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जिन्दगी : गीता हर युग की कहानी

Tez Samachar by Tez Samachar
December 29, 2019
in Featured, विविधा
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जिन्दगी : गीता हर युग की कहानी
Neera Bhasinगीता अपने आप में एक बहुत बड़ा ग्रन्थ माना जाता है ,ये एक महान रचना है ऐसा हम सभी मानते भी हैं।  इसका एक एक श्लोक हर युग में होने वाले सामाजिक स्वरुप का ,उसमे होने वाले हर परिवर्तन का और परिवर्तनों से होने वाले प्रभावों का एक प्रामाणिक श्लोक संग्रह है।
इसे एक ओर तो वेद पुराणों का सार कहा जाता है तो दूसरी ओर समाज का प्रतिबिम्ब। समझने समझाने के लिए इस बात का अर्थ एक ही है। आदिकाल से समाज की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए वेद ,पुराण ,शास्त्र ,रामायण ,और महाभारत आदि ग्रंथों की रचना
हुई है और भागवत पुराण तो मानव जीवन के लिए पथप्रदर्शक का काम करता है ,साधना और लगन के साथ किया अध्यन मोक्ष की रह भी दिखाता है प्राचीन काल  में भी और आधुनिक काल में भी कई महान लोगों ने इसे सर्वोच्य ग्रन्थ माना है। राष्ट्र निर्माण के लिए ,सामाजिक व्यवस्था को सुधरने के लिए और चरित्र निर्माण के लिए “गीता “के उपदेश गागर में सागर की तरह है।
मैनें कई महान  संतों द्वारा “गीता” पर लिखे गए उनके विचारों का अध्यन किया है बहुत कुछ जाना है ,बहुत कुछ समझा है इस लिए कह सकती हूँ की “गीता”को समझने के बाद ज्ञान और विवेक द्वारा हम अपना जीवन सफल और सरल बना सकते हैं। इतिहास साक्षी है ,अनेकों सभ्यतांए आईं और गईं पर “गीता “में दिए गए उपदेश  हर युग में मार्गदर्शक ही सिद्ध हुए। अपने इस लेख द्वारा  मैँ  अपने अध्ययन  और विचारों को आप सब के साथ साँझा करने का प्रयत्न करने जा रही हूँ आप मेरे साथ साथ अपने विचारों को भी  अवश्य रखें ,मेरे विचार से यह चरित्र निर्माण की ओर एक साँझा प्रयत्न होगा।
मेरे विचार “गीता”में कहे गए श्लोकों के आधार पर ही हैं पर आज भी परिवार ,समाज और देश की दशा पर यदि हम दृष्टि डालें तो लगता है की हर पल इतिहास दोहराया जा रहा है। मैंने इस प्रयास में श्लोकों के शाब्दिक अर्थ के स्थान पर उद्देश को अधिक महत्व दिया है।
कहा जाता है की मनुष्य योनि तभी मिलती है जब किसी ने अपने पूर्व जनम में बहुत अच्छे कर्म किये हों। लेकिन एक बार यदि मनुष्य जन्म आप को मिल गया तो फिर आप में एक अद्भुत शक्ति एवं  विशेषता   आ जाती है ,अब आप में प्राकृतिक कुछ भी नहीं है। प्रकृति आपके बड़े होने  तक आपके शारीरिक विकास का ध्यान रखती है पर फिर भी भावनात्मक विकास आपके अपने हाथ मे है।  मनुष्य को सब कुछ अपने पुरुषार्थ से ही प्राप्त करना होता है। उप्लाब्धिंया भौतिक हों या आध्यात्मिक उसके लिए प्रयत्न हमें स्वयं करना पड़ता है। किस किस काम से हमें ख़ुशी मिलती है यह एक बहुत ही निजी क्रिया है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है की हम किसी न किसी  धर्म का पालन करते ही   हैं ,”धर्म”जिसका अर्थ और काम से कोई संबंध नहीं फिर भी हम देश काल और समाज के आधार पर उसे अपनाते हैं क्न्योकि इसके अंतर्गत हम कई प्रकार की ख़ुशी और यश प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम एक ओर देश विदेश घूम के ख़ुशी प्राप्त करते हैं तो दूसरी ओर मित्रता में या फिर मिलबांट कर खाने में या फिर हो सकता है किसी किसी को दूसरों की सहायता कर के भी वैसी ही ख़ुशी मिलती हो। अधिकतर लोग अध्यात्म  या स्वाध्याय की राह  को बहुत जटिल और नीरस मानते है पर ऐसा नहीं है हम इस राह पर चल कर भी  उतने ही प्रसन्न रह सकते हैं जितना किसी भौतिक उपलब्धि में। जहाँ तक ज्ञान का प्रश्न है ,हम जितना अधिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे हमारा जीवन उतना ही प्रकाश से भर उठेगा। इसके लिए स्वाध्या बहुत आवश्यक है कयोंकि हमें वहीँ ज्ञान मिलेगा जिसे हमने देखा या जाना।  ज्ञान से भौतिक सुखों की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही साथ हमारे विवेक को भी बल मिलता है धर्म  को समझने और उसका सही रूप से पालन करने की भी राह मिल जाती है। मनुष्य अपने जीवन में काम, अर्थ और धर्म को मान कर चलते हैं ,पूरा जीवन इसी में बिता देते हैं ,काम एक  प्राकृतिक व्यवहार  है ,अर्थ पुरुषार्थ की कर्मों उपलब्धि है लेकिन धर्म  हमें सही मार्ग दिखाता है ताकि सामाजिक व्यवस्था सुख शांति से चलती रहे और धर्म देश काल और भौगोलिक आधार पर बनाया
  एवं लागू किया जाता है जब की काम और कर्म नहीं। “गीता”धर्म और कर्म की राह सहज बनाती है। “गीता “एक माँ की तरह है जो अपनी  संतान की मानसिक पीड़ा हर लेती है। कष्टों से त्रसित मन यदि “माँ गीता “की शरण में जा बैठता है तो निःसंदेह उसे अपने कष्टों का निवारण करने की राह मिल जाती है ,मनुष्य से मनुष्य की पहचान हो जाती है।

 

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