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” दिवाली पूजा का अद्भुत रहस्य “

Tez Samachar by Tez Samachar
November 14, 2020
in Featured, विविधा
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” दिवाली पूजा का अद्भुत रहस्य “
” दिवाली पूजा का अद्भुत रहस्य “
     
Neera Bhasin      हर वर्ष दिवाली के शुभ अवसर पर हम लक्ष्मी देवी और गणेश जी की पूजा  करते हैं , क्योंकि लक्ष्मी जी धन सम्पदा और वैभव की देवी हैं तो दूसरी ओर गणेश जी की पूजा और स्थापना प्रत्येक  शुभ अवसर पर करने का नियम है। आइये आज हम गणेश जी और लक्ष्मी जी के चित्रों को सामने रख कर उनके रहस्य को समझने का प्रयास करते हैं। (मेरे अनुमान से ) सौ वर्षों से तो अधिक समय बीत चूका होगा जब किसी कलाकार ने हमारे हिन्दू धर्म में मान्यता प्राप्त देवी देवताओं के स्वरूप को पेपर पर उतारा होगा।  चमचमाते रंगों से इन चित्रों में हमारे देवी देवताओं की छवि को इतना सूंदर बनाया है की जो भी देखता है वो आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता। उस पर हीरे जवाहरात ,सिल्क के वस्त्र एवं तरह तरह के फूलों  से श्रृंगार। सब कुछ बहुत ही मन मोहक 
दिखता है।आज हर घर में ऐसे चित्रों के कलेंडर देखने को मिल जाते हैं।  मैं जब जब ऐसे चित्र देखती हूँ मेरे दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग जाती है। किसी भी देवी देवता का चित्र देखूं तो लगता है की कलाकार अपनी 
कृति द्वारा कुछ कहना चाहता है ,लगता है मानो इस में कोई रहस्य छिपा है कहना। यह मात्र छवि नहीं है। हमारे अति प्राचीन काल के इतिहास में भी ऐसा कोई चित्र या साक्ष्य नहीं है जो यह दावे के साथ कह सके की यह चित्र “हाँ !यह चित्र अमुक देवी देवता का  प्रमाणिक चित्र ही है, या उनका यही स्वरुप था। ” आज हमारे पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं और विशवास कीजिये पहले भी नहीं था। यह सब कल्पना के आधार पर किया गया है। इसमें कलाकार ने तत्कालीन संस्कृति ,सभ्यता और रीती रिवाजों को अपना आधार बनाया हो ऐसा हो सकता है। इन चित्रों में छिपे रहस्य हमारी वैदिक शिक्षा को दर्शाते हैं 
                हिन्दू धर्म को मानने वाले हर वर्ष दिवाली के त्यौहार को बड़ी धूम धाम से मनाते हैं। बरसात की ऋतू के बाद जिस तरह जिस प्रकृति का कण कण जगमगा उठता है ,चारों ओर धरती का कोना कोना नए वस्त्र धारण कर खिल उठता है ,सब तरफ हरियाली ही हरियाली 
दिखाई देती है उसी तरह दुनिया भर में रहने वाले हिंदुयों का रोम रोम 
ख़ुशी से झूम रहा होता है जब दिवाली पर्व का आगमन होता है। इस त्यौहार के साथ  कई कथा कहानियां जुड़ी  हैं। अलग अलग प्रांतो के लोग अपने अपने मत के और प्रचलन के अनुसार दिवाली का त्यौहार मनाते हैं। अब कथा कथानक कुछ भी हों किसी भी प्रान्त के हों पर पूजा सब लक्ष्मी देवी की ही करते हैं। पंडित जी आते हैं मंत्रोचारण करते हैं प्रतिमा या चित्र पर फल फूल मिठाई आदि का भोग लगाते हैंऔर अपनी दान दक्षिणा को झोले में भर कर अगले घर की ओर बड़ जाते हैं। (आज के दौर में इंटरनेट द्वारा भी पूजा के विधि विधान की सुविधा उपलब्ध है ) पकवान और मिठाइयों से खुशियां बाँट कर और मना कर सभी संतुष्ट दिखाई  देते हैं। 
    आइये  अब इन चित्रों में छिपे रहस्य को समझने का प्रयास  करते हैं ——
देवी लक्ष्मी का चित्र –
हम देख सकते हैं की चित्र में लक्ष्मी जी के मुख पर मोहक मुस्कान और 
आँखों में ख़ुशी की चमक दिखाई दे रही है। वे कमल के फूल पर विराजमान हैं ,लाल रंग के वस्त्र एवं  बहुमूल्य गहनों को धारण किये हैं। 
 (लालरंग भोग विलास का प्रतीक भी माना जाता है। ) 
हाथों में सुंदर कंगन आदि सुशोभित हैं। माथे पर बिंदी और आँखों में काजल की पतली सी रेखा जिसने देवी माँ की आँखों को एक अद्भुत 
चमक प्रदान कर दी है।(एक ऐसी चमक जो धन पाने पर दिखाई
 देती है )  चित्र में संपन्नता स्पष्ट दिखाई दे रही है “भौतिक संपन्नता”  लक्ष्मी जी को  धन- धान्य की देवी  भी कहा जाता है। हम भी  दिवाली के दिन जब लक्ष्मी  पूजा करते हैं तो भौतिक सुखों के लिए ही “माँ ” का आशीर्वाद मांगते है। अब जरा गौर करें -चित्र में लक्ष्मी माँ चार भुजा धारिणी दिखाई गई हैं। उनके दो हाथों में एक एक कमल का फूल है ,जो पवित्रता के प्रतीक माने जाते हैं। कमल के फूल गंदले पानी या कीचड में उगते हैं पर अपने आस्तित्व को सदा पानी की गंदगी से ऊँचा उठा कर रखते हैं। गंदे पानी की एक बूँद भी कमल की पंखुड़ी  पर नहीं ठहर सकती। यह प्रकृति का सन्देश है। आप चाहे लाख बुराइयों से घिरे हों पर यदि आपके कर्म और आप का जीवन निर्मल है तो कोई भी बुराई (गंदगी )आप को छू नहीं सकती। याद रहे कमल का फूल रोज सुबह  सूरज की किरणों के साथ खिलता और विकसित होता है। अन्धकार क्षणभंगुर है -और जीवन एक आशा किरण। लक्ष्मी जी का तीसरा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। जिसे सब लोगों को शीश झुका कर ग्रहण करना चाहिए। पर उनके चौथे हाथ से धन की वर्षा हो रही है और सामने रखा पात्र भरा हुआ है। यदि ध्यान से देखें तो धन पात्र से बाहर भी गिर रहा है। माँ लक्ष्मी ‘कमल’ के फूल पर विराजी हैं और धन की वर्षा पात्र से अधिक होने के कारण स्पष्ट है की नीचे कीचड़ में गिर रही है (ऐसा चित्र में स्पष्ट तो नहीं दीखता पर यह समझना हमारे विवेक पर निर्भर करता है ) जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए धन अर्जित करना संचय करना ये आवश्यक है पर अति का  संचय समाज की आर्थिक व्यवस्था को देखते हुए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।  अर्जित धन कमल के फूल की भांति पवित्र होना चाहिए तभी आप को सच्चा सुख मिल सकेगा। ‘माया ‘कभी एक जगह ठहरती नहीं ,यह आनी -जानी है। इतना भी मोह उचित नहीं की आप धन कमाने के लिएअनुचित राह पकड़ लें। जो वस्तु नश्वर है उसका संचय दुःख देता है। लक्ष्मी माता के चित्र में ये सब  हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। जैसे जीवन क्षण भंगुर है वैसे ही माया भी शास्वत नहीं है ,एक दिन हाथों से फिसल ही जाएगी। 
 गणेश जी का चित्र या प्रतिमा —दिवाली के दिन लक्ष्मी जी के साथ साथ 
गणेश जी की भी पूजा की जाती है। दोनों की साथ साथ पूजा का विधान शायद सदियों से चला आ रहा है। जब की देवी देवताओं के परिवार 
में लक्ष्मी और गणेश जी का कोई पारिवारिक संबंध भी नहीं है। पर यहाँ बात गुणों की है। गणेश जी को कौन नहीं पहचानता। वे सर्व प्रथम 
पुज्य्नीय एवं सर्व गुणों की खान हैं ,रिद्धि सीधी के दाता हैं।  गणेश जी के मुख की आकृति हाथी के मुख जैसी है ,यह छवि कुछ प्रतीकात्मक है 
और कुछ आचार व्यवहार के प्रति मानवजाति को सचेत करने का प्रयास है। उचित समय पर उचित व्यवहार -समझ बूझ, मनुष्य को उसके  जीवन में सुख सम्पदा प्रदान करती है। चित्र  में हमें गणेश जी का  उच्च ललाट दिखाई दे रहा है जो प्रखर बुद्धि को दर्शाता है। उनके बड़े बड़े 
कान दूर तक की ध्वनि को सुन वा समझ सकते हैं। ऐसे गुण व्यक्ति के  व्यवहार को सदा सतर्क  रहने की चेतावनी देते हैं। इनकी छोटी छोटी आंखे दूर दूर तक देख सकती हैं फिर चाहे वो हरी हरी घास हो पानी का तालाब हो  या दुश्मन का आगमन , हाथी तो जमीन पर चल रही नन्ही सी चींटी भी देख लेता है। उनकी लम्बी सी नाक- यह भी आने वाली विपत्तियों को दूर से ही सूंघ कर पहचान लेती है। ये गज मुख की 
कुछ अद्भुत विशेषताएं हैं। हम ये भी कह सकते हैं की हाथी  की ज्ञान इन्द्रियां बहुत सतर्क होती हैं | हमें अपने जीवन में ऐसे ही सदा  सतर्क रहने की आवश्यकता है | ये एक विवेकी मनुष्य के लक्षण हैं  , बड़ा सा पेट यह मात्र जीवन यापन के लिए ग्रहण किये गए आहार का भंडार नहीं है। यह पाचन शक्ति का वो  केंद्र है जिसमे जीवन की हर तरह की अच्छाई  बुराई को हजम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए हमने अपने जीवन में अक्सर किसी ना किसी को यह कहते सुना होगा की —
‘यह बात या सूचना हर किसी को बताने की नहीं है। मुझे  मालुम है  की तुम्हारे पेट में तो कोई बात पचती ही नहीं ‘। हमे जहाँ एक विकसित दिमाग की जरुरत है जो उचित फैसले कर सके वहीँ एक दृढ़ पाचन  शक्ति की भी जो सभी बुराइयों को पचा कर अपने ज्ञान द्वारा अच्छे  गुणों का प्रसार करे। हाथी एक पारिवारिक जंतु है। ये झुंड बना कर  रहते हैं और विपत्ति के समय ये सब एक दूसरे की सहायता करते देखे जा सकते हैं। झुण्ड में चल रहे हाथियों पर तो शेर भी हमला नहीं
करता। चित्र में गणेश जी के हाथ में लड्डू है और सामने रखे पात्र में भी। लड्डू छोटी छोटी बूंदियों  को चाशनी में डुबो कर बनाया जाता है। 
लड्डू जिस तरफ से भी देखें एक सा ही दिखाई देता है ,खाने में मीठा समरस ,यह हमें परिवार में एक साथ मिलजुल कर,एक रस हो कर
रहने का सन्देश है। बूंदी के छोटे छोटे दाने  परिवार के  सदस्यों की तरह हैं जिन्हें एक साथ बंध कर रहना है। 
हम जब कोई पूजा विधि करते हैं तो फल फूल ,अक्षत ,रोली चन्दन आदि को समर्पण करना इसका उद्देश्य नहीं होना चाहिए ना ही ईश्वर को रिश्वत का लालच दे कर अपनी इच्छा पूर्ति के लिए प्रार्थना करना। हमारे पूजा विधान में रखे चित्र या प्रतिमाएं हमें बहुत कुछ कहते हैं ,हमें उन रहस्यों को समझने  का प्रयास करना चिहिए – आइये इस दीवाली पर हम माँ लक्ष्मी देवी और गणेश जी  द्वारा दिए गए सन्देश को समझें और अपना जीवन सफल बनायें | 
दिवाली की शुभकामनायों के साथ “नीरा भसीन “| 
Tags: "Amazing Secret of Diwali Puja"
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