दिल्ली को दिल वालों का शहर कहा जाता है।जहां लोग मिल्लत और अमन चैन के साथ एक दूसरे के लिए जीते थे, आज उसी शहर को न जाने किसकी नजर लग गई है। तभी तो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थक और विरोधी रोज-ब-रोज खून की होली खेल रहे हैं। इस हिंसा की आग में जलकर अब तक 27 लोग हलाक हो चुके हैं। 250 घायलों में 70 लोगों को गोली लगी है। हिंसक भीड़ ने आम लोगों के घरों, दुकानों और सड़कों पर गाड़ियों को आग लगाकर भारी नुकसान तो पहुंचाया ही देश पर आर्थिक बोझ भी बढ़ा रहे हैं। शायद वो भूल रहे हैं कि इसकी आर्थिक तंगी का नतीजा भी उन्हीं को भुगतना पड़ेगा। ये भी सही है कि समय के साथ यह आग भले ही ठंडी पड़ जाए मगर पीड़ितों के दिल के जख्म को भर पाना नामुमकिन है। उपद्रव का ही नतीजा है कि उपद्रवी इलाके से हर समुदाय के लोग खौफजदा, परिचितों के घर भागकर अपनी जिंदगी को बचा रहे हैं।
दिल्ली का सीलमपुरका इलाका जहां पुलिस बिना सुरक्षा कवच के मैदान में उतरने के नाम पर कांप गई थी। वैसे में कोई भी सहम जाएगा, हर किसी को अपने जान की फिक्र होना लाजिमी है क्योंकि हर किसी के पीछे परिवार की जिम्मेवारी है।पता नहीं कब किधर से पत्थर का टूकड़ा आए और उन्हें मौत कि नींद सुला जाए। सड़कों पर लाठी-डंडों से लैस लोगों की गुंडागर्दी का ही तो नतीजा है कि एक ही समुदाय के दर्जनभर लोगों की जानें चली गई।उन्हें कौन समझाए कि अपनों को ही जलती आग में झोंककर किसी के लिए जद्दोजहद की लड़ाई लड़ रहे हो। जब इस लड़ाई की आग में खुद को मिटा रहे हैं तो इस लड़ाई का मकसद क्या है। कई बार इसकी पहल करने वालों को भी इस बहसी भीड़ ने नहीं बख्शा। यही वजह है कि शांति बहाल करने के लिए पुलिस और आम लोगों ने अपने मासूमों और परिजनों को अपने रिश्तेदारों के घर ही छोड़ आए हैं। जो घऱ में हैं वो किसी तरह खुद के जिंदगी की दुआ मांग रहे हैं। इन इलाकों में रहने वाले लोग चाहे जिस समुदाय के हों, खौफजदा दिखाई दे रहे हैं। उन्हे पल-पल ये भय सता रहा है कि जाने कब किधर से पत्थर के टूकड़े या फिर सनसनाती गोली आकर उसके सीने को भेद जाए। सीलमपुर, करावल नगर, शेरपुर, मौजपुरी, यमुना विहार, ब्रह्मपुरी, गौतमपुरी में रहने वालों के बच्चे या परिजन जो स्कूल या काम पर गए थे, उनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो इस इलाके के छोड़ कहीं और ही रुक गए हैं। दिल्ली कुछ पल के लिए जहां तहां ठहर सी गई है। यहां होने वाले छोटे-छोटे प्रोडक्शन का काम पूरी तरह से प्रभावित है, क्योंकि इसमें काम करने वाले लोग हिंसा से प्रभावित इलाकों में जाने का नाम नहीं ले रहे हैं। और तो और दिल्ली के बाहर से दो जून की रोटी के लिए आए परिवार किसी तरह अपनी जान बचाने के लिए अपने घर लौट रहे हैं।
जिस दिल्ली पर दुनिया की नजर रहती है। खूबसूरत है दिल्ली, बेहतर है दिल्ली, अंतर्राष्ट्रीय प्लेस है दिल्ली मगर दिल्ली इस वक्त अपने ही सीने पर खुद से जख्म दे रही है। दुनिया के सबसे बड़े देश अमरीका से डोनाल्ड ट्रंप अपने पूरे परिवार के साथ भारत आए थे। उन्होंने इस देश की जमकर तारीफ की, रक्षा के क्षेत्र में बेहतरी के लिए सहयोग भी दिया। मगर अमरीका जाते ही इतना तो जरुर कह गए कि मुझे सब मालूम है कि भारत में क्या हो रहा। आखिर किस तरीके से अपने मेहमान की मेहमाननवाजी कर रहे हैं भारतीय। फायरिंग करते रहे दहशतगर्द तो कहींपेट्रोल बम फेंक लगाई आग।