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1200 रुपए की पुरानी साइकिल खरीद कर वह चल पड़ा गांव की ओर

Tez Samachar by Tez Samachar
May 13, 2020
in Featured, प्रदेश
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1200 रुपए की पुरानी साइकिल खरीद कर वह चल पड़ा गांव की ओर

सांकेतिक चित्र

दमोह (तेज समाचार डेस्क). लॉक डाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके गांव-घर भेजने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. मगर कई जगहों पर लोग इसके पहले ही पैदल, दोपहिया, साइकिल और जो मिले उस साधन से अपने गांव निकल गए हैं. ऐसे ही पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी निवासी एक युवक पुणे से साइकिल चलाते हुए अपने गांव जाने निकला है. 15 दिन बाद वह मध्यप्रदेश के दमोह में पहुंच गया. लंबे सफर से थकावट, मुरझाया चेहरा, पथरीली आंखें और सूखे होंठ, लेकिन जैसे ही दमोह में उसने पुलिस शिविर के पास पानी और फ़ूड पैकेट दिखे तो उसकी आंखें चमक उठीं और चेहरे पर मुस्कान भी आ गई.
– जहां जो मिला खा लिया, नहीं तो पानी से चलाया काम
इस युवक का नाम अमूल्य सरकार है जो पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी निवासी है. वह 15 दिन पहले पुणे से अपने गांव पहुंचने के लिए एक पुरानी साइकिल लेकर निकला था और मंगलवार को सुबह दमोह पहुंचा. अमूल्य सरकार के चेहरे पर दिखने वाली तकलीफ उन हजारों-लाखों लोगों की तस्वीर बयां कर रही थी, जो इस लॉकडाउन के दौरान अपने घर पहुंचने के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार हैं. न भूख, न प्यास, केवल अपने घर पहुंचने की चाह. जहां जो मिला खा लिया, कुछ नहीं मिला तो पानी पीकर अपने पेट की आग बुझा लेते हैं.
– भगवान ऐसे दिन किसी को न दिखाए
अमूल्य ने अपने इस सफर के दर्द को बताते हुए कहा, भगवान ऐसे दिन किसी को न दिखाए. टूटी-फूटी हिंदी के साथ इन शब्दों को कहते ही वह कुछ देर के लिए निःशब्द सा हो गया. उसकी खामोशी देखकर ऐसा लगा जैसे उसकी तकलीफ उसके गले में रुदन बनकर उसके शब्दों को रोकने का प्रयास कर रही है. लोगों ने उसे साहस बंधाने का प्रयास किया, जिसके बाद वह कुछ सामान्य हुआ. उसने बताया कि लॉकडाउन के बाद से वह अपने घर में कैद था. मजदूरी से जो कुछ कमाया था, उसे परिवार के पास भेजना था, लेकिन वह उसने ही खर्च कर दिया.
– पुणे में करता था मजदूरी
उसने बताया कि, वह अकेले पुणे में रहकर मजदूरी करता है. पूरा परिवार सिलीगुड़ी में रहता था. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए कुछ सालों से वह पुणे में ही एक फैक्ट्री में मजदूरी कर रहा है. 15 दिन पहले उसे लगा कि अब हालात सामान्य होने की बजाय और खराब हो रही हैं, इसलिए उसने 12 सौ रुपए में एक पुरानी साइकिल खरीदी और अपनी जरूरत का सामान लेकर अपने घर के लिए निकल पड़ा. उसका कहना था कि उसे नहीं मालूम कि वह कितने दिन बाद अपने घर पहुंचेगा. उसने बताया कि 15 दिन पहले वह पुणे से निकला था.
– पुलिस के टेंट पर खाना देख कर चेहरे पर छाई मुस्कुराहट
वह कई घंटे रोज साइकिल चलाता है, जहां हिम्मत टूट जाती है और थकान होती है, वहीं कुछ देर के लिए आराम कर लेता है और फिर चलने लगता है. खाने के लिए रास्ते में जो मिलता है, उसकी से पेट की आग बुझा लेता है. उसने बताया कि दमोह बायपास पर पहुंचते ही जब उसने पुलिस टेंट के समीप खाने के पैकेट देखे तो वह समझ गया कि यहां खाना बांटने के लिए रखा है. उसे भूख लगी थी इसलिए वह दौड़कर वहां पहुंच गया. कुछ देर वह नाके पर ही रुका रहा. उसकी तकलीफ देखते हुए किसी पुलिसकर्मी ने उसे साइकिल सहित किसी ट्रक में आश्रय दिला दिया ताकि वह कुछ किमी का सफर राहत में गुजार सके.
Tags: #trending newscorona virushindi newsLock downtravel by cycle
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