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चक्रव्यूह – पितृपक्ष, सत्तापक्ष और विपक्ष !

Tez Samachar by Tez Samachar
September 22, 2019
in Featured, विविधा
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चक्रव्यूह – पितृपक्ष, सत्तापक्ष और विपक्ष !

चक्रव्यूह – पितृपक्ष, सत्तापक्ष और विपक्ष !

sudarshan chakradhanइधर पितृपक्ष खत्म हुआ भी नहीं कि सत्तापक्ष और विपक्ष में चुनावी जंग शुरू हो चुकी है. चुनाव आयोग ने सभी ‘पक्षों’ का ध्यान रखते हुए ‘ईवीएम’ से ‘निष्पक्ष’ चुनाव संपन्न कराने के लिए 4 अक्टूबर तक नामांकन और 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा में मतदान कराने का ऐलान किया है. जिनके नतीजे 24 अक्टूबर को यानि दिवाली से ठीक पहले आएंगे. दोनों राज्यों में दिवाली से पहले या उसके तुरंत बाद नई सरकार बन जाएगी. जो दल-गठबंधन हारेंगे, उनके ‘पिछवाड़े’ पटाखे फूटेंगे…. और जो दल-उम्मीदवार जीतेंगे, वे सबके सामने जश्न मनाएंगे. जीतने वालों की फुलझड़ियों के कारण हारने वालों के दिल जलेंगे. वैसे, जिनको किसी भी दल से टिकट नहीं मिलेगा, वे अभी से बगावत का झंडा उठाने लग जाएंगे. कुल मिलाकर पितृपक्ष से दिवाली तक राज्य में राजनीतिक माहौल गर्म रहेगा.
सभी जानते हैं कि पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) में शास्त्रों के अनुसार कौओं, गायों और कुत्तों का बहुत महत्व है. पितृपक्ष में अशुभ होने से अविष्ठ खाने वालों को ग्रास देने का विधान है. इनमें कौआ, आकाशचर है तो गाय, भूमिचर है. जबकि कुत्ता (श्वान) निष्ठावान माना गया है. पितृपक्ष में पिंडदान होता है. शायद इसीलिए चुनाव आयोग ने बहुत सोच-समझकर राजनीति के ‘पितरों/ पूर्वजों’ का पिंडदान करने का सुनहरा मौका हम जैसे मतदाताओं को दिया है. इसीलिए राजनीति के कुत्तों, कौओं और तथाकथित गायों को इस बार चुनावी पितृपक्ष में ‘तर्पण-अर्पण’ हम लोग कर सकते हैं. इसीलिए कह रहा हूं कि अच्छा है मौका… मार दो चौका!

पितृपक्ष से निवृत्त होते ही राजनीति के कुत्ते, कौए और गायें चुनाव-पक्ष में विचरते नजर आएंगे. कोई भोंपू बजाएगा, तो कोई ‘दुम’ हिलाएगा. लेकिन आप मतदाता हैं. आपके पास ‘बेशकीमती वोट’ है. उसे कंबल, दारू, साड़ी, नगदी आदि में बेचना नहीं है. अपने राज्य की भलाई करने वालों को ही अपना वोट देना है. आपके वोट की ताकत से सत्ता बदल सकती है. पिछले 5 साल पहले बदली भी थी. मगर उससे राज्य को लाभ हुआ या हानि? यही सोचकर अबकी बार वोट देना है. सत्तापक्ष और विपक्ष के लोग पितृपक्ष के बाद आपके पास वोट मांगने आएंगे. कई प्रकार के प्रलोभन देंगे. कई प्रकार के वादे करेंगे. लेकिन इनके बहकावे में आप लोग आने से बचें. अगर आ गए, तो फिर 5 साल के लिए इनके गुलाम बन जाएंगे.

बहरहाल, राज्य में नवरात्रोत्सव के दौरान चुनाव-प्रचार की धूम रहेगी. नवरात्र में दुर्गा देवी की उपासना की जाती है. जगह-जगह घट और मूर्तियों की स्थापना होती है. कई दुर्गा मूर्तियों में राक्षस को मारते हुए दिखाया जाता है. दशहरे के दिन तो रावण को ही जलाया जाता है. तो क्यों ना हम इस चुनाव में दुर्गा उत्सव के दौरान ही राजनीति के सफेदपोश और भ्रष्टाचारी राक्षसों का अंत करें! पितृपक्ष के बाद क्यों ना इनका ही पिंड दान करें? और दशहरे के बाद क्यों ना राजनीति के बुरे रावण का संहार करें? मौका भी है, दस्तूर भी है. सो, सत्तापक्ष के महिषासुर हों या विपक्ष के नरकासुर हों या भ्रष्टाचार के रावण हों, ….राज्य को लूटने-ठगने वाले राक्षसों का अंत करने का संकल्प अगर हम आज ही कर लें, तो 24 अक्टूबर के बाद वाकई पूरा राज्य खुशी-खुशी दिवाली मनाएगा. वरना ‘ढाक के तीन पात’ तो होते ही हैं. समझे क्या ‘भाइयों-बहनों…!’
(संपर्क : 96899 26102)
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