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सबरीमाला: दुनियावी कानून और परम्परा में टकराव

Tez Samachar by Tez Samachar
November 20, 2018
in Featured, विविधा
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सबरीमाला: दुनियावी कानून और परम्परा में टकराव

 

 

 

 

स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई से कुछ सवाल हैं। वह भगवान अयप्पा के प्रति कितनी आस्था रखतीं हैं? उनके विषय में वह जानती क्या हैं? केरल में भगवान अयप्पा के अनेक मंदिर हैं फिर सबरीमाला ही जाने की उनकी जिद्द क्योंं? और आखिरी सवाल, 16 दिसम्बर को कोच्चि के नेदुंबसरी एयरपोर्ट पर सारा दिन जो तमाशा चला उसके लिए तृप्ति स्वयं को कितना जिम्मेदार मानती हैं? हजारों प्रदर्शनकारियों के जमा हो जाने से तृप्ति को बाहर नहीं निकलने दिया गया था। टैक्सी वाले तृप्ति को कोच्चि से सबरीमाला तक ले जाने को तैयार नहीं हुए। एयरपोर्ट परिसर और बाहर भारी पुलिस बल तैनात था। सबरीमाला में पन्द्रह हजार से अधिक पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया था? लगभग 14 घण्टे चले तमाशे के बाद तृप्ति पुणें वापस लौट गईं। पुणें पहुंचकर तृप्ति ने कहा कि वह जल्द ही केरल लौटेंगी। इस बीच तृप्ति का एक और बयान मीडिया में आया। तृप्ति ने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से कहा है कि राज्य सरकार उनका यात्रा व्यय वहन करे और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।

राजनीतिक क्षेत्रों में कहा जा रहा है कि वामहठ के कारण विजयन सरकार सुरक्षा उपलब्ध कराने पर सहमत हो सकती है लेकिन वह तृप्ति का यात्रा खर्च उठाने का दुस्साहस नहीं करेगी। केरल में स्वयं वाममोर्चा महसूस कर रहा है कि सबरीमाला मुद्दा उसके गले में फांस बन चुका है। विजयन का हठ राजनीतिक रूप से महंगा साबित हो सकता है। सबरीमाला मुद्दे ने केरल में राजनीतिक ध्रुवीकरण की शुरूआत कर दी। कमोवेश अयोध्या विवाद जैसा माहौल बन रहा है। अब केरल में भाजपा के आह्वान पर लाखों लोग जमा होने लगे हैं।

नि:संदेह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करना केरल सरकार का संवैधानिक दायित्व है। इस पर दो राय नहीं हो सकती। समस्या यह है कि विजयन सरकार ने सबरीमाला पर फैसला आने के बाद रत्तीभर गम्भीरता नहीं दिखाई। उसने सदियों से चली आ रही परम्परा से लोगों को विमुख करने के लिए माहौल बनाने की बजाय पुलिसिया ताकत के बूते परिवर्तन का रास्ता खोलने को अहमियत दी। सबरीमाला में सभी आयु की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति से संभावित भावनात्मक समस्याओं पर विचार किया जाना था। विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरूद्ध पुनर्विचार याचिका दायर करने का अनुरोध ठुकरा दिया। इससे संदेश यह गया कि उन्हें हिन्दुओं की भावनाओं की परवाह नहीं है। आरोप है कि अदालती आदेश की आड़ में वाम एजेण्डा को आगे बढ़ाने का प्रयास चल रहा है।

सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर रोक कोई सौ-पचास साल पुरानी नहीं है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। परम्परा के पीछे अपने तर्क हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल में जो माहोैल है उसे दुनियावी कानून और धार्मिक परम्परा के बीच टकराव कहा जा सकता है। जो लोग सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समर्थन कर रहे हैं उनके अपने तर्क हैं। वे सतीप्रथा, छुआछूत और एकदम से तीन बार तलाक बोल कर विवाह संबंध विच्छेद करने की प्रथा का उदाहरण दे रहे हैं। वास्तव में सतीप्रथा, छुआछूत और तीन तलाक का धार्मिक मान्यताओं से लेना-देना नहीं रहा। ये तीनों ही समाज में अंदर पनपी बुराइयां हैं। अत: इन पर कानूनी सर्जरी जरूरी मानी गई। दूसरी ओर सबरीमाला मंदिर में उपर्युक्त आयु समूह की महिलाओं पर रोक के पीछे महिलाओं के साथ किसी प्रकार के भेदभाव की भावना या उनके प्रति दुराग्रह नहीं है। भगवान अयप्पा को नैष्ठिक ब्रह्मचारी माना जाता है। इसी वजह से सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। यह वहां की धार्मिक परम्परा है। केरल में 99.9 प्रतिशत महिलाएं रोक का सम्मान करतीं हैं। गौर करें, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सबरीमाला मंदिर जाने का प्रयास करने वाली महिलाओं की संख्या कितनी रही? शायद डेढ़ दर्जन भी नहीं। जिन्होंने वहां जाने का प्रयास किया उनकी पृष्ठभूमि पर नजर डाली जाए। जबकि, रोक हटने से नाखुश महिलाओं की संख्या शायद करोड़ों में होगी।

सबरीमाला पर फैसला एक मत से नहीं कहा जाएगा। यह 4:1 के बहुमत से आया फैसला है। पांच जजों की संविधान पीठ की इकलौती महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का समर्थन करते हुए कहा है धार्मिक रीति-रिवाजों में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने लिखा कि धर्मनिरपेक्षता का माहौल कायम रखने के लिए कोर्ट को धार्मिक अर्थोँ से जुड़े मुद्दों को नहीं छेडऩा चाहिए। सती जैसी कुप्रथाओं को छोड़ दें तो यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है कि कौन से रीति-रिवाज खत्म करने चाहिए। मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। अन्य पूजास्थलों पर भी इसका दूरगामी असर होगा, जो सही नहीं है। बहुमत नहीं होने से जस्टिस इंदु मल्होत्रा को फैसला लागू नहीं होगा लेकिन उनकी टिप्पणी ऐसे मुद्दों पर विचार मंथन पर अवश्य जोर देती है। सबरीमाला परम्परा को कुछ क्षेत्रोंं की अपनी परम्पराओं से जोड़ कर देखना होगा। ऐसी क्षेत्रीय परम्पराओं को कानूनी हस्तक्षेप से मुक्त रखा गया है क्योंकि बाहरी दुनिया के लिए ये कानूनी व्याख्याओं में सही न बैठती हों लेकिन वह वहां के लोगों और संस्कृति की पहचान हैं।

सबरीमाला मुद्दे पर मुख्यमंत्री विजयन की हठधर्मिता लगातार देखने को मिली। सर्वदलीय बैठक में सुझाव आया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल को 22 जनवरी 2019 तक स्थगित रखा जाए। तर्क यह है कि इस मुद्दे पर दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। सुझाव तर्क संगत है किन्तु राज्य सरकार ने इसे नामंजूर कर दिया। इससे क्षुब्ध भाजपा और कांग्रेस ने बैठक से बहिर्गमन कर दिया। अब विजयन से ही सवाल किया जाना चाहिए कि अदालती आदेश पर अमल कुछ दिनों के लिए रुक जाने पर कौन सा पहाड़ टूटा पड़ रहा है? हिन्दुओं द्वारा लगाए जा रहे इस आरोप को आधारहीन कैसे मान लें कि वाममोर्चा उनकी धार्मिक भावनाओं पर जानबूझ कर चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। विजयन सरकार का रवैया शुरू से ही निष्पक्ष नजर नहीं आया। सरकार पुलिस के बूते करोड़ों लोगों की भावनाओं को कुचलने और उन्हें आहत करने की कोशिश कर रही है। इस बात की अनदेखी की जा रही है कि रोक हटने के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में महिलाओं की मौजूदगी अनुमान से कहीं अधिक रही। विजयन क्यों नहीं समझ रहे कि केरल में प्रदर्शनों ने आंदोलन का रूप लेना शुरू कर दिया है। जरूरी है कि राज्य सरकार धैर्य और संयम दिखाते हुए टकराव से बचे। पुनर्विचार याचिकाओं के निबटारे तक यथास्थिति बनाए रखना ही राज्य के हित में होगा। विजयन तमिलनाडु का जल्लीकट्टू मामला कैसे भूल गए? सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सांड दौड़ की जल्लीकट्टू परम्परा पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी हजारों लोगों ने चेन्नई के मरीन बीच में जमा हो गए। उन्होंने उग्र विरोध प्रदर्शन किया था। अदालती आदेश को निष्प्रभावी करने राज्य विधान सभा को कानून पारित करना पड़ा। जहां तक तृप्ति देसाई जैसे लोगों की बात है, उनके लिए सलाह यही है कि फिलहाल केरल से दूर ही रहें। कलंक से बचना है तो आग में घी डालने से बचें।

अनिल बिहारी श्रीवास्तव
एल वी – 08, इंडस गार्डन्स,
गुलमोहर के पास, बाबडिय़ा कलां,
भोपाल – 462039
मोबाइल: 9425097084 फोन : 0755 2422740

Tags: #sabarimala temple # kerala high court #kerala government #supreme court #सबरीमाला मंदिर #केरल सरकार
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