उम्मीद तो यही थी कि देश के सर्वशक्तिमान, जब लॉकडाउन में छठी बार देश के नाम संदेश देंगे, तो कोई बड़ा ऐलान करेंगे. मगर 16 मिनट तक पहाड़ खोदा और उसमें से चूहा निकला! तो देशवासियों ने माथा पीट लिया. ‘भक्त’ भी परेशान हो गए कि क्या-क्या नहीं सोच रखा था हमने… और ‘साहेब’ ने यह क्या पुडिय़ा छोड़ दी! निर्मला बाई ने 27 मार्च को जो ढोल पीटा था, उसी को 30 जून को साहेब ने अगले 5 महीने तक आगे बढ़ा दिया. हमारी समझ में ये है वोटों का टेंशन ….इसलिए ‘मुफ्त अनाज योजना’ को उन्होंने खुद रेडियो-टीवी पर आकर दे दिया एक्सटेंशन! ताकि सर्वत्र ‘साहेब’ की वाहवाही हो सके और बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वोटों की फसल कट सके.
बहरहाल, साहेब ने अपने संबोधन में दो बार ‘छठ पर्व’ का नाम लिया. इससे साफ हो गया कि वे ‘छठ-पर्व’ की आड़ में बिहार में वोटों के जुगाड़ में हैं. छठ पूजा का पर्व बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है. उसी के तुरंत बाद वहां चुनाव होने हैं. इसलिए ‘गरीब कल्याण योजना’ को बढ़ाया गया है. अगर यह राजनीतिक स्टंट नहीं होता, तो इसका ऐलान अपने रामविलास बाबू या निर्मला बाई भी कर सकती थीं. मगर वोटों के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. सूरज को चांद, चांद को सितारा, धरती को आसमान और आकाश को पाताल भी बता सकते हैं! फिर किस ‘भक्त’ की मजाल है कि उनके सामने कुछ बोलें! बेचारे कार्यकर्ता, साहेब की हां में हां मिलाने के लिए ही तो जिंदा हैं!
‘साहेब’ ने उस दिन घोषणा की कि इस अनाज योजना का लाभ देश के 80 करोड़ लोगों को होगा. और इस पर 90 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे. ये आंकड़े सुनने-पढऩे में बड़े प्रभावी लगते हैं, किंतु हकीकत इसके ठीक विपरीत है. साहेब-राज के खाद्य मंत्रालय की रिपोर्ट से ही ‘ढोल में पोल’ उजागर होती है. यह सरकारी अहवाल है कि महाराष्ट्र और गुजरात में मुफ्त अनाज का वितरण अप्रैल माह में तो ठीक-ठाक हो गया, लेकिन मई और जून में मात्र 13 प्रतिशत अनाज ही श्रमिकों-गरीबों में वितरित किया जा सका. जबकि यूपी-बिहार सहित 11 राज्यों में केवल 5 से 10 फीसदी अनाज ही बांटा गया. आप 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज देने की घोषणा करते हो साहेब, लेकिन सच्चाई यह है कि विगत 3 माह में देश के केवल 2 करोड़ 13 लाख लोगों को ही इसका लाभ मिल पाया है. यह हमारा नहीं, सरकारी अहवाल है. कम-से-कम अब तो फेंकना बंद करो साहेब!
उसी दिन साहेब ने इस 90 हजार करोड़ की योजना को पूरा करने का श्रेय देश के अन्नदेवता किसानों और ईमानदार टैक्सपेयर्स को देते हुए कहा कि इनके कारण ही गरीबों के घर में चूल्हा जल रहा है. यानि मेहनत करें मुर्गा …और अंडा खाए फकीर! यहां गरीबों को मुफ्त अनाज बांटने पर किसी का विरोध नहीं है, लेकिन उसके लिए किसानों और ईमानदारी से टैक्स देने वालों की और कितनी जेबें काटोगे साहेब? अमीरों को तो आप लोन बांटते हो और गरीबों को अनाज… मगर मध्यमवर्ग को क्या दे रहे हो? कोरोना-काल में उसकी भी तो कमर टूट चुकी है. वह भी सड़क पर आ चुका है. कोरोना की चक्की में उसी मिडल क्लास की पिसाई हो रही है, जो ना तो रोज कमाने-खाने वाला मजदूर है, न गरीब है, ना अमीर है. वह किसान है. छोटा-मोटा व्यापारी है. वह दुकानदार है. वह रोजगार में है अथवा बेरोजगार है. एक कड़वा सच यह भी है कि हर शहर में प्रत्येक 5वां व्यक्ति आज की तारीख में बेरोजगार हो चुका है. उसकी सुधि कौन लेगा साहेब?
यूं तो इस संकट काल में भी बेफिक्र है अपर क्लास, … और ‘माईबाप’ बना है लोअर क्लास! मगर मर रहा है मिडल क्लास! इसी मध्यवर्ग की जेब में महंगे हुए पेट्रोल-डीजल-गैस, सब्जियां, अनाज आदि खरीदने के लिए भी पैसे नहीं है. फिर भी उसे मकान-दुकान का किराया अथवा टैक्स देना है. बैंकों की किश्तें चुकानी हैं. और अब तो उसे 3 महीने का हजारों रुपयों का बिजली बिल भी भरना है. इसलिए साहेब, वह मरने लगा है. आत्महत्या करने लगा है. आप तो गरीबों के वोट लेने के लिए योजना बनाते हो साहेब, लेकिन ये मिडल क्लास भी आपका वोटर है. इसमें से आधे आपके ‘भक्त’ भी हैं. बचा लो इस वर्ग को, वरना वो नहीं संभल पाएगा… और 2024 तक आपके हाथ से भी निकल जाएगा!