आचार्यवर्य भास्कर द्विवेदी प्रयागराज ने गजेन्द्र की कथा के आध्यात्मिक रहस्य का निरूपण करते हुए कहा कि यह दिव्य कथा मानव जीवन की सार्थकता के लिये अति उत्तम उपदेश है. यह अमृत उद्गार आचार्य द्विवेदी ने नवी मुंबई के घनसोली में आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि सत्संग से विमुख नश्वर संसार की माया-मोह रूपी रस्सी से जकड़ा हुआ, अज्ञानी मनुष्य ही गजेन्द्र है और यह संसार ही सुन्दर मायावी सरोवर है तथा इसमें निवास करने वाला मगर ही काल है. अज्ञानी मनुष्य इस मायावी संसार सरोवर में गोता लगाते-लगाते इतना मदहोश हो जाता है कि वह अपनी वास्तविकता को भी भूल जाता है. अर्थात् नश्वर विषय-वासनाओं और भोग-विलासों में डूबकर, उसे अपनी मृत्यु का भी ध्यान नहीं रहता है. जब एक दिन अचानक काल रूपी मगर उसका पैर पकड़ लेता है, तो उसके परिजन उसे बचाने का प्रयास तो करते हैं, किन्तु जब असफल हो जाते है, तो उसके प्रति निराश और उदासीन होकर साथ छोड़कर, सिर्फ उसकी मृत्यु की राह देखते रहते हैं. इसी समय कालग्रस्त मनुष्य को जीवन के यथार्थ का अहसास होता है कि भगवान् के अलावा संसार में उसका अपना कोई नहीं है, उसे काल के मुख से केवल भगवान् ही बचा सकते हैं. इसलिए विवेकी मनुष्य को सदैव सावधान रहते हुए, भगवत्कथा श्रवण और प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिये, इसी में उसका परम कल्याण है. आचार्य भास्कर द्विवेदी ने कहा कि संसार का कार्य करना भी जरूरी है, किन्तु भगवान को कभी न भूलें, इससे हमारे लोक-परलोक दोनों ही सुधर जायेंगे. उन्होंने कहा कि गजेन्द्र रूपी जीव को काल रूपी मगर से केवल भगवान ही बचा सकते हैं और उसे मोक्ष प्रदान कर सकते हैं.