जलगाँव ( तेज़समाचार प्रतिनिधि ) – प्राचीन काल में “सुलेख ” यानि कैलीग्राफी का बहुत महत्व था, चाहे वह राजा महराजाओं के आदेश हो या इतिहास का वर्णन, कैलीग्राफी के ही माध्यम से किया जाता था. किंतु अब “सुलेख ” यानि कैलीग्राफी विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी कलाओं में से एक है.
जलगाँव जिले में वैसे तो कैलीग्राफी क़ला का प्रयोग करने वाले बहुत से कलाकार हैं, लेकिन शौकिया तौर पर कैलीग्राफी करने वाली कुछ छिपी प्रतिभाए मौजूद हैं.
जलगाँव के रतनलाल सी. बाफना ज्वेलर्स में विगत 25 वर्षों से जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्यरत मनोहर पाटिल कैलीग्राफी के माहीरों में से एक हैं. अपने सहयोगियों में काका श्री के नाम से प्रचलित मनोहर पाटिल बताते हैं कि 25 वर्ष पूर्व उनके सुंदर हस्ताक्षर व सुलेख लेखन के चलते ही उन्हे जनसंपर्क अधिकारी की नौकरी हासिल हुई है.
मनोहर पाटिल ने इस दीपावली पर इसी सुलेख लेखन के माध्यम से दीवाली शुभकामना देते हुए एक वीडियो जारी करते हुए एक अनोखे अंदाज़ को प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया. सोशल मीडीया पर लगातार सज़ग बने रहने वाले मनोहर पाटिल के इस शुभकामना अंदाज़ से ही उनकी छिपी प्रतिभा का खुलकर प्रसार हुआ.
मनोहर पाटिल का वीडियो देखें –
मनोहर पाटिल ने बताया की उन्हे बचपन से ही सुंदर लेखन का शौक था. विद्यालय जीवन में जब उनके साथी पढ़ाई किया करते थे तब वह इसी तरह के सुंदर अक्षर बनाने, चित्रकारी करने में अधिक समय व्यतीत किया करते थे. इसके लिए उन्होने किसी भी प्रकार की व्यवसाईक या अनुभव शिक्षा नही ली. सिर्फ़ अपनी मेहनत, लगन, शौक के माध्यम से ही मनोहर पाटिल ने ” कैलीग्राफी ” में खुद को स्थापित किया है.
मनोहर पाटिल बताते हैं कि सार्वजनिक रूप से उन्होने दीवाली शुभकामना का वीडियो सोशल मीडीया में वायरल करते हुए पहली बार इस छिपी प्रतिभा को सबके सामने प्रस्तुत किया है.
जलगाँव के रतनलाल सी. बाफना ज्वेलर्स में 25 वर्ष पहले जनसंपर्क अधिकारी के रूप में जुड़ने के अपने अनुभव को सांझा करते हुए मनोहर पाटिल ने बताया कि वह पहले फिल्मों के पोस्टर बनाया करते थे. मुझे फ़िल्मे देखने का शौक था. इसी शौक को पूरा करते हुए मैने सिनेमा थियटर भी बनाया . साथ में मैने टुरिंग कैंप चलना प्रारंभ किया. वर्ष 1993 में मनोहर पाटिल के परिवार की आर्थिक नौका डगमगा गई. ओर परिवार क़र्ज़ के साए में डूब गया. उनके परिवार को सिनेमा थियटर भी बेचना पड़ा.घर की आर्थिक परिस्थिति भी अच्छी नही थी. रोजाना के खाने के भी लाले थे.
उसी समय मनोहर पाटिल ने जलगाँव के रतनलाल सी. बाफना ज्वेलर्स में नौकरी के लिए हस्तलिखित आवेदन भेज़ा. उनके सुंदर अक्षर देख कर बाफना जी ” भाईसाहब ” ने मनोहर पाटिल को अपने यहाँ काम दिया. उस समय रोज़ाना लगभग 30 – 40 व्यवसाईक वा सामाजिक पत्र लिखना पड़ते थे. बाफना जी उस समय शाकाहार का बड़ा काम स्थापित कर रहे थे. उनके रोज़ाना के पत्रों के जवाब देने का काम मैने प्रारंभ किया.
मनोहर पाटिल ने बताया कि कैलीग्राफी के लिए बहुत सधे हुए हाथों की ज़रूरत होती है. क्योंकि यह अत्यधिक एकाग्रता एवं संयम का काम है. इस में ज़रा सी भी चूक के लिए कोई स्थान नहीं है. चाहे कितने ही छोटे अक्षरों में लिखना हो पूरी एक पुस्तक लिखने पर भी कहीं एक भी शब्द में ज़रा भी अंतर नहीं होना चाहिए. आज हमारे पास साधन हैं और हम गलतियों को मिटा कर तुरंत ठीक कर सकते हैं पर पहले ऐसा नहीं था. हर अक्षर हर शब्द को हर बार लिखना पड़ता था.
शौकिया ही क्यों ना हो लेकिन मनोहर पाटिल ने जिस अंदाज़ में अपनी छिपी प्रतिभा को शुभकामनाओं के रूप में प्रस्तुत किया है वह निश्चित ही जनसंपर्क का व्यस्ततम कार्य करते हुए सहेज़पाना भी अपने आप में क़ाबिले तारीफ़ है.
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