पुणे (तेज समाचार डेस्क). कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत के हाथ बड़ा हथियार लग गया है। कोविड-19 के लिए निजी प्रयोगशालाओं को परीक्षण करने की अनुमति देने का निर्णय बढ़ती आलोचना के बीच आया कि भारत पर्याप्त लोगों का परीक्षण नहीं कर रहा है। हर एक मिलियन लोगों के लिए केवल 6.8 परीक्षण किए जाने के साथ, भारत में दुनिया में सबसे कम परीक्षण दर है। इन हालातों में बदलाव की उम्मीद एक वायरोलॉजिस्ट की कोशिशों से जगी है, जिसने अपने बच्चे को जन्म देने से महज़ कुछ घंटे पहले तक लगातार काम करके भारत का पहला वर्किंग टेस्ट किट तैयार किया है। वह हैं मीनल दाखवे भोसले जो मायलैब डिस्कवरी की रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख वायरोलॉजिस्ट हैं। मीनल उस टीम की प्रमुख हैं जिसने कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट यानी पाथो डिटेक्ट तैयार किया है, वो भी बेहद कम समय में।
– किट तैयार करने और बेचने की अनुमति
बीते गुरुवार को, भारत में निर्मित पहला कोरोना वायरस टेस्टिंग किट बाज़ार तक पहुंच गया है, माना जा रहा है कि संदिग्धों के बढ़ते मामलों में अब इसके ज़रिए कोविड-19 के मरीज़ों की पुष्टि जल्द हो पाएगी। पुणे की मायलैब डिस्कवरी भारत की पहली ऐसी फ़र्म है जिसे टेस्टिंग किट तैयार करने और उसकी बिक्री करने की अनुमति मिली है। इस कंपनी ने इस सप्ताह पुणे, मुंबई, दिल्ली, गोवा और बेंगलुरु में अपनी 150 टेस्ट किट की पहली खेप भेजी है। यह कंपनी मॉलिक्यूलर डायगनॉस्टिक कंपनी, एचआईवी, हेपाटाइटिस बी और सी सहित अन्य बीमारियों के लिए भी टेस्टिंग किट तैयार करती है। कंपनी का दावा है कि वह एक सप्ताह के अंदर एक लाख कोविड-19 टेस्ट किट की आपूर्ति कर देगी और ज़रूरत पड़ने पर दो लाख टेस्टिंग किट तैयार कर सकती है।
– एक किट से 100 सैंपलों की जांच संभव मायलैब की प्रत्येक किट से 100 सैंपलों की जांच हो सकती है। इस किट की कीमत 1200 रुपये है, जो विदेश से मंगाए जाने वाली टेस्टिंग किट के 4,500 रुपये की तुलना में बेहद कम है। मायलैब डिस्कवरी की रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख वायरोलॉजिस्ट मीनल दाखवे भोसले ने बताया, यह किट कोरोना वायरस संक्रमण की जांच ढाई घंटे में कर लेती है, जबकि विदेश से आने वाले किट से जांच में छह-सात घंटे लगते हैं। मीनल उस टीम की प्रमुख हैं जिसने कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट यानी पाथो डिटेक्ट तैयार किया है, वो भी बेहद कम समय में। ऐसी किट को तैयार करने में अमूममन तीन से चार महीने का वक़्त लगता है लेकिन इस टीम ने छह सप्ताह के रिकॉर्ड समय में इसे तैयार कर दिया।
– मीनल ने फरवरी में शुरू किया था काम दिलचस्प यह है कि इस दौरान मीनल ख़ुद भी एक डेडलाइन का सामना कर रही थीं, बीते सप्ताह उन्होंने बेटी को जन्म दिया है। गर्भावस्था के दौरान ही बीते फ़रवरी महीने में उन्होंने टेस्टिंग किट प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था। मीनल ने बीबीसी को बताया, यह आपातकालीन परिस्थिति थी, इसलिए मैंने इसे चैलेंज के तौर पर लिया। मुझे भी अपने देश की सेवा करनी है। मीनल के मुताबिक़, 10 वैज्ञानिकों की उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए काफ़ी मेहनत की। अपनी बेटी को जन्म देने से महज़ एक दिन पहले, 18 मार्च को उन्होंने टेस्टिंग किट की परख के लिए इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) को सौंपा। उसी शाम को यानी अस्पताल में जाने से पहले, उन्होंने इस किट के प्रस्ताव को भारत के फ़ूड एंड ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी (सीडीएससीओ) के पास व्यवसायिक अनुमति के लिए भेजा।
– नतीजे शत प्रतिशत सही
इस किट को परखने के लिए भेजे जाने से पहले टीम ने इस अलग-अलग मापदंडों पर कई बार जांचा परखा ताकि इसके नतीजे सटीक निकलें। इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने मायलैब किट को सही ठहराया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अधीन काम करती है। आईसीएमआर ने कहा कि मायलैब भारत की इकलौती कंपनी है जिसकी टेस्टिंग किट के नतीजे 100 प्रतिशत सही हैं। आईसीएमआर की घोषणा के बाद के दिनों में, सरकार ने पिछले सप्ताह निजी कंपनियों द्वारा 18 डायग्नोस्टिक किट की बिक्री को मंजूरी दी।