• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

जिन्दगी : फैल रही अराजकता

Tez Samachar by Tez Samachar
February 8, 2020
in Featured, विविधा
0
जिन्दगी : फैल रही अराजकता
Neera Bhasin
जब जब किसी समाज में लोगों ने समाज में फैल रही अराजकता को रोकने  का प्रयत्न किया तब तब समाज में विद्रोह हुए फिर धरम में , नियमों में परिवर्तन किये गए या फिर नई व्यवस्था के लिए एक नए धर्म का जन्म हुआ। यह एक परम्परा रही है और इसीलिए इस दुनिया में कई धर्म है और उनको मानने वाले भी असंख्य हैं। यह सब देश काल और प्रकृति को ध्यान में  रख कर होता रहा है। जब तक सब धर्मानुसार सब चलता है सुख शांति बानी रहती है ,क्योंकी सभी धर्म ग्रन्थ सामाजिक वयवस्था के पथ प्रदर्शक हैं यदि हम इस बात से सहमत हैं तो हमें यह  बात  स्वीकार कर लेनी चाहिए की धर्म की संस्थापना चाहे वो महाभारत काल से पहले की गई हो या  बाद में समाज के सुख-शांति पूर्वक रहने ,जीवन व्ययतीत करने 
के लिए ही की जाती रही है ——वो नियम जो धर्म के अंतर्गत बनाये जाते हैं उनका उलंघन करने से “महाभारत “को कोई नहीं रोक सकता। कारन की ऐसी परिस्तिथियाँ समाज में अराजकता फैला देती हैं। द्वापर अर्थात कृष्ण के काल में हुआ “महाभारत ” “एक  राजसी परिवार में   हुए धर्म के नियमों के उलंघन का ही परिणाम था। जब राज की सत्ता किसी राजा के हाथ में होती है तो धर्म की रक्षा का भार  भी उसी राजा पर होता है। 
                       इस लिए हमारे लिए यह आवश्यक है की हम “गीता “में लिखे उपदेशों को समझने से पहले उन परिस्तिथियनों को जाने जिस कारन कृष्ण ने ये उपदेश दिया। साधारण रूप से देखें तो यह बरसों से पनप रही रंजिश का नतीजा था। इस बात की यदि हम गहराई से समझ लें तो हमें  आज के समाज को भी समझने में आसानी होगी। 
                         जिन लोगों में उद्धम ,साहस ,धैर्य ,बुद्धि ,शक्ति और पराक्रम है वे श्रम कर के या बुद्धि का प्रयोग कर उन बाधाओं को पार कर ही लेते हैं। उपरोक्त लक्षणों से लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है पर इसके साथ साथ दैविक शक्ति का होना भी अनिवार्य है और वो मिलती है दृढ़ संकल्प से ‘जब कोई अदृश्य शक्ति अपना हाथ बड़ा देती है तो विजय निश्चित है। पर इसके लिए धर्म का पालन करना अनिवार्य है ,साम दाम दंड भेद– आत्मशक्ति को कमजोर बना देते हैं 
युधिष्ठर और पांडवों ने इसे पहचाना था। वे दुर्योधन से डर कर वनवास नहीं गए थे ,वे अपने वचन का पालन करने ,धर्मानुसार वचन निभाने वन गए थे। उन्हें दैविक शक्ति या फिर कहें ईश्वर की शक्ति पर विश्वास था। अर्जुन को कृष्ण में ही भगवान  दिखाई देते हैं और कृष्ण भी कहते है की वे उसके लिए सदा उपस्तिथ हैं। ईश्वर न तो कोई युद्ध करते हैं न ही कोई हथियार उठाते हैं ,स्थान व समय है —-पर वे तो  सर्वशक्तिमान अदृश्य विश्वास हैं। अर्जुन के समक्ष कृष्ण देव रूप में खड़े थे ,मुख पर तेज और होठों पर मुस्कुराहट लिए जैसे वे कुछ जानते ही न हों। 
                         राजनीति के भी कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना राजधर्म है ,यदि स्वार्थ के लिए उसका उपयोग होगा तो वो हानिकारक हो जायेगा। एक बात यहाँ और ध्यान देने योग्य है यदि किसी को कोई बड़ा निर्णय लेना हो तो चित्त शांत होना चाहिए उत्तेजना या अशांत मन से लिए गए निर्णय कभी जन  हित सुखाये नहीं होते। जैसा की दुर्योधन के साथ हुआ -यदि उसका मन शांत होता और मन में धैर्य होता तो वह कृष्ण की विशाल सेना नहीं कृष्ण का चुनाव करता। अर्जुन यह अच्छी तरह जनता था की युद्ध भूमि में उसका सामना भीष्म ,द्रोण और करण आदि वीरों के साथ होगा 
और उसकी जरा सी भूल उसे सीधा स्वर्ग पहुंचा देगी ,ऐसे समय में वो कृष्ण को अपने निकट रखना चाहता था ,जो सदा शांत मन और संतुलत निर्णय लेते हैं। 
                        इस समय ध्यान देना योग्य बात यह है की अर्जुन को यह मालूम था की न तो उसमें बल की कमी है और न युद्ध कौशल की पर प्रस्तुत परिस्तिथियों में हो सकता है की उसका अशांत मन उचित निर्णय ले सके तो किसी को पूर्ण रूप से शांत चित्त हो उसे राह दिखाना आवश्यक है। अर्जुन का यह निर्णय सही साबित हुआ। इससे युद्ध के दौरान अर्जुन को उचित समाधान तो मिले ही अंत में पांडवों को विजय भी प्राप्त हुई। 
                       भारत में वेदों के आधार पर धर्म की संस्थापना की गई थी। जिसका पालन सभी करते थे जो साधारण प्रजा थे वो भी और जो सत्ता में थे वो भी। राजा का स्थान सबसे सर्वोच्च था। 
यही हमारी सस्कृति कही और मानी  जाती है। इसलिए विदेशी अधिकतर भारत भूमि पर अपनी सत्ता ज़माने में असफल होते रहे। पर जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने इस गहराई को समझ 
लिया और राजकीय सत्ता को बनाये रखा ,कारण की परजा के लिए राजा ही सर्वोपरि होता था। अंग्रेजों ने राजाओं को अपने अधीन कर लिया और राजा वही करते रहे जो ब्रिटिश सरकार  उनको करने को कहती रही। ऐसा इस लिए हुआ की भारत एक धर्म क्षेत्र था और राजा की आज्ञा का पालन करना हर नागरिक का धर्म था। यदि हम ध्यान दें तो ऐसा ही कुछ धृतराष्ट्र के दरबार में होता था ,भीष्म ,द्रोण ,विदुर ,
कृपाचार्य सभी धर्म अधरम की  परिभाषा जानते थे पर अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते थे –ऐसे कई उदाहरण हमें इतिहास में मिल जायेंगे जहाँ धरम और लालच के नाम पर जो अन्याय हुए 
हम सब जानते हैं। पर विडंबना तो यह है की आज भी वैदिक धर्म देश में शांति रखने के लिए उतना ही आवश्यक है जितना त्रेता युग में था या फिर द्वापर में पर हमने उसे तब भी नाकारा ,महाभारत हुआ ,आज भी हम उसे नकारते हैं। आज भी  शहर शहर ,गांव गांव और घर घर में “महाभारत “देखने को मिल जाते हैं। 
Tags: life-chaos-spreading
Previous Post

कुणाल कामरा मामला – समस्या यात्रियों के खराब व्यवहार की

Next Post

डिफेंस एक्सपो में लॉन्च हुए 13 रक्षा उत्पाद, सेना को मिली शारंग तोप

Next Post
डिफेंस एक्सपो में लॉन्च हुए 13 रक्षा उत्पाद, सेना को मिली शारंग तोप

डिफेंस एक्सपो में लॉन्च हुए 13 रक्षा उत्पाद, सेना को मिली शारंग तोप

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.