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भारत बंद के बहाने बेईमान विरोध

Tez Samachar by Tez Samachar
September 12, 2018
in Featured, विविधा
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भारत बंद के बहाने बेईमान विरोध

कांग्रेस मुग्ध है. दावा है कि पेट्रोल और डीजल बढ़ते दामों के विरोध में उसका 10 सितम्बर का भारत बंद सफल रहा. कहने को इस भारत बंद को 21 विपक्षी दलों का समर्थन हासिल था लेकिन इनमें से कुछ मरणासन्न हालत में हैं. दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी ने बंद को फ्लॅाप बताया है. दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं. इन दावों से हट कर देखने पर उन मीडिया रिपोर्टों पर अधिक विश्वास होता है जिनमें भारत बंद को आंशिक रूप से सफल कहा गया है. साफ है कि इतनी मगजमारी के बाद भी कांग्रेस को कुछ विशेष हासिल नहीं हो सका. बंद की सफलता संबंधी कांग्रेसी दावे का आखिर आधार क्या है? यदि, बंद की आड़ में सरकारी और निजी वाहनों पर किए गए हमले, लोगों को डरा-धमका कर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का बंद कराया जाना, सडक़ों पर बंद समर्थकों की गुण्डागर्दी, सडक़ों पर टायर जला कर लोगों को आतंकित करना, कुछेक यात्री टे्रनों का आवागमन अवरूद्ध करने की कोशिशें और टे्रन  पर पथराव जैसी घटनाओं के आधार पर बंद को सफल बताया जा रहा है तो दुर्भाग्यपूर्ण बात है. ऐसा दावा खोखला ही कहा जाएगा. लोकतंत्र में जनहित के मुद्दों पर राजनीतिक विरोध और बंद जैसे आह्वान सरकार को चेताये रखने के सशक्त साधन माने गए हैं. कानून के दायरे में रहते हुए और आमजन को परेशान किए बगैर किया गया विरोध सही होता है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान नोटिस किया गया कि आम आदमी उन्हीं विरोध प्रदर्शनों और बंद आह्वानों के समर्थन में खड़ा हुआ जहां वह इसके मकसद को लेकर संतुष्ट था. आज का आम आदमी जनहित की भावना और राजनीतिक दलों के स्वहित यानी लोभ से प्रेरित बंद और विरोध प्रदर्शनों का अंतर समझने लगा है. यही कारण है कि स्वस्फूर्त बंद अब कम दिखाई देते हैं. अधिकांश मामलों में देखा यह गया की गुंडागर्दी और तोडफ़ोड़ से बचने के लिए लोग घरों से बाहर नहीं निकलते. लोग कामधंधे से छुट्टी ले लेते हैं.

कथित भारत बंद के मौके पर राहुल गांधी राजघाट पहुंचे और महात्मा गंाधी की समाधि पर उन्होंने मानसरोवर जल अर्पित किया. जाहिर है कि इसके पीछे मंशा पब्लिसिटी बटोरने की रही होगी. बंद के माहौल को बनाए रखने और शक्ति प्रदर्शन की मंशा से कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर सभा आयोजित कर डाली. सभा में अनेक विपक्षी नेता मौजूद थे. मंच पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहनसिंह को बैठाए जाने का गणित भी राजनीति की मामूली समझ रखने वाले जान चुके होंगे. खास बात यह रही कि मंच पर ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव और मायावती जैसे विपक्षी नेता नजर नहीं आए. इनकी गैरमौजूदगी के अपने मायने हैं. क्या इसे कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए एक बड़ा झटका नहीं मानना चाहिए? क्योंकि इससे राहुल गांधी के बंद पड़े कॅरियर-कपाट फिलहाल खुलते नजर नहीं आए हैं. कल एक टीवी एंकर यह कहते सुना गया कि पेट्रोल-डीजल के ऊँचे दाम तो सिर्फ बहाना है, राहुल गांधी के लिए 2019 निशाना  है. इस टिप्पणी में अनुचित कुछ नहीं लगता. जनहित के सवाल पर सरकार पर दबाव बनाना विपक्ष का धर्म है. कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि उसके राजधर्म में भी पाखण्ड की बू आती है. इस बात में संदेह नहीं की पेट्रोल और डीजल के दाम बढऩे से आम आदमी परेशान है लेकिन वह यह जानता है कि इस मुद्दे पर विपक्ष के विलाप के पीछे वजह कुछ और है. पिछले डेढ़-दो साल के दौरान सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा की गईं कोशिशों को याद करें. एक बात मोटेतौर पर समझ आती है कि मोदी सरकार को नाकाम साबित करने के लिए ऐड़ी-चोटी एक कर दी गई है. यह अलग बात है कि किसी भी आरोप के साथ प्रमाण देने में विपक्ष नाकाम रहा. कांग्रेस के लिए कुढऩे वाली बात यह है कि इतने आरोपों के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल करने में विपक्ष को सफलता नहीं मिल सकी. उदाहरण के लिए लड़ाकू विमान राफेल को लेकर लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को लें. राहुल गांधी, कांग्रेस के अधिकांश बड़े नेता और प्रवक्ता लगभग हर दूसरे दिन राफेल मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाते रहते हैं. कांग्रेसियों की इन बातों पर कितने आम लोग विश्वास कर पाए. मुसलमानों और दलितों पर अत्याचार के मामले बढऩे की बात की जाती है. इस आरोप तक लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. नोटबंदी के मुद्दे पर स्वयं राहुल गांधी सैंकड़ों बार मोदी के विरूद्ध बोल चुके हैं. नि:संदेह नोटबंदी से एक बड़े वर्ग को परेशानी हुई है. इसके बाद भी आम आदमी मोदी से नाराज नहीं आता. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के मोदी विरोध-गान से भाजपा को लाभ ही मिल रहा है. राहुल गांधी और कांग्रेस के लोग मोदी के विरोध में इतना अधिक बोल चुके हैं कि उनके बयानों में लोगों को रत्तीभर गंभीरता नजर नहीं आती.

भारत बंद को देशव्यापी समर्थन नहीं मिलने की एक बड़ी वजह यह है कि अब लोगों को कांगे्रस की बातों पर भरोसा नहीं होता है. आम आदमी महसूस कर रहा है कि अगर मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल के  दामों में काबू में नहीें कर पा रही है तो उसके पीछे कोई ठोस वजह होगी. ऐसा तो नहीं हो सकता कि राजनीतिक बिरादरी के सबसे अधिक ज्ञानी राजनेता सिर्फ कांग्रेस और उन 21 दलों में भरे हैं जो कल एक मंच पर नजर आ रहे थे. औसत बुद्धि इंसान तक जानता है कि कोई भी सरकार ऐसी हठधर्मिता नहीं दिखाएगी जो उसे सिरे से अलोकप्रिय बना दे. विश£ेषक मानते हैं कि पेट्रोल और डीजल के दाम जल्द  ही कम हो सकते हैं. सरकार जल्दबाजी में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जिससे कांग्रेस या उसके सहयोगी दल सरकार को झुका लेने का श्रेय लूटने लगें. भाजपा और मोदी सरकार जानतीं हैं कि राफेल सौदे की तरह पेट्रोल-डीजल के दामों को लेकर जनता को सरकार के खिलाफ बरगलाने की कोशिशें की जा रहीं हैं. तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है. उदाहरण के लिए कांगे्रस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला के उस बयान का याद करें जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत की तेल कम्पनियां बांग्लादेश को 35 रुपये लिटर पेट्रोल बेचतीं हैं. सुरजेवाला बड़ी चतुराई से इस सच्चाई को पी गए कि निर्यात किए जाने वाले पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बगैरह नहीं लगती. उन्हें नहीं मालूम होगा कि यही पेट्रोल बांग्लादेश में 76 रुपये लिटर बेचा जाता है. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्चे तेल के उत्पादकों द्वारा उत्पादन में कटौती किए जाने से इसके दाम बढ़ गए हैं. इस समय ब्रिटेन में पेट्रोल भारतीय रुपये के अनुसार 122 रुपये प्रति लिटर की दर से बेचा जा रहा है. इसके अलावा चीन में 88 रुपये, फ्रांस में 130 रुपये, जापान में 96 रुपये और नेपाल में 70रुपये प्रति लिटर पेट्रोल के दाम बैठ रहे हैं. एक अन्य बड़े तथ्य को कांगे्रस छिपा रही है. सन 2004 से 2014 के बीच कांगे्रस की अगुआई वाली संप्रग सरकार के समय पेट्रोल के दामों में 75.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक पेट्रोल के दामों में सिर्फ 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

पेट्रोल-डीजल के दामों को कम करने का एक ही रास्ता नजर आ रहा है. सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना होगा. समस्या यह है कि अधिकांश राज्य इसके पक्ष में नहीं हैं. राज्यों द्वारा लगाए गए वैट की मनमानी दरों ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम आसमान में पहुंचाने में बड़ा योगदान दिया है. वैट की दर को तर्कसंगत करके भी उपभोक्ताओं को काफी राहत दी जा सकती है. इस समय पेट्रोल-डीजल के दामों की आड़ में विपक्षी दलों के खेल ने सरकार को परेशान अवश्य किया होगा. यह कहना गलत होगा कि सरकार किसी प्रकार के दबाव में नही है. इस तरह का दबाव तब पीड़ादायक हो सकता है जब बात को गलत ढंग से प्रचारित कर राजनीतिक फायदे का खेल खेला जाने लगे. भारत बंद के आह्वान से यही किया गया. यह एक तरह का बेईमान विरोध था. इसमें झूठ फैलाया गया, लोगों को बरगलाने के प्रयास हुए और सरकार पर दबाव बनाने के लिए सडक़ छाप हथकंडे अपनाये गए. कांग्रेस में हिम्मत थी तो सिर्फ बंद का आह्वान करती, जिसको उसकी बात पसंद आती वह स्वयं ही बंद को समर्थन देता. कांग्रेसी नेता क्यों घूम-घूम कर बंद करवा रहे थे. कांगे्रस के आह्वान मात्र पर दो नगर भी बंद को पूरा समर्थन देते तब मान लिया जाता कि राहुल गांधी की बातें और विचार आम आदमी को रास आने लगे हैं. हुल्लड़ और हुड़दंग के बूते आमजन को आतंकित कर कुछेक स्थानों पर दुकानें बंद करवा लेने को भारत बंद की सफलता नहीं कहा जा सकता.

अनिल बिहारी श्रीवास्तव,

एलवी-08, इंडस गार्डन्स, गुलमोहर के पास,

भोपाल 462039

फोन: 0755 2422740

मोबाइल: 09425097084

Tags: #Current Affairs #India #Politics #Rahul Gandhianilbihari srivastav
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