पुणे (तेज समाचार डेस्क). साधु वासवानी मिशन के प्रमुख दादा वासवानी का गुरुवार सुबह पुणे में निधन हो गया. वे 99 वर्ष के थे. पिछले कुछ समय से बीमार थे. 2 अगस्त को उनका 100वां जन्म दिन था, लेकिन अपना 100वां जन्म दिन मनाने के पूर्व ही उन्होंने शरीर त्याग दिया. उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए पुणे के साधु वासवानी मिशन में रखा गया है. शुक्रवार की शाम उनका अंतिम संस्कार साधु वासवानी मिशन में ही किया जाएगा. दादा शाकाहार को बढ़ावा देने और पशुओं के संरक्षण के लिए मुहिम चला रहे थे. उन्होंने 150 से ज्यादा किताबें लिखीं.
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दादा वासवानी का पूरा नाम जशन पहलराज वासवानी था. उनका जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में 2 अगस्त 1918 को हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दादा के 99वें जन्मदिन पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए शुभकामनाएं दी थीं. इस दौरान मोदी ने बताया था कि दादा से उनकी पहली मुलाकात संयुक्त राष्ट्र के विश्व धार्मिक सम्मेलन में 27 साल पहले हुई थी.
मोहन भागवन ने भी जताया दु:ख
दादा वासवानी के शरीर त्याग पर सरसंघचालक मोहन भागवत और पुणे से सांसद अनिल शिरोले ने शोक जताया है. अपने शोक संदेश में मोहन भागवत ने कहा कि दादा वासवानी जैसे संत शिरोमणि का इस तरह शरीर त्याग देना हम सभी के लिए वेदनादायक घटना है. पवित्रता, सबके प्रति आत्मियात, दु:खियों के प्रति करुणा, सेवा, तपस्या आदि दैवी गुणों की साकार मूर्ति बन कर सभी के श्रद्धा, विश्वास तथा धैर्य को कायम रखनेवाले दादा वासवानी जैसे संतों के कारण ही सभी परिस्थितियों में समाज जीवन आगे बढ़ता रहता है. हम सभी के उस विद्यमान आधार को हमने खो दिया है.
सांसद अनिल शिरोल ने कहा कि दादा वासवासी हम सभी पुणे वासियों के श्रद्धास्थान थे. वे आजीवन शाहाकर का प्रचार व प्रसार करते रहे. उन्होंने सदैव ही गरीबों की मदद की और लोगों को भी गरीबों की सेवा का ही संदेश दिया.
विदित हो कि अगले माह दादा वासवानी का 100 वां जन्मदिन मनाया जाना था, जिसके लिए मिशन बड़े समारोह की योजना बना रहा था. दो अगस्त 1918 को पाकिस्तान के हैदराबाद शहर में जन्मे दादा वासवानी पुणे के एक अध्यात्मिक एनजीओ साधु वासवानी मिशन के प्रमुख थे. यह संस्था सामाजिक और दान पुण्य संबंधी कार्य करती है.
जशन पहलराज वासवानी उर्फ़ दादा वासवानी के बारे में
2 अगस्त, 1 9 18 को हैदराबाद-सिंध में एक पवित्र सिंधी परिवार में जन्मे, दादा जेपी वासवानी एक सार्वभौमिक रूप से प्रशंसित मानवतावादी, दार्शनिक, शिक्षक, लेखक, शक्तिशाली वक्ता, अहिंसा के मसीहा और गैर-सांप्रदायिक आध्यात्मिक गुरु थे. वह शाकाहार और पशु अधिकारों को बढ़ावा देने के क्षेत्र में भी काम कर रहे थे.
दादा वासवानी अपने गुरु, साधु टीएल वासवानी द्वारा स्थापित साधु वासवानी मिशन के आध्यात्मिक प्रमुख थे. साधु वासवानी मिशन पुणे मुख्यालय का एक गैर-लाभकारी संगठन है. दादा वासवानी ने 150 से अधिक आत्म-सहायता किताबें लिखी हैं.
पिछले चार दशकों से, दादा वासवानी पूरी दुनिया में प्यार और शांति का संदेश प्रसारित कर रहे थे. दादा के जन्मदिवस को मोमेंट ऑफ़ काल्म के नाम से भी जाना जाता है.दुनिया भर में, लोग 2 अगस्त (उनके जन्मदिन पर) को दो मिनट का मौन रखते हैं. इस मौन के दौरान लोग अपनी जिंदगी में सभी लोगों को माफ करते हैं. आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने भी इस पहल की सराहना की थी.
दादा वासवानी के बारे में बताया जाता है कि वह एक शानदार छात्र थे, उन्हें डीजे सिंध कॉलेज में अपनी कक्षा में पहले खड़े होने के लिए एक फैलोशिप से सम्मानित किया गया था. नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन ने एक्स-रेज़ द्वारा सॉलिड्सकी स्कैटरिंग पर उनकी एमएससी थीसिस की जांच की थी. यद्यपि दादा के निष्कर्ष सीवी रमन के साथ विचलन में थे, लेकिन उनके विचारों की मौलिकता ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक को प्रभावित किया.
दादा ने अपने गुरु साधु टीएल वासवानी के आदर्शों का पालन करने के लिए शिक्षाविदों का करियर छोड़ दिया. और मिशन के कार्यों में लग गए. अपने गुरु के आदर्शों को प्रचारित करने के लिए, उन्होंने तीन मासिक पत्रिकाओं एक्सेलसियर, इंडिया डाइजेस्ट और ईस्ट एंड वेस्ट सीरीज़ का संपादन भी किया. एक्सेलसियर, एक युवा जर्नल, इतना लोकप्रिय हो गया कि यह दैनिक समाचार पत्र, सिंध पर्यवेक्षक से आगे बढ़ गया.
उनकी सर्वश्रेष्ठ बिकने वाली किताबों के कारण, दादा को एक महान प्रेरणादायक लेखक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने शिकागो में विश्व संसद की संसद, कोलंबो में विश्व हिंदू सम्मेलन, आध्यात्मिक नेताओं के वैश्विक मंच और क्योटो, संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विश्व शांति शिखर सम्मेलन और लंदन में हाउस ऑफ कॉमन्स में संसद सदस्यों जैसे प्रमुख मंचों को भी संबोधित किया. उन्हें विश्व शांति के कारण उनकी समर्पित सेवा के लिए अप्रैल 1 99 8 में यू थांत शांति पुरस्कार मिला. पशु प्रेमियों ने उन्हें अहिंसा के एक प्रेषक के रूप में सम्मानित किया गया. उनकी मानवीय भावना जाति, पंथ, रंग और धर्म से आगे है. दादा ने हमेशा सकारत्मक सन्देश दिया कि समस्याओं और चुनौतियों का सामना डट कर करें .
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