कुछ महीने पहले एअरटेल ने इंटरनेट एप्स के जरिए किए जाने वाले कॉल्स पर अतिरिक्त शुल्क लेने का फैसला कर आम उपभोक्ताओं के बीच खासा आक्रोश पैदा कर दिया था। सरकार ने भी इस मामले में दखल दिया था और मीडिया उस पर बरस पड़ा था, यह कहते हुए कि एअरटेल का फैसला नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ है जिसका अर्थ है सभी सेवाओं को बिना किसी पक्षपात या भेदभाव के उपभोक्ताओं तक पहुँचाना और सबके लिए समान वातावरण सुनिश्चित करना। एअरटेल को अपना फैसला तुरंत बदलना पड़ा था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि कहीं इंटरनेट आधारित सेवाओं को खुद सरकार ही महंगी न बना दे। नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे पर केंद्र सरकार के प्रौद्योगिकी विभाग की तरफ से गठित की गई एके भार्गव समिति की सिफारिशें तो यही संकेत दे रही हैं।
समिति ने कहा है कि व्हाट्सऐप, वाइबर और स्काइप जैसी सेवाओं के जरिए किए जाने वाले घरेलू (डोमेस्टिक) कॉल्स दूरसंचार कंपनियों की तुलना में बहुत सस्ते या मुफ्त हैं और उनके कारोबार को नुकसान पहुँचाते हैं इसलिए इन कॉल्स का नियमन होना चाहिए। मतलब यह कि इन पर कर आदि लगाकर इन्हें मुफ्त की बजाए सशुल्क बनाए जाने की जरूरत है। हालाँकि समिति ने इस श्रेणी के अंतरराष्ट्रीय कॉल्स और चैट संदेशों को मुफ्त ही बनाए रखने की सिफारिश की है। अगर आप इन इंटरनेट सेवाओं का इस्तेमाल देसी कॉल करने के लिए करते हैं तो लगता है आपकी फ्री सर्विस के दिन गिने-चुने रह गए हैं।