ओरछा के ‘रुद्राणी बुंदेली कलाग्राम व शोध संस्थान’ में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए पाँच दिवसीय “भारतीय फिल्म महोत्सव ओरछा2018” की दिव्य्गामी सफलता पर संस्कृति अनुरूप इस महाभियान को सफल बनाने के लिए लिप्त हुए कण कण के योगदान का ह्रदय से आभार व्यक्त किया अभिनेता, लेखक, महोत्सव के आधार, बुंदेलखंड युवा प्रेरक राजा बुन्देला ने ! उनकी अभिव्यक्ति सीधे शब्दों में ..
भारतीय फिल्म महोत्सव ओरछा2018′ में पधारे सम्मानीय अतिथि!
मैं, राजा बुन्देला आपका हृदयतल से आभारी हूँ।
आपको बार-बार धन्यवाद अदा करता हूँ कि गत दिनों बुन्देलखण्ड की पावन धरती ओरछा के ‘रुद्राणी बुंदेली कलाग्राम व शोध संस्थान’ में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए पाँच दिवसीय “भारतीय फिल्म महोत्सव ओरछा2018” में अपनी गौरवमयी उपस्थिति दर्ज़ करके आपने महोत्सव का मान बढ़ाया और क्षेत्रीय कला को सराहा, कलाकारों का मनोबल दोगुना किया।
यह हमारा सीमित संसाधनों में लेकिन असीमित इच्छाशक्ति का प्रथम प्रयास था जिसमें निःसन्देह कई त्रुटियाँ रह गयी होंगीं। इसके लिए क्षमाप्रार्थी होने के साथ आपसे आपके अनुभव व सुझाव हम से साझा करने के अपेक्षी हैं।
महोत्सव का शुभारम्भ उषा की प्रथम किरण से भारत के प्राचीन दैनिक-विधि योग से होता था। तत्पश्चात कलेवा और फिर सिने-जगत से पधारे ज्ञानविदों के निर्देशन में कार्यशालाएं होती थीं। जिनमें श्री मनोहर खुशलानी जी, केतन आनन्द जी, सुश्री रोहिणी हट्टनगनी, सुश्री नफीसा अली, श्री रजित कपूर, श्री यशपाल शर्मा के समृद्ध अनुभव कक्षाओं में शिक्षा की तरह बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के उन छात्रों ने विनीत भाव से ग्रहण किया जिनमें माद्दा है भविष्य के निर्देशक, अभिनेता और कला-तकनीकीविज्ञ के रूप में अपना हुनर दिखाने का।
बुन्देलखण्ड की धूप बहुत तीखी होती है। इसमें नदियों के पानी को सोख लेने की क्षमता होती है। तिस पर सूरज का पारा कभी पैंतालीस डिग्री तो कभी उससे अधिक। ऐसी घोर तपन में ‘टपरा टॉकीज’ का चलना और उन्हें भरपूर श्रोताओं का मिलना निश्चित ही जाहिर करता है कि यह ज़मीन फ़िल्म प्रेमियों की है। इसी सोच को साकार रूप देने के लिए हमने ‘टपरा टॉकीज कॉन्सेप्ट’ को मूर्त रूप दिया। जो सोचे गये अनुमान से कहीं अधिक सफल रहा। एक टपरा टॉकीज क्षेत्रीय-निर्देशकों/ अभिनेताओं/ निर्माताओं लिए रिज़र्व थी। उन उनकी फिल्मों का प्लेटफॉर्म था।
यह सिद्ध करता है कि जहाँ एक ओर इस भूमि को ऐसे महोत्सवों की आवश्यकता है तो दूजी
ओर फ़िल्म स्थापित करना महती आवश्यक है। क्योंकि रुचिपरक व्यक्ति यह भूमि त्याग मुम्बई जा बसेगा तो यह ज़मीन हुनर से खाली हो जाएगी। साथ ही उनका घर-परिवार उनसे वंचित हो जाएगा और शुरू होगी उनकी भटकन। क्योंकि आवश्यक तो नहीं कि पलायन करके गये हर व्यक्ति को वांछित स्थान मिले अथवा सही निर्देशन मिले। साथ यह भी कि और स्त्रियाँ तथा बच्चे व बुजुर्ग सिनेमा से जुड़ें। क्योंकि हम सिनेमा की जमीन से सम्बन्ध रखते हैं तो कम से कम अपनी उपलब्धि इस रूप में ही अपने लोगों तक पहुंचा सकें। यही विचार ‘टपरा टॉकीज’ को स्थापित करने का मूल बना। हालांकि इससे पहले हम यह प्रयोग ‘अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव खजुराहो’ (KIFF)में कर चुके हैं। इसका दोहराव हमने ‘भारतीय फिल्म महोत्सव ओरछा2018’ (IFFO)में किया। इसलिये हम मानक सन्दर्भों में iffo को ‘मिनीkiff’ का रूप कह सकते हैं। जिसमें अभिकल्पना व सज्ज़ा सिने-जगत के मशहूर आर्ट डारेक्टर श्री जयंत देशमुख के साथ पूर्वतैयारी का ख़ाका श्री सुष्मिता मुखर्जी ने तय किया। इसी श्रंखला के तहत हम अपने अगले पड़ाव क्रमशः देवगढ़, दतिया, चित्रकूट व चंदेरी महोत्सव की तैयारियों में जुट गए हैं।
हम आभारी हैं उन सरस्वती के वरदहस्त पुत्रों के जिन्होंने बुन्देलखण्ड में जन्म अवश्य लिया है किंतु वैश्विक स्तर पर यशोगान अर्जित किया है। श्री अयोध्या प्रसाद गुप्त ‘कुमुद’, श्री महेंद्र भीष्म, श्री विवेक मिश्र , मेयारी के शायर श्री रमीज़ दत्त साहब, अपने आवश्यक कार्यों से समय चुरा के हमें आशीष देने आए।
हम आभारी हैं उन राजनैतिक व्यक्तित्वों के जिन्होंने इस महोत्सव में आकर जनसामान्य को अपने कलाधर्मी होने का सन्देश देकर कला संरक्षण व संवर्धन हेतु चिंता व्यक्त की। भारत सरकार केंद्रीय राज्य मंत्री माननीय डॉ. वीरेंद्र कुमार , राज्यमंत्री उ.प्र. शासन मंत्री माननीय हरगोविंद कुशवाह, भारत सरकार महिला बालविकास राज्यमंत्री माननीया ललिता यादव, भारत सरकार केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायतीराज स्वच्छता एवं पेयजल मंत्री माननीय नरेंद्र सिंह तोमर, लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, आुयष, म्. प्र. शासन मंत्री माननीय रुस्तम सिंह जिलाधिकारी ललितपुर श्री मानवेन्द्र सिंह, कलेक्टर टीकमगढ श्री अभिजीत अग्रवाल, एसडीएम निवाड़ी श्री प्रेम सिंह चौहान, सीएमओ ओरछा श्री दिनेश तिवारी, पूर्व विधायक श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर, जिला भाजपा अध्यक्ष श्री अभय प्रताप सिंह ने अपने कीमती समय से समयदान देकर महोत्सव को गरिमा प्रदान कर कलाओं के सापेक्ष अपनी दर्शकधर्मिता निभाई एवं भविष्य में इस तरह के आयोजनों की अपरिहार्यता व्यक्त की।
सांध्य रंगारंग प्रस्तुतियाँ जिनमें शामिल थे नाटक, गीत-संगीत और नृत्य जिनमें मुम्बई के साथ लोकांचल में बिखरे आयामों को समेटा गया था; यथा राई, बधाई, फागें, लमटेरे, होरी, आदि। इनकी आद्योपांत साक्षी रहीं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की छात्रा, रंगमंच की सशक्त अदाकारा श्री सुष्मिता मुखर्जी; जिन्होंने क्षेत्र के दूर-दराज से आये लोक-कला प्रतिनिधियों को न केवल सराहा बल्कि सभी प्रस्तुतियों का विनीत भाव से आभार प्रकट किया।
हम आभारी हैं उनके जो जनप्रतिनिधि के रूप में हमारे साथ थे; तालबेहट नगर पंचायत अध्यक्ष सुश्री मुक्ता 0सोनी, समाजसेवी सुश्री अर्चना गुप्ता, श्री आलोक सोनी, अर्जुन अवॉर्डी ओलंपियन अशोक ध्यानचंद, श्री संतराम, श्री पवन शर्मा, सुश्री रीमा, डॉ कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, श्री उमेश यादव, पं. विपिन बिहारी, डॉ. आर आर सिंह, श्री जयकरण निर्मोही, श्री प्रकाश गुप्ता, श्री नारायण चाट भंडार,
साक्ष्यभाव से ये उद्गार व्यक्त करते हुए हमारा कंठ रुंध जाता है और आँखें भर आती हैं कि आयोजन की रूपरेखा बनाते समय जिन कठिनाइयों को सामने रख के विचार कर रहे थे, मूर्तरूप आते-आते वे कठिनाइयाँ कई गुनी दृश्यमान हुईं। तथापि हमारी टीम ने हमें हर समय दिलासा बंधाये रखी, हमें टूटने नहीं दिया और हमने यह पायदान चिन्हित किये गए मापदण्ड से अधिक अंकों के अर्जन के साथ पार किया।
आप सबकी भागीदारी इसे विशेष बनाती है कि इस भीषण गर्मी के मौसम में आपका आना, और सामान्य यायावर की भाँति भूमि के कोनों तक का भ्रमण करना और आमदर्शक बन के अतिरेक आनन्द के साथ नाटकों, संगीतमयी प्रस्तुतियों में रम जाना, यह हमारी हर्षातिरेक उपलब्धि है।
इस आभारपाती का का आशय है कि आपने हमें कितना जाना? कितना समझा? और कहाँ-कहाँ ऐसा पाया कि ‘रुद्राणी बुंदेली कलाग्राम व शोध संस्थान ओरछा’ की धरती पर रचा गया यह त्योहार इससे भी बेहतर हो सकता था?
महोत्सव के धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व ये रहे; कि नियत तिथि 18 मई से 22 मई तक चलने वाला पावन नक्षत्र पुष्य का होना, जो जनता-जनार्दन में महोत्सव में सांस्कृतिक समागम पाता है, साथ ही एक वैशिष्ट्य प्रयोग वह ये कि माँ वेतृवंती की आरती की नवीन परम्परा। क्योंकि जहाँ एक ओर माँ बेतवा को मध्यप्रदेश की जीवनरेखा कहा जाता है तो दूजी ओर उन्हें मध्यप्रदेश की गंगा मैया भी कह के जन अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। माँ बेतवा की आरती समग्रता का रूप धर कर परम्परा के रूप में सहेजी जाये ऐसी मंशा के साथ आगामी समय में हम बुन्देलखण्ड की भूमि पर इस तरह के आयोजन के लिए कटिबद्ध हैं। ताकि फिल्में, नाटक और कलाएँ जनसरोकार बन के हमारे साथ-साथ चलें तथा विश्व पटल पर दस्तक दें और हमें आप सब के अनुभवों से समृद्ध कर दें।
यदि आप अपने सुझाव और विचार हमें उन्मुक्त कंठ से प्रदान करेंगे तो हम अपने भविष्य के आयोजनों को उन त्रुटियों से मुक्त कर उन्हें सम्पूर्णता प्रदान करने का साहस कर सकेंगे।
हमारी IFFO टीम आपके बताये गये दिशानिर्देश के लिए आग्रही है, जिन्हें श्री सुष्मिता मुखर्जी व श्री राम बुन्देला ने इसी भूमि से खोजा है-
सर्वश्री जगमोहन जोशी, आरिफ़ शहडोली, गीतिका वेदिका, सरिता चौधरी, नईम खान, आर के वर्मा, कंचन किशोरऔर इन के साथ अथक श्रमदान देने वाले हुनरमन्द हैं- सर्वश्री मातादीन कुशवाहा, अरूण कांटे, विशाल मियाँदाद, अभय द्विवेदी, राकेश विश्वकर्मा, विराज तिवारी, दिनेश, नम्रता, तेजल, ओमकार, ज़ावेद, प्रवीण झा व राजेश्वर राज।
फिल्मों का उत्सव सिनेमाई रंगीनी बन कर महज़ पर्दे तक सीमित न रहे रह जाये वरन धरती पर उतरे, जनभागीदारी का महोत्सव बने और आप सब पुनः इस धरती पर पधार कर इसे सिनेमाई ऊंचाईयां प्रदान करें। इसी आशा के साथ आप सबकी विस्तृत प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में-
आपका
राजा बुंदेला
भारतीय फिल्म महोत्सव ओरछा2018’सहित
टीम IFFO व
टीम KIFF
ईमेल- iffofest@gmail.com


