पौराणिक काल में एक राक्षस को भगवान शंकर ने ऐसा वरदान दिया था कि वह जिस चीज या व्यक्ति पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगी. उसने यह वरदान पाकर सर्वनाश शुरू कर दिया. एक बार देवी पार्वती को देखते ही आसक्त होकर उन्हें पाने के लिए शंकरजी को ही भस्म करने दौड़ पड़ा. तब शिव जी ने विष्णुजी की शरण ली और उन्होंने मोहिनी रूप धरकर भस्मासुर को उसी का हाथ खुद के सिर पर रखने विवश कर दिया. इस तरह बड़ी मुश्किल से ‘भस्मासुर’ का अंत हुआ. पौराणिक काल की यह कथा कलयुग में भी कई मर्तबा देखी-सुनी जाती है. उत्तर प्रदेश के कानपुर का शूटआउट कांड और एनकाउंटर में हुआ ‘विकास वध’… उक्त कथा की पुनरावृत्ति ही है. इतिहास स्वयं को दोहराता है, दोहराता ही रहेगा, लेकिन सत्ता और सिस्टम के वर्तमान ‘शंकरों’ को यह सोचना ही होगा कि वे कब तक और कितने ‘भस्मासुर’ पैदा करते रहेंगे?
मात्र 17 वर्ष की उम्र में पूरी बारात लूटने वाले विकास दुबे ने अपनी उम्र के 25वें साल में अपने ही गुरु (प्रिंसिपल) की हत्या कर दी थी. उसने पुलिस थाने में सरेआम तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को गोलियों से भून डाला था. 5 साल चले मुकदमे में वह बाइज्जत बरी भी हो गया. क्योंकि खाकी वर्दी में छिपे सिस्टम के बिकाऊ चश्मदीद अदालत में अपने बयानों से पलट गए. तब तक उसने जमीन कब्जाने, लूटपाट, डकैती और हत्या के मामलों की झड़ी लगा दी. इसी बीच उसने समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली, जिसमें फूलन देवी और मलखान सिंह जैसे कुख्यात डकैतों को भी लोकसभा भेजा जाता था. राजनीतिक संरक्षण पाकर विकास दुबे यूपी का इतना भयानक ‘भस्मासुर’ बन गया कि बीते सप्ताह अपने ही गांव में उसे दबोचने आए 8 पुलिस वालों की हत्या कर दी. जाहिर है, योगी सरकार के गाल पर यह ऐसा झन्नाटेदार तमाचा था, जिसकी अनुगूंज देश-विदेश तक सुनाई दी. तभी यह तय हो गया था कि विकास दुबे का एनकाउंटर होना निश्चित है.
वह 8 दिनों तक छिपता-फिरता रहा. 21वीं सदी के इस भस्मासुर को लगा था कि उज्जैन के महाकाल उसे बचा लेंगे, लेकिन भगवान ने कोई दया नहीं की. बुरे कर्म करने वाले विकास दुबे को किसी ने माफ नहीं किया. अंततः उसका एनकाउंटर कर दिया गया. अगले ही दिन सुबह-सुबह उसे कानपुर के पास ढेर कर दिया गया. अब इस एनकाउंटर वाली पुलिस की कहानी में कितने ही झोल क्यों ना हों, लेकिन अदालत में सभी का बचना तय है. काश! उसे पहले ही उसे उसकी औकात दिखा दी जाती, तो वह इतना ‘भयानक भस्मासुर’ नहीं बनता.
उत्तर प्रदेश की राजनीति को दहला चुका विकास दुबे, ‘सियासी फैक्ट्री’ का ऐसा प्रोडक्ट था, जिसे हर पार्टी, हर आला नेता ने आस्तीन का सांप बनाकर इसलिए पाला, ताकि वह उनके काम आ सके. लेकिन अब उसे इसलिए मार डाला गया, ताकि वह खादी और खाकी वर्दी वालों की पोल ना खोल दे! जिस सिस्टम ने उसे पैदा किया और पाल-पोस कर बड़ा-खड़ा किया था, वह उसी सिस्टम (तंत्र) के आंख की किरकिरी बन गया था और उसी का खून पीने लगा था. इसलिए उसका एनकाउंटर कर दिया गया. यहां सवाल है कि ऐसे पचासों-सैकड़ों विकासों के एनकाउंटर से क्या समाजविरोधी तत्व सुधर जाएंगे? आखिर कब होगा गैंगस्टर पैदा करने वाले भ्रष्ट सिस्टम का एनकाउंटर? विकास के कफ़न में खादी और खाकी वर्दी वालों के सारे राज भले ही आज दफ़न हो गए हों, लेकिन क्या गारंटी है कि कल को फिर कोई नया विकास न पैदा हो जाए! इसलिए इस सिस्टम का एनकाउंटर होना ही जरूरी है.
ऐसा नहीं है कि विकास जैसे ‘भस्मासुर’ सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही पैदा होते हैं. यूपी-बिहार से लेकर राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के कई इलाके सत्ता की छत्रछाया में भस्मासुरों से भरे पड़े हैं. जल्लाद माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम क्या है? किसने उसे ‘भाई’ बनाया? जाहिर है, जब तक राजनीति का अपराधीकरण होता रहेगा, विकास दुबे या दाऊद इब्राहिम जैसे भस्मासुर पैदा होते ही रहेंगे. देश-प्रदेश के नेताओं ने पूरे सिस्टम का सत्यानाश कर दिया है. जिले-जिले, शहर-शहर में बैठे ‘भस्मासुरों’ ने समाज की नाक में दम कर रखा है. बिकाऊ सफेदपोशों और वर्दी वालों का ही आशीर्वाद इन पर रहता है. इनके खिलाफ कहीं कोई सुनवाई नहीं होती. इन्हीं की मिलीभगत से ऐसे ‘भस्मासुर’,… देश और समाज की मूल आत्मा को भस्म कर रहे हैं. सावधान रहिए. जय हिंद.
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