसका भी डर हमेशा बना रहेगा. हम धिक्कार करते हैं उस सरकारी तंत्र का जिस के दबाव में जनतंत्र को धनतंत्र में बदलने का कुप्रयास किया गया. ऐसे में लोकतंत्र खून के आंसू बहाने लगा. और तो और, इसी लोकतंत्र को वाराणसी में पुल के नीचे भी कुचल दिया गया. फिर वहां लाशों की कीमत भी (मुआवजा देकर) लगा दी गई!

मित्रों, …क्या यह देश ऐसा ही चलता रहेगा? दुख है कि हम लोग सरकार तो बदल देते हैं, मगर व्यवस्था नहीं बदल पा रहे हैं. संविधान के नाम पर लड़ते-झगड़ते इन राजनेताओं की हरकतें माफ करने योग्य नहीं होतीं. फिर भी हम उसे भूल जाते हैं. संविधान की जितनी धज्जियां उड़ाई जानी थीं, इन सभी राजदलों ने बारी-बारी से उड़ा दी है. कई बार सरकार बनाने के लिए संविधान का हवाला देकर या उसकी ख़ामोशी का लाभ इन्हीं राजदलों ने उठाया है. इसके लिए अकेले भाजपा को ही दोष देना गलत है. कांग्रेस भी अब तक ऐसा ही करती आयी है. ऐसे में भाजपा या कांग्रेस ही नहीं, सारे के सारे दल ‘एक ही थैली के चट्टे बट्टे’ लगते हैं! अब किस-किस को दोष दें, जब अपने ‘वोट में ही खोट’ है! कर्नाटक की जनता यदि ‘त्रिशंकु जनादेश’ नहीं देती तो आज यह नौबत ही नहीं आती.

यहां कड़वा सच यही है कि कर्नाटक की जनता ने भले ही भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं दिया हो, मगर उसका स्पष्ट जनादेश कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से दूर रखने का था. तभी तो वह मात्र 78 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस की हार उसके पतन का मर्सिया पढ़ने जैसी थी. फिर भी उसने देशभर में ‘लोकतंत्र बचाओ मार्च’ निकाल कर खुद को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया. …और सत्ता की मंजिल तक पहुंचने के लिए कुमारस्वामी के कंधों का सहारा पा लिया. अपने दम पर कोई ‘विजय पताका’ फहराए, तो उसे असली योद्धा और विजेता कहते हैं, …वरना दूसरों के कंधों पर तो मुर्दे जाया करते हैं!

उधर, ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ करने की जिद ही भाजपा को ‘लोकतंत्र के चीरहरण’ के लिए उकसाती है. वह अपने ‘कमल’ के मजबूत शूलों से कांग्रेस के जर्जर ‘पंजे’ को तोड़ने-फोड़ने लगी. इसीलिए कांग्रेसियों की सांस और आस कर्नाटक पर ही टिकी थी, मगर भाजपा के धनबल ने कांग्रेस के मनोबल को तोड़ने की कोशिश विफल हो गयी. इससे धनतंत्र के सामने जनतंत्र हारते-हारते रह गया. लोकतंत्र की इससे बड़ी शोकांतिका और क्या होगी?

गूंगों के देश में अंधों की भेड़ चाल है।
लोकतंत्र हार गया, राजतंत्र मालामाल है।।

                                  –  सुदर्शन चक्रधर 96899 26102

 

Tags: #सुदर्शन चक्रधर
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