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आखिर क्या हुआ था 15 जून को भारत-चीन सीमा पर, कि खौल गया बिहार रेजिमेंट का खून और बिछा दी चीनियों की लाशें

Tez Samachar by Tez Samachar
June 22, 2020
in Featured, देश
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आखिर क्या हुआ था 15 जून को भारत-चीन सीमा पर, कि खौल गया बिहार रेजिमेंट का खून और बिछा दी चीनियों की लाशें
नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). गलवान घाटी में 15 जून की रात को क्या घटनायें घटी थीं, उसको लेकर अब तस्वीर साफ होती जा रही है. कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स और कई बड़े नेताओं के बयान से यह साफ़ समझा जा सकता है कि 15 जून की रात को असल में भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना पर तबाही के बादल बरसा दिये थे. बेशक पहला प्रहार चीनी सेना ने किया था, लेकिन उस प्रहार का जवाब देने में भारतीय सैनिकों ने किसी बॉर्डर या किसी एलएसी की कोई परवाह नहीं की. भारत के सैनिकों ने चीन के कब्जे वाले लद्दाख में घुसकर पीएसल के सैनिकों को चुन-चुन कर मारा, और पीएम मोदी के शब्दों में वे “मारते-मारते मरे”.

– पिता समान सीओ को धक्का मारने से खौला खून
चीनी सेना का बुरा हाल हो गया, और हो भी क्यों ना, आखिर चीनी सेना का पाला 16वीं बिहार रेजिमेंट के जवानों से जो पड़ा था.India today के लिए लिखते हुए पत्रकार शिव अरूड ने इस घटना के बारे में विस्तार से लिखा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन और भारत के बीच झड़प तब शुरू हुई जब बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर को चीनी सैनिकों ने ज़ोर से धक्का दे दिया. दरअसल, 15 जून को CO संतोष बाबू चीनी सेना द्वारा बनाए गए एक ढांचे का जायजा लेने के लिए गए थे. वह ढांचा भारत की ज़मीन पर बना था और बातचीत के मुताबिक उसे वहां नहीं होना चाहिए था. जैसे ही कर्नल संतोष ने चीनी सैनिकों से पूछताछ करनी चाही, तुरंत चीनी सैनिकों ने उन्हें ज़ोर से धक्का देकर पीछे धकेल दिया. भारतीय सेना में कमांडिंग ऑफिसर को पिता-तुल्य माना जाता है. ऐसे में अपने CO का अपमान होता देख भारतीय सैनिकों का खून खोल गया, और उन्होंने चीनी सैनिकों की वहीं जमकर धुनाई कर दी.

– बदला लेने की मंशा से लौटे चीनी सैनिक
चीन और भारत के बीच यह पहली हिंसक झड़प थी. पहली झड़प में तो भारत ने चीनियों को नाकों चने चबवा दिये, और चीनियों को मौके से भगा दिया. CO संतोष को शक था कि ये चीनी सेना बड़ी संख्या में दोबारा आ सकते हैं, ऐसे में संतोष बाबू ने भी और ज्यादा भारतीय सैनिकों को बॉर्डर पर भेजने के निर्देश दिये. CO संतोष बाबू का शक सही निकला, और शाम होते-होते बड़ी संख्या में चीनी सैनिक बॉर्डर पर पहुंच गए. बिहार रेजिमेंट के सैनिकों का तो पहले ही खून खोल रहा था. उन्हें बदला चाहिए था. चीनी सैनिकों ने आते ही पत्थरबाज़ी शुरू कर दी, जिसमें एक पत्थर आकर CO संतोष के सर पर लगा और वे पास की खाई में गिर गए, जिसमें नीचे पानी भी भरा हुआ था. चीनी सैनिकों के पास लोहे की कील लगे डंडे थे, कंटीले तारों वाले हथियार थे, जिसकी सहायता से चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर धावा बोल दिया. दोनों पक्षों के बीच इसी वक्त सबसे ज्यादा खूनी संघर्ष हुआ. दोनों ओर से बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए.

– दोनों सेनाओं के कई सैनिक खाई में गिरे
भारत और चीन के कई सैनिक खाई में गिर गए, तो वहीं भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों से उनके हथियार छीनकर ही उनपर धावा बोल दिया. इस दौरान भारत की ओर से 35 जवान थे, तो वहीं चीन की ओर से लगभग 250 जवान आए थे. यह झड़प करीब 45 मिनट चली. करीब 10 बजे से लेकर 15 जून की रात 11 बजे तक फिर बॉर्डर पर शांति रही. दोनों ओर की सेनाएँ अपने-अपने सैनिकों के मृत शरीरों को रिकवर करने लगीं.इसी बीच भारतीय सैनिकों को आसमान में उड़ता एक ड्रोन दिखाई दिया, और यही से भारतीय सैनिकों को अहसास हो गया कि चीन एक और हमला कर सकता है.

– सीओ के शहीद होने पर भड़की प्रतिशोध की ज्वाला
इधर अपने CO को खो देने वाले भारतीय सैनिकों में भी प्रतिशोध की ज्वाला भभक रही थी. यही वो समय था जब उन सैनिकों के पास वीरगति को प्राप्त हो चुके CO संतोष के निर्देशानुसार सेना की एक और टुकड़ी सहायता के लिए पहुँच गयी. उस नई टुकड़ी में भारतीय सेना के “घातक सैनिक” शामिल थे, इसके साथ ही 3 पंजाब रेजिमेंट के कई जवानों को भी उनकी सहायता के लिए भेजा गया था.रात 11 बजे के आस-पास भारतीय सैनिकों ने एक योजना बनाई. उन्होंने चीनी सेना को LAC पर आने से रोकने के लिए स्वयं ही चीन के कब्जे वाले इलाके में घुसने का प्लान बनाया.

– पंजाब रेजिमेंट भी मदद को पहुंची
कुछ ही देर में भारत के पंजाब रेजिमेंट और बिहार रेजिमेंट के “घातक सैनिक” चीन के इलाके में घुस चुके थे और उन्हें साफ निर्देश दिये गए थे “जो दिखे-उसे मारो”. 11 बजे के बाद भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों पर धावा बोल दिया और इस दौरान चीनी सेना के कई सैनिक खाई में गिरा दिये गए. ये वही चीनी सैनिक थे, जिन्होंने इससे पहले बिहार रेजिमेंट के जवानों पर लोहे की कील लगे डंडों के साथ हमला किया था. इन्हीं सैनिकों ने कई भारतीय सैनिकों को उस हाल में पहुंचा दिया था, जिसमें उनकी पहचान करना भी मुश्किल हो गया था. लेकिन अब बारी चीनी सैनिकों की थी. सबसे पहले भारत के सैनिकों का सामना चीन के 60 सैनिकों से हुआ. भारत के घातक सैनिकों ने उनपर बेरहमी से हमला बोल दिया.

– चीनियों के गर्दन की हड्डियां तोड़ दी
सूत्रों के मुताबिक “भारत के घातक सैनिकों ने चीन के सैनिकों की हड्डियाँ तोड़ दी. कई चीनी सैनिकों की गर्दन उनके धड़ पर झूल रही थी. कुछ चीनी सैनिकों के मुंह को चट्टानों से इतनी ज़ोर से भिड़ाया गया था कि उनकी पहचान करना मुश्किल हो गयी थी. कई चीनी सैनिक तलवार लेकर हमला करने पहुंचे, तो भारतीय सैनिकों ने उनसे तलवार को छीन लिया और उनपर ही जानलेवा हमला करना शुरू कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सैनिकों ने 18 सैनिकों को मौके से भागने पर मजबूर कर दिया. भारतीय सैनिकों ने उनका पीछा किया और इस तरह आखिर में भारत के लगभग 10 सैनिक चीन की गिरफ्त में पहुँच गए.

– दोनों देशों ने पकड़े गए सैनिकों को दी मेडिकल सुविधा
जनरल वीके सिंह के खुलासों के मुताबिक इस मुठभेड़ में भारत ने भी चीन के कुछ सैनिकों को पकड़ लिया था. हालांकि, दोनों ओर पकड़े गए सैनिकों के साथ मानवीय व्यवहार किया गया और उचित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की गयी. इस तरह 3 चरणों के बाद आखिर यह खूनी संघर्ष खत्म हुआ, और भारत के जहां 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, तो वहीं चीनी सेना के भी 43 से ज़्यादा सैनिक मारे गए.

– दोगुने सैनिक मारे
यहां जनरल वीके सिंह का बयान महत्वपूर्ण हो जाता है. उनके अनुसार “अगर हमारे बीस वीरगति को प्राप्त हुए हैं तो उनके (चीन) दोगुने से ज्यादा सैनिक मारे गए. हमारे सैनिकों ने बदला लेकर शहादत दी है. चीन संख्या छिपाता है. साल 1962 के युद्ध में भी उसने हताहतों की संख्या को स्वीकार नहीं किया था. सिर्फ चीन ने ही भारत के सैनिक नहीं लौटाए, बल्कि भारत ने भी चीन के सैनिक लौटाए हैं”.भारतीय सैनिकों का घातक पलटवार शायद इसलिए ज़्यादा बेरहम था, क्योंकि बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अपने सीओ को खो दिया था.

– शौर्य गाथा से भरा है बिहार रेजिमेंट का इतिहास
बिहार रेजिमेंट का इतिहास ही शौर्य से परिपूर्ण रहा है. इस रेजिमेंट के जांबाज सैनिकों ने 79 वर्षो की निरंतर सेवा में अनुशासन, देशप्रेम और बलिदान का कीर्तिमान रचा है. यहाँ तक कि ब्रिटिश भी बिहारी सैनिकों का लोहा मानते थे और ईस्ट इंडिया कंपनी सेना में चयन के लिए सदैव ही बिहारियों को प्राथमिकता देती थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 15 सितंबर 1941 को प्रथम बिहार बटालियन का गठन हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध, 1965 एवं 1971 के भारत-पाक युद्ध, बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में बिहार रेजिमेंट ने अपने पराक्रम का परिचय दिया था. इसी प्रकार वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में भी बिहार रेजिमेंट के एक मेजर समेत 19 वीर सैनिकों ने बलिदान देकर भारत को शत्रुओं से रहित किया था.15 जून की रात को भारत के सैनिकों द्वारा दिये गए बलिदान के हम सदैव ऋणी रहेंगे. भगवान उन सभी वीर सैनिकों की आत्मा को शांति दे!

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