• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

बिहार विधानसभा चुनाव : सीटों के बंटवारे को लेकर जदयू-भाजपा में पेंच फंसा

Tez Samachar by Tez Samachar
September 18, 2020
in Featured, प्रदेश
0
बिहार विधानसभा चुनाव : सीटों के बंटवारे को लेकर जदयू-भाजपा में पेंच फंसा
पटना (तेज समाचार डेस्क). महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के बीच छोटे भाई, बड़े भाई के विवाद में गत विधानसभा चुनाव में बहूमत से दूर लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा को विपक्ष में बैठने की नौबत आई. गठबंधन में चुनाव जीतने के बाद भी पहले बड़े भाई की भूमिका निभानेवाली शिवसेना ने छोटा भाई बनते ही, चुनाव के बाद युति तोड़ कर राकां, कांग्रेस के सहयोग से सरकार बना ली, लेकिन समान विचारधारा वाली भाजपा को बड़ा भाई मानने से इनकार कर दिया. ऐसा ही कुछ अब बिहार विधानसभा में भी देखने को मिल रहा है.
जदयू, भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं
बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा अभी भले नहीं हुई है लेकिन सियासी सरगर्मी अपने उफान पर है. कहीं सीटों को लेकर दावेदारी है तो कहीं गठबंधन का पेंच फंसा है. कोई अपनी जीती हुई सीट छोड़ने को तैयार नहीं है तो कोई मुश्किल सीटों पर लड़ने से बच रहा है. जिसका जहां वोट बैंक है, उसके आधार पर अपनी जोर आजमाइश कर रहा है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भले कह रहे हैं कि एनडीए में सबकुछ ठीक है लेकिन लोजपा ने जिस तरह का रूख अख्तियार किया है, खासकर के जदयू के खिलाफ उससे लगता है कि कहीं न कहीं सीटों को लेकर पेंच जरूर है. आखिर ऐसा क्यों हैं इसे समझने की कोशिश करते हैं.
नहीं टिक पाया था लालू, नीतीश का गठबंधन
दरअसल 2015 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में थोड़ा अलग और दिलचस्प था. इस चुनाव में वर्षों के यार जुदा हो गए थे और पुराने धुर विरोधी एक हो गए थे. 20 साल बाद लालू और नीतीश एक साथ मिलकर महा गठबंधन (जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी) के रूप में चुनाव लड़ रहे थे, जबकि दूसरी ओर भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हम पार्टी मिलकर उनका मुकाबला कर रही थीं. चुनाव परिणाम घोषित हुए तो महा-गठबंधन को बहुमत मिला, सरकार भी बनी लेकिन दोनों का साथ ज्यादा दिन नहीं चल सका और जुलाई 2017 में नीतीश महा-गठबंधन से अलग होकर फिर से एनडीए में आ गए. इस बार के चुनाव में जदयू, भाजपा, लोजपा और हम पार्टी साथ हैं तो वहीं रालोसपा एनडीए से अलग होकर महा-गठबंधन का हिस्सा हो गई है.
भाजपा केा बड़ा भाई मानने को स्वीकार नहीं जदयू
2015 के पहले जदयू बड़े भाई की भूमिका में होती थी लेकिन इस बार भाजपा छोटे भाई की भूमिका में नहीं रहना चाहती है. राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों दल बराबर- बराबर सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. अगर इस पर बात बन भी जाए तो मुश्किल यह है कि लोजपा और दूसरी सहयोगी पार्टियों को कितनी सीटें दी जाए.
आसान नहीं हैं सीटों का बंटवारा
अगर सीटों का बंटवारा हो भी जाए तो कौन किस सीट से लड़ेगा, इस मसले को सुलझाना आसान नहीं होगा. क्योंकि पिछले चुनाव में 52 सीटों पर जदयू और भाजपा में सीधी टक्कर यानी यहां दोनों पार्टियां पहले और दूसरे नंबर पर थीं. इनमें से 28 जदयू और 24 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं. 22 सीटों पर तो हार जीत का अंतर 10 हजार से भी कम था. जबकि जदयू और लोजपा 22 सीटों पर आमने- सामने थीं, इनमें से 21 पर जदयू को जीत मिली थी. इस बार लोजपा की पूरी कोशिश है कि उसे कम से कम वो सीटें तो मिले ही जिस पर पिछली बार उसने चुनाव लड़ा था, लेकिन मुश्किल यह है कि जदयू अपनी जीती हुई सीटें इतनी आसानी से कैसे देगी.
2010 में छोटे भाई की भूमिका में थी भाजपा
आखिरी बार 2010 में भाजपा और जदयू एक साथ लड़ी थीं. उस वक्त भाजपा ने 102 और जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इनमें से 115 पर जदयू को और 91 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. पिछली बार रालोसपा एनडीए का हिस्सा थी. लेकिन इस बार वह महा-गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. 2015 में14 सीटों पर रालोसपा का मुकाबला राजद और कांग्रेस के साथ हुआ था. जिसमें से सिर्फ दो सीटों पर रालोसपा को जीत मिली थी. पिछले चुनाव में 8 सीटें ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर एक हजार से भी कम था. इनमें से तीन राजद को, तीन भाजपा को और एक-एक जदयू और सीपीआई को मिली थी. तरारी सीट पर जीत-हार का अंतर 272 तो चनपटिया सीट पर सिर्फ 464 वोट का अंतर था.
कहीं भाजपा तो कहीं जदयू का चलता है सिक्का
अगर हम पिछले कुछ चुनावों को देखें तो कई दिलचस्प आंकड़े सामने आते हैं. कई ऐसी सीटें हैं जहां एक ही पार्टी लंबे समय से चुनाव जीत रही है तो कई ऐसी सीटें हैं जहां लंबे वक्त से किसी पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई है. कुम्हरार, बनमनखी और गया टाउन, ये तीन सीटें भाजपा की गढ़ रही हैं. यहां भाजपा 1990 से चुनाव जीत रही है. वहीं बांकीपुर, दानापुर और पटना साहिब सीट पर भाजपा 1995 से जीत रही है. रामनगर, हाजीपुर, चनपटिया और रक्सौल सीट पर भाजपा 2000 से हारी नहीं है. इसके अलावा 11 ऐसी सीटें जहां भाजपा 2005 से लगातार जीत रही है. इस तरह कुल 243 सीटों में 21 पर भाजपा 15 या उससे ज्यादा साल से लगातार जीत रही है. जदयू की बात करें तो वह 17 सीटों पर 2005 से लगातार चुनाव जीत रही है. इनमें लौकहा, त्रिवेणीगंज,जोकिहाट, सिंघेश्वर और महाराजगंज जैसी सीटें शामिल हैं. हालांकि आंकड़ों के इस मुकाबले में कांग्रेस और राजद के हिस्से में कुछ खास नहीं है. कांग्रेस सिर्फ एक सीट (बहादुरगंज) पर तो राजद दरभंगा ग्रामीण और मनेर सीट पर 2005 से जीत रही है. इन आंकड़ों को देखें तो 28 सीटों पर भाजपा-जदयू लगातार 15 साल से जीतती आ रही है. इनमें से पिछली बार 10 सीटों पर दोनों आमने-सामने थीं. जिसमें से 3 पर भाजपा और 7 सीटों पर जदयू को जीत मिली थी.
Previous Post

सभी को पूरी तरह से फ्री मिलेगी कोरोना की वैक्सीन

Next Post

कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने राष्ट्रपति को सौँपा इस्तीफा, नरेन्द्र तोमर को दिया गया प्रभार

Next Post
कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने राष्ट्रपति को सौँपा इस्तीफा, नरेन्द्र तोमर को दिया गया प्रभार

कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने राष्ट्रपति को सौँपा इस्तीफा, नरेन्द्र तोमर को दिया गया प्रभार

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.