बात वर्ष 2013 की है जब मै एक स्कूल में एक प्राध्यापिका के पद पैर कार्य रत हूँ। विद्यार्थिंयों के अधयन की देख रेख का एक अपना ही मजा है। तरह तरह का ज्ञान और तरह तरह के पात्र और हर पात्र कि अपनी पात्रता। अक्सर माता पिता अपने बच्चों के शैक्षिक विकास कि जानकारी लेने आते रहते है। कुछ लोग तो हमसे जानकारी पा कर संतुष्ट हो जाते है और कुछ हमें समझा कर कि हमें केसे बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए,क्या करना चाहिए आदि आदि। ऐसे मई हैम पूरी तरह से दत्तचित्त हो कर उनकी बात सुनते है और जहाँ तक हो सके उनको आश्वासन भी देते हैं और मुस्कुरा कर विदा भी करते है। अधिकतर माता पिता पुत्र के भविष्य को ले कर चिंतित होते है। बेटिंयों का क्या है पड़ गई तो ठीक ,नहीं तो घर संभालेगी स्कूल में भी लड़कों कि संख्या लड़कियो से अधिक है। ये समाज मे उभरती कुरीतिंयो का प्रत्य्क्ष प्रमाण है।
एक दिन एक लड़की उम्र कोई 15–16 साल होगी स्कूल में अपने भाई कि पढ़ाई के में आई। पिछले साल तो अक्सर स्कूल आ कर भाई का हाल चाल पूछने आ जाती थी पर इस बार बहुत दिनों बाद आई। मेने मुस्करा कर उसका स्वागत किया और पूछा क्या बात है इस बार बहुत दिनों के बाद आना हुआ। “हाँ मैडम जी ,ससुराल गई थी ” “सच ,मुझे लगा अभी तक तुम्हारी शादी ही नहीं हुई छोटी सी तो हो। छम्म से उसकी आँखों में आंसू छलक आये। तभी मेरी निगाह उसकी बांहो और गर्दन पर पड़े काले नीले निशानों पर पड़ी। उसकी आँखों में छलकते दुःख कि परछाइयाँ छुपी न रह सकी वो बोली “मैडम जी जब मेरी बड़ी बहन कि शादी हुई थी तो हम तीन छोटी बहनो कि शादी भी साथ में थी। ” “क्या तू सच कह रही है “मैने पूछा। “हाँ मैडम जी “उसके साथ उसकी छोटी बहन भी बेठी थी उसकी तरफ इशारा कर के बोली “मैडम जी मै तो फिर भी दो ढाई साल कि थी ,पर मेरी ये बहन तो अभी माँ का दूध पीती थी और इसकी शादी हो गई “अभी तक के सुने किस्से कहानियों के पात्र साक्षात मेरे सामने बेठे थे।

बात को आगे बढ़ाते हुए वो बोली “हैम क्या जानते थे कि हमारी शादी हो रही है। एक ही मंडप में चार शादियाँ करा दी गई। “मैने पूछा” फिर विदाई भी हुई ” वो बोली “हाँ हुई न क्य़ोंकि शादी के बाद एक दिन के लिए ससुराल जा कर रहना पड़ता है। “”तो क्या तेरी इस छोटी बहन को भी ससुराल भेजा गया “मैने पूछा।”हाँ मेडम जी इसे भी ससुराल भेजा गया ,और मेरी माँ इसे दूध पिलाने इसकी ससुराल जाती थी। “मेरी ने पलक झपकना बंद कर दिया। “अरे तुम्हारे माँ बाप ने ऐसा क्य़ो किया। ” “हमारे समाज का यही चलन है ,अब देखिये न एक साथ चार शादियाँ करने से कितना खर्चा बच गया। फायदा ही तो हुआ ” “पर तेरी ये हालत केसे हुई ” “अरे मेडम जी मेरा पति शराबी निकला। मार मार के मेरी ये हालत कर दी। जब बहुत रोई पीटी तो मेरे माँ बाप मुझे वापिस ले आये। मै अब पड़ना चाहती हूँ ,क्या आप मेरी मदद करोगे “मैने कई तरीके से समझाया पूरी मदद करने का वादा भी किया पर वो तब कि गई फिर नहीं आई। बुराइयों से चाहे जान ही क्य़ो न चली जाये पर ऐसे नियमो को बदलने के लिए कुछ रूढ़िवादी लोग तयार नहीं है .

जरा से पैसे कि बचत के लिए लड़कियों का छोटी उम्र में विवाह कर उन पर समाज के कठोर बंधन का बोझ डाल कर उन्हें दुःख भरी जिंदगी जीने को मजबूर कर —–ये कैसी रीति है जो सोचती है कि वो सबका भला कर रही है। लाख कानून बने हो पर आज वर्ष 2013 में मेरे सामने इन रीतियों का शिकार ये लड़किन्या बैठी थी। बदलाव के नाम पर जो हो रहा है क्या वह काफी है —नहीं अभी नहीं। वो रीती रिवाज जो कुछ ऐतिहासिक घटनायों के कारण समाज मे लागु किये गए थे अब उनकी आवश्यकता नहीं है लड़की को पड़ने का जीने का पूरा हक़ है
कोई समझता क्यो नहीं ?..
– नीरा भसीन- ( 9866716006 )