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जिन्दगी : गीता -विचार

Tez Samachar by Tez Samachar
January 18, 2020
in Featured, विविधा
0
जिन्दगी : गीता -विचार
Neera Bhasin
गीता को गीता शास्त्र कहते हैं और यदि हम गीता शास्त्र को अच्छी तरह समझ लेते हैं तो हम वेद और उपनिषदों का सार भी समझ पाएंगे। इसे प्रमाण ग्रन्थ भी कहा जाता है। भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में यह बात स्वयंम स्पष्ट की है जो कुछ वे कह रहे हैं वो सब वेदों में कहा गया है। व्यास जी ने गीता को प्रस्तुत किया और कहा जाता है की वेदों को प्रस्तुत करने वाले भी व्यास जी ही थे। वेदों की रचना महाभारत काल से बहुत पहले हो चुकी थी पर व्यासजी ने वो सब ऋचाएँ संकलित कर उन्हें क्रम बद्द रूप से प्रस्तुत किया जो आगे आने वाली पीढ़िंयो को हस्तांतरित की गई। 
गीता को प्रमाण पुस्तक इस लिए भी कहा जाता है की यह किसी बात का विरोध नहीं करती। 
 भगवन का अर्थ है (one who has six bhaga ,six fold vertues)
१. ज्ञान (सब तरह का )
२.वैराग्य (अपने आप को भौतिक संसार से अलग करना ,उसमें रहते हुए 
३. वीर्य (कुछ सृजन करने की क्षमता ,उसका पालन पोषण करने की क्षमता ,उसे सुलझाने और सँभालने की क्षमता )
४.यश (अच्छे कर्मो से प्राप्त लोकप्रियता )
५. श्री  (सब प्रकार की भौतिक सम्पदा )
६. ऐश्वर्य  (सामान्य स्तर से ऊपर )
उदाहरण —-भगः अस्य अस्ति इति भगवान् 
              वो जिसके पास भाग्य है वो भगवान् है ,ऐसा विष्णु पुराण में      कहा गया है। 
                ऐश्वरस्य समग्रस्य वीर्यस्य   यशसः श्रिय। 
                ज्ञान वैराग्यो श्चेव ष्णनाम (shyananm) भग इतिरन। . 
                                                   —–         विष्णु पुराण 
         श्री कृष्ण ने यह सिद्ध कर दिया की वे  उक्त सभी गुणों से सम्पन्न हैं इसलिए वे भगवान कहे जाते हैं। 
           गीता में मुख्य रूप से दो विषयों पर चर्चा की गई है ,एक तो योग शास्त्र जिसमें कर्मयोग मुख्य चर्चा का विषय है  और दुसरा ब्रह्मज्ञान। 
           संसार में रह कर कर्म किये बिना कोई निर्वाह नहीं होता पर यदि हमें ब्रह्म की प्राप्ति या ज्ञान प्राप्त करना है तो इस ग्रन्थ में यह स्पष्ट किया गया है धर्म की राह पर चल कर कर्म करता हुआ मनुष्य किस तरह कर्म और धर्म का अंतर जानते हुए भी दोनों ही बातों का एक साथ निर्वाह कर सकता है। कर्म और धर्म दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों का उद्देश्य मानव जाति में अच्छे संस्कारों के साथ उचित व्यवस्था की संस्थापना करना है। यदि एक ओर मनुष्य के कर्म समाज के हित   और उत्थान   के लिए हैं तो दूसरी ओर कर्म ब्रह्म प्राप्ति की राह भी दिखाते हैं। समाज और जीव मात्र की भलाई के लिए हम जो काम करते हैं वही हमारे कर्तव्य कहलाते हैं। और यह सब कर्म योग से ही प्राप्त होता है। कुछ इन्ही बातों से प्रेरित हो कर किसी कवी ने एक प्रार्थना लिखी थी जो बहुत से स्कूलों में गई भी जाती है 
 
                     वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डटजाएँ
                     पर सेवा पर उपकार से हम निज जीवन सफल बना जाएँ।
               
गीता का सार समझने के लिए हमारे पास अच्छे विचार होने चाहिए ,उन्हें ग्रहण करने और उनका भाव समझने की क्षमता भी होनी चाहिए क्यनो की “गीता “का प्रत्येक श्लोक प्रत्येक अक्षर गूढ़ अर्थ रखता है। आदि शंकराचार्य जी ने “गीता “का परिचय देते हुए कहा है ‘
   “गीता का भावार्थ जो वेदों का सार और भावार्थ है उसे समझना बहुत कठिन है। “
इस पुस्तक में थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने का प्रयास किया गया है। इसलिए इसके प्रत्येक शब्द की उचित रूप से व्याख्या करना ,समझना और फिर प्रयोग में लाना अति आवश्यक है अर्जुन को जब
श्री कृष्ण गीता उपदेश दे रहे थे तब उनके मन में भी संदेह उठ रहे थे और उनहोंने पुरे भावार्थ को समझने के लिए कई प्रश्न किये थे ,
जब की वे अपनी परिस्तिथि को भली भांति जानते थे और यह भी जानते थे की श्री कृष्ण किस प्रयोजन से उन्हें उपदेश दे रहे थे। गीता को समझना भी उतना ही कठिन है जितना की किसी अन्य वेदांत आदि को। और 
इसमें सबसे बड़ी बात यह है की इसे समझना  आप को ही समझने का प्रयास है गीता में दिए गए 
ज्ञान को मात्र ग्रहण ही नहीं करना है इसे तो आत्मसात करना है। इसे समझने की आवश्यकता है न की 
आँख बंद कर उसको अनुसरण करने की। इसमें गुरु भी हमारे सहायक हो सकते हैं। पर जब हम गीता के तत्व को समझना शुरू कर देतें हैं उसमें सबसे मुख्य बात है उसकी विषय वास्तु की ,हमें इस बात का प्रमाण 
नहीं ढूंढ़ना चाहिए की इस संवाद में दिए गए पात्रों का कभी जनम भी हुआ था या नहीं ,जो कुछ भी वर्णित है वो सच है या काल्पनिक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,सबसे मुख्य बात है उस ज्ञान की जिसका वर्णन किया गया है जो हर देश काल या परिस्तिथि  का सही सही वर्णन करती है ,जो मनुष्य का मनुष्य से परिचय कराती है। 
स्वामी दयानन्द जी ने अपनी पुस्तक गीता होम  स्टडी में कहा है ——-” When I want to gain certain knowledge I must know ,understand that once the means of knowledge and the object of knowledge are ALIGNED,I am on the right path .If my eyes are open ,and if they are not defective ,and if my mind is not elsewhere ,I will necessarily see what is in front of me .What choice do I have ?”
           
इसलिए जब हम “गीता”जैसे ग्रन्थ का अध्यन करें तो हमें पूर्णरूप से दत्तचित्त हो कर करना चाहिए। इसकी विषय वस्तु को समझने ,भाव को ग्रहण कर उसे क्रियांविंत रूप से आत्मसात कर लेने से ही हमारी पहचान स्वयंम से हो पाती  है और भावी जीवन को वा समाज को सुखी बनाने की राह मिल जाती है। 
यदि हम समझ लें की दुनिया हमसे अलग नहीं है और ईश्वर भी हम से अलग नहीं है तो  हमारे लिए “गीता “को समझना कठिन नहीं है। 
       “गीता “अमृत के सामान है जिसे आत्मसात कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
 
नीरा भसीन 
मलेशियन टाउनशिप 
के पि यह बी कालोनी 
हैदराबाद —-तेलंगाना 
9866716006 
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