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वनवासी अस्मिता की बुलंद आवाज – बाबा कार्तिक उरांव

Tez Samachar by Tez Samachar
October 28, 2024
in Featured, विविधा
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वनवासी अस्मिता की बुलंद आवाज – बाबा कार्तिक उरांव

( प्रशांत पोळ ) दिनांक २९ अक्तूबर, मंगलवार को बाबा कार्तिक उरांव जी Baba Kartik Oraon की जयंती हैं. यह उनका जन्मशताब्दी वर्ष हैं. कार्तिक उरांव तीन बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. उनके मृत्यु के समय वे नागरिक उड्डयन एवं संचार मंत्री थे.

कार्तिक उरांव Kartik Oraon काँग्रेस के संसद सदस्य थे. वह काँग्रेस के मंत्री थे. किन्तु फिर भी काँग्रेस उनकी जयंती नहीं मनाएगी. काँग्रेस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, पं. मदन मोहन मालवीय, राजश्री पुरषोत्तमदास टंडन, डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार… इन लोगों की जयंती कभी नहीं मनाती. आपको, किसी भी काँग्रेस कार्यालय में इन राष्ट्रीय नेताओं के चित्र यदा कदा ही मिलेंगे. इन सब में समानता यह हैं, की ये सारे राष्ट्रीय विचारधारा के नेता थे. इन लोगों ने देश को हमेशा सबसे ऊपर माना. ये सभी काँग्रेस के प्रति समर्पित थे. किन्तु काँग्रेस इनको अपना नहीं मानती.

बाबा कार्तिक उरांव भी इसी श्रेणी के काँग्रेस नेता थे. इसलिए काँग्रेस न तो उनकी जयंती मनाती हैं, और न ही उनका उल्लेख भी करती हैं. जन्मशताब्दी मनाना तो दूर की बात !

कार्तिक उरांव वनवासी क्षेत्र के धाकड़ नेता थे. उस समय के बिहार के अग्रणी नेतृत्व में एक थे. उनका कार्यक्षेत्र आजकल झारखंड में आता हैं. बिहार और झारखंड के वनवासी अंचल में आज भी बाबा कार्तिक उरांव के प्रति जबरदस्त श्रध्दा और सम्मान हैं.

कार्तिक उरांव अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे. गुमला से मेट्रिक करने के बाद, वे ठक्कर बाप्पा के आश्रम में चले गए. उन्ही की प्रेरणा से कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिकी की अनेक डिग्रीयां प्राप्त की. १९५० में वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लंड गए. वहाँ पर उन्होने ९ वर्ष बिताएं. विश्व के सबसे बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट का प्रारूप उन्होने ही बनाया, जो आज ‘हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट’ (Hinkley Point C Nuclear Power Station) के नाम से जाना जाता हैं. इंग्लंड में उनकी भेट नेहरू जी से हुई. और नेहरू जी के आग्रह पर कार्तिक उरांव भारत वापस आएं. एच ई सी में डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद पर वे कार्य करने लगे. किन्तु १९६२ में, काँग्रेस के आग्रह पर, उन्होने तत्कालीन बिहार के लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. लेकिन स्वतंत्र पार्टी के डेविड मुंजनी से मात्र १७,००० वोटों से वे हार गए.

१९६७ में फिर से उन्होने काँग्रेस की टिकट पर लोहरदगा से चुनाव लड़ा और वे संसद सदस्य चुने गए. १९७७ की जनता लहर का अपवाद छोड़ दे, तो अपने मृत्यु तक (१९८१ तक), वे लोहरदगा का प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते रहे. ८ दिसंबर १९८१ को संसद भवन में ही, दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हुई. तब वे केंद्रीय उड्डयन और संचार मंत्री थे.

कार्तिक उरांव मानते थे की काँग्रेस यह मुख्य धारा की पार्टी हैं, अतः काँग्रेस में रहकर ही वनवासियों की दशा और दिशा में सुधार किया जा सकता हैं. इसलिए अनेक कटु अनुभव आने के बाद भी, वे काँग्रेस से ही जुड़े रहे.

वनवासियों के बीच होने वाले ईसाई धर्मांतरण से वे क्षुब्ध थे. इसलिए १९६७ में, संसद में उन्होने ‘अनुसूचित जाति / जनजाति आदेश संशोधन विधेयक १९६७’ लाया. इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति ने बहुत छानबिन की, और १७ नवंबर, १९६९ को अपनी सिफ़ारिशे दी. उनमे प्रमुख सिफ़ारिश थी –

‘२ ब कंडिका २ में निहित किसी बात के होते हुए कोई भी व्यक्ति, जिसने जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया हों और ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हों, वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा.‘

(अर्थात ‘धर्म परिवर्तन करने के पश्चात उस व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत मिलने वाली सुविधाओं से वंचित होना पड़ेगा’, जो अत्यंत स्वाभाविक हैं.)

संयुक्त समिति की सिफ़ारिश के बावजूद, एक वर्ष तक इस विधेयक पर संसद में बहस ही नहीं हुई. प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी पर ईसाई मिशन का जबरदस्त दबाव था की इस विधेयक का विरोध करे. ईसाई मिशन के प्रभाव वाले ५० संसद सदस्यों ने इंदिरा गांधी को पत्र दिया की इस विधेयक को खारिज करे.

इस मुहिम के विरोध मे, अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाकर, कार्तिक उरांव ने १० नवंबर को ३२२ लोकसभा सदस्य और २६ राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षरों का एक पत्र इंदिरा गांधी को दिया, जिसमे यह ज़ोर देकर कहा गया था की ‘वे विधेयक की सिफ़ारिशों का स्वीकार करे, क्यों की यह ३ करोड़ वनवासियों के जीवन – मरण का प्रश्न हैं.‘

किन्तु ईसाई मिशनरियों का एक प्रभावी अभियान पर्दे के पीछे से चल रहा था. इस विधेयक के कारण देश – विदेश के ईसाई मिशनरियों में भारी खलबली मची थी.

१६ नवंबर, १९७० को इस विधेयक पर लोकसभा में बहस प्रारंभ हुई. इसी दिन नागालैंड और मेघालय के ईसाई मुख्यमंत्री, दबाव बनाने के लिए दिल्ली पहुंचे. मंत्रिमंडल में २ ईसाई राज्यमंत्री थे. उन्होने भी दबाव की रणनीति बनाई. इसी के चलते १७ नवंबर को सरकार ने एक संशोधन प्रस्तुत किया की ‘संयुक्त समिति की सिफ़ारिशे, विधेयक से हटा ली जाय.‘

२४ नवंबर १९७० को मंगलवार था. और इसी दिन कार्तिक उरांव को इस विधेयक पर बहस करनी थी. इस दिन सुबह काँग्रेस ने एक व्हीप अपने सांसदों के नाम जारी किया, जिसमे इस विधेयक में शामिल संयुक्त समिति की सिफ़ारिशों का विरोध करने कहा गया था. कार्तिक उरांव, संसदीय संयुक्त समिति की सिफ़ारिशों पर ५५ मिनट बोले. वातावरण ऐसा बन गया, की काँग्रेस के सदस्य भी व्हीप के विरोध में, संयुक्त समिति की सिफ़ारिशों के समर्थन में वोट देने की मानसिकता में आ गए.

अगर यह विधेयक पारित हो जाता, तो वह एक ऐतिहासिक घटना होती..!

स्थिति को भांपकर इंदिरा गांधी ने इस विधेयक पर बहस रुकवा दी और कहा की सत्र के अंतिम दिन, इसपर बहस होगी. किन्तु ऐसा होना न था. २७ दिसंबर को लोकसभा भंग हुई और काँग्रेस द्वारा वनवासियों के धर्मांतरण को मौन सम्मति मिल गई..!

कार्तिक उरांव हिंदुत्व के घनघोर समर्थक थे. यह विधेयक पारित नहीं होने पर, उन्होने एक पुस्तक लिखी – ‘बीस वर्ष की काली रात’. इस पुस्तक में उन्होने ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण का कच्चा चिठ्ठा खोल दिया हैं.

उन्होने पुस्तक में लिखा हैं –
“अनुसूचित जातियों – जनजातियों की परिभाषा सन १९३५ से ही आ रही हैं और उन्होने सदा से ही यह दावा किया की अनुसूचित जातियों – जनजातियों में हिन्दू धर्म मानने वाली जातियाँ ही रहेंगी. जो हिन्दू धर्म को छोड़ कर किसी अन्य धर्म को मानता हो, वह अनुसूचित जाति – जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा.“

“संविधान में कोई संशोधन विधेयक नहीं हैं, जिसके द्वारा भारतीय ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति में परिगणित किया हो. अतः ईसाईयों को अनुसूचित जनजाति में परिगणित कर उन्हे सारी सुविधाएं देना असंवैधानिक हैं.“

“अंग्रेज़ राज्य के १५० वर्षों में ईसाई मिशनरियों से इतना धर्म परिवर्तन नहीं हुआ, जितना आजादी मिलने पर गत २३ वर्षों में हुआ. १९४७ में मणिपुर में ७ प्रतिशत जनजाति ईसाई थे. लेकिन आज बढ़कर ७० प्रतिशत हुए हैं.“

“संविधान में तो ईसाई लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति की सूची में कोई स्थान नहीं हैं.“

कार्तिक उरांव, धर्मांतरण संबंधी इन सभी बातों को लेकर काफी मुखर रहते थे. वनवासी कल्याण आश्रम के बालासाहब देशपांडे जी से उनका जीवंत संपर्क था. और यही काँग्रेस को खटकता था. किन्तु झारखंड के उस वनवासी क्षेत्र में, कार्तिक उरांव से अच्छा, वनवासियों पर पकड़ बनाएं रखने वाला दूसरा नेता काँग्रेस के पास नहीं था.

कार्तिक उराव ने विभिन्न कार्यक्रमों में वनवासियों से कहा था कि ‘ईसा से हजारों वर्ष पहले आदिवासियों के समुदाय में निषादराज गुह, माता शबरी, कण्णप्पा आदि हो चुके हैं, इसलिए हम सदैव हिन्दू थे और हिन्दू रहेंगे.‘

आदिवासी यह हिन्दू ही हैं, यह तार्किक रूप से सिध्द करने के लिए उन्होने भारत के कोने कोने से वनवासियों के ‘पाहन’, गांव बूढ़ा’, टाना भगतों’ आदि धर्मध्वजधारियों को आमंत्रित किया और कहा, “आप अपने समुदायों में जन्म तथा विवाह जैसे अवसरों पर गाये जाने वाले मंगल गीत बताईयें”

फिर वहां सैकड़ों मंगल गीत गाये गये. और सबों में यही वर्णन मिला कि, “जसोदा मैया श्रीकृष्ण को पालना झूला रही हैं”, “सीता मैया राम जी को पुष्प वाटिका में निहार रही हैं”, “माता कौशल्या, रामजी को दूध पिला रही हैं”… आदि. यह ऐसा जबरदस्त प्रयोग था, जिसकी काट किसी के पास नहीं थी.

जीवन के अंतिम वर्षों में कार्तिक उरांव ने साफ कहा था, “हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, भगवान जगन्नाथ कि रथयात्रा, विजया दशमी, राम नवमी, रक्षाबंधन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली…. हम सब धूमधाम से मनाते हैं. ‘ओ राम… ओ राम…’ कहते कहते हम ‘उरांव’ नाम से जाने गए. हम हिन्दू पैदा हुए, और हिन्दू ही मरेंगे.“

बाबा कार्तिक उरांव यह हमारे देश के वनवासियों के प्रातिनिधिक चेहरा थे, वनवासियों कि बुलंद आवाज थे. काँग्रेस भले ही उन्हे भूल गई हो, किन्तु इस देश के वनवासियों के और तमाम राष्ट्रभक्त नागरिकों के हृदय में, बाबा कार्तिक उरांव के प्रति असीम आदर और श्रध्दा हैं..!

– प्रशांत पोळ

Tags: Baba Kartik OraonVANVASI KALYAN ASHRAM
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