सोलह जुलाई 1981 की तारीख़ थी .भारत के महान हिंदी संपादक राजेन्द्र माथुर ने मुझे कुलदीप नैयर का एक आलेख अनुवाद के लिए दिया .उनके नाम से उसी दिन परिचित हुआ . उनका लेख संपादकीय पन्ने पर प्रकाशित होता था . वर्षों बाद दिल्ली में उनसे मिला तो उन्होंने कहा ,देश विदेश के अस्सी से ज़्यादा पत्र पत्रिकाओं में लिखता हूँ पर सबसे अच्छा अनुवाद आपके अखबार में होता है . शब्दानुवाद नहीं होता भावानुवाद होता है . इसके बाद उनसे लगातार मुलाक़ातें हुईं .खुशवंत सिंह पर फ़िल्म बना रहा था तो उनसे मिला था . वो अपनी किताब खुशवंत सिंह को भेंट करने गए थे . हम भी साथ में थे.कैमरे के साथ . उन्होंने खुशवंत सिंह से कहा,आप मेरे गुरु हो,प्रोफेसर हो ‘. मैं यह सुनकर दंग रह गया . एक लेखक – पत्रकार एक दूसरे का ऐसा सम्मान कर सकते हैं ,मेरी कल्पना से परे था . मैंने उन पर भी फ़िल्म बनाने का तय किया था . लंबी बातचीत भी की थी . अफसोस ! उनके रहते न बन पाई . बीते दिनों एक कार्यक्रम में हम दोनों एक ही मंच पर थे .वह कार्यक्रम पाकिस्तान से अच्छे रिश्तों पर था . दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की हसरत लिए वे इस जहाँ से विदा हो गए .मेरे लिए तो व्यक्तिगत क्षति है .मुझे हमेशा वो अपने विशिष्ट अंदाज़ में रजेश ही बुलाते थे .
कुलदीप नैयर सिर्फ़ पत्रकार ही नहीं थे . वे भारत के एक ऐसे प्रतिनिधि राजदूत थे, जिसने सारी दुनिया में भारत की आवाज़ अपनी कलम के ज़रिए मुखर की . सियालकोट में जन्में कुलदीप नैयर ने एक सप्ताह पहले ही चौदह अगस्त को अपना जन्म दिन मनाया था . ज़िन्दगी का शतक पूरा करने में पांच साल रह गए . लाहौर से पढ़ाई की .फिर वहीं से कानून पढ़ा . नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी से उन्होंने मीडिया की पढ़ाई की और फिर अनेक भूमिकाओं में वे नज़र आए .एक पत्रकार के रूप में चौदह भाषाओं केअस्सी से अधिक समाचार पत्र पत्रिकाओं में लिखना विश्व रिकॉर्ड है,जो कभी नहीं टूटेगा . ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे,भारत सरकार के मुख्य सूचना अधिकारी रहे, राज्यसभा के सदस्य रहे,आपातकाल के दौरान जेल भेजे गए थे .स्टेट्समैन के संपादक के तौर पर इस अखबार ने वैचारिक ऊंचाईयां हासिल कीं .
इसके बावजूद उन्होंने हमेशा अपने को एक साधारण नागरिक ही माना . मानव अधिकारों को लेकर उनकी दुनिया भर में पहचान थी . भले ही इंदिरागांधी के कार्यकाल के दौरान जेल गए ,लेकिन उनके पिता जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री,खुद इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,विश्वनाथ प्रताप सिंह ,इंद्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनेता उनसे अंतरराष्ट्रीय मसलों पर अपनी राय लेते थे . पाकिस्तान से जुड़े मसलों पर तो उन्हें महारथ हासिल थी . जितने लोकप्रिय भारत में ,उससे ज़्यादा पाकिस्तान में . भुट्टो से लेकर नवाज़शरीफ तक सभी उनकी क़द्र करते थे . दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों के लिए करीब बीस साल केंडल मार्च आयोजित करते रहे . दोनों देशों की जेलों में बंद सज़ा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई के लिए भी उन्होंने बहुत काम किया .
करीब बीस किताबों के लेखक कुलदीप नैयर नागरिक अधिकारों की रक्षा और सामाजिक सरोकारों के लिए हमेशा याद किए जाएँगे . अपने आप में वे एक ऐसे संस्थान थे,जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता था . वे सदी के पत्रकार थे . हमने उनसे बहुत कुछ सीखा है . आने वाले अनेक वर्षों तक कुलदीप नैयर जैसा पत्रकार,लेखक मिलेगा,कहना मुश्किल है .