नंदुरबार में संपन्न जनजाति चेतना परिषद में लक्ष्मण सिंह मरकाम का आवाहन
नंदुरबार ( तेजसमाचार प्रतिनिधि ) – आदिवासी यह हमेशा से हिंदू ही हैं, उनकी प्रथा, रीति रिवाज, कुलदेवता आदि परंपराएं अनादि काल से हैं . किंतु विदेशी एवं देश के कुछ कम्युनिस्ट तत्वों द्वारा आदिवासियों का विभाजन कर देश के टुकड़े करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. इसके लिए रावण हमारे पूर्वज थे ,महिषासुर भी हमारा पूर्वज था, इस प्रकार के तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं. यह सारी बातें भारतीय आम जनजाति समाज में फूट डालने, आपस में कलह निर्माण करने व भ्रम निर्माण करने के लिए किया जा रहा है. इस प्रकार के षड्यंत्रों को हमें नष्ट करना चाहिए . यह उदगार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संलग्न देवगिरी प्रांत वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से नंदुरबार में संपन्न हुई जनजाति चेतना परिषद में भारतीय नौसेना में आयुधसेवा में कार्यरत विशाखापट्टनम के लक्ष्मण सिंह मरकाम ने प्रस्तुत किए.छत्रपति शिवाजी महाराज नाट्यमंदिर में रविवार को संपन्न हुई एकदिवसीय जनजाति चेतना परिषद में जनजाति बहुल जिले के रूप में पहचान रखने वाले नंदुरबार जिले के सभी तहसीलों में से लगभग डेढ़ हजार प्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई .
इस दौरान मंच पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय, नंदुरबार जिले की सांसद हिना गावित, शहादा – तलोदा विधानसभा के विधायक उदेसिंग पाडवी , आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ प्रकाश ठाकरे, वनवासी कल्याण आश्रम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नागपुर की डॉ नीलिमा पट्टे, आश्रम के जनजाति सुरक्षा मंच के डॉ. राजकिशोर हासदा सहित डॉ. विशाल वलवी, प्रा. डी के वसावे, देवगिरी कल्याण समिति के उपाध्यक्ष डॉ पुष्पा गावित, देवगिरी कल्याण आश्रम के प्रांत अध्यक्ष चेतराम पवार, सहसचिव विरेंद्र वलवी, विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष जत्र्याबाबा पावरा, देवगिरी प्रांत सह-सचिव गणेश गावित आदि मौजूद थे .
कार्यक्रम की शुरुआत में “जन्म भूमि यह कर्म भूमि है”.. सामूहिक गीत से वातावरण निर्माण किया गया. जिसके उपरांत उपस्थित गणमान्य का स्वागत व प्रस्तावना प्रस्तुत की गई. 2 मार्च 1943 को रावलापाणी में हुए स्वतंत्रता संग्राम काल से संबंधित पुस्तिका का प्रकाशन भी उपस्थित गणमान्य के हाथों संपन्न हुआ. इससे पहले प्राध्यापिका डॉ. पुष्पाताई गावित ने स्वतंत्रता संग्राम के उपेक्षित गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि भील समाज में 1937 में शुरू किए गए समाज कार्य एवं स्वतंत्रता आंदोलनों में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए श्री गुलाम महाराज की प्रतिमा भी मंच पर होनी चाहिए. कार्यक्रम में आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ प्रकाश ठाकरे ने आयोजन को लेकर भूमिका प्रस्तुत की. जिसके उपरांत आयोजन समिति के सदस्यों का स्वागत भी किया गया. सुबह के सत्र का संचालन एवं गणमान्य का परिचय डॉ. विशाल वलवी ने किया. देवगिरी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता अशोक पाडवी ने मंच संचालन किया.
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मधुकर गावित, डॉ सुहास नटावदकर, सुहासिनी नटावदकर, योजक के डॉक्टर गजानन डांगे, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष नागेश पाडवी, , विश्व हिंदू परिषद के जिला महामंत्री विजय सोनवणे, प्रांत धर्म प्रसार प्रमुख धोंडीराम शिनगर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला कार्यवाह संजय पुराणिक, रतिलाल कोकणी, डॉ. भरत वलवी , वनवासी कल्याण आश्रम के प्रांत संगठन मंत्री गणेश गावित, आर. आर. नवले, गिरीश कुबेर आदि सहित संघ परिवार के अनेक पदाधिकारी व स्वयंसेवक मौजूद थे. इस आयोजन के लिए लगभग 3 सप्ताह तक 50 से अधिक कार्यकर्ताओं ने दिन-रात मेहनत की.
प्रमुख बिंदु-
छत्रपति शिवाजी महाराज नाट्यमंदिर में सुंदर नियोजित तरीके से सजावट करते हुए आकर्षण निर्माण किया गया था, जनजाति चेतना परिषद के लिए आकर्षक स्वागत कक्ष सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा था.
नाट्यमंदिर के प्रवेशद्वार के पास नंदुरबार जिले की तहसीलों के प्रतिनिधियों का पंजीकरण किया जा रहा था. प्रत्येक प्रतिनिधि को एक फोल्डर में जनजाति संस्कृति रक्षा मंच की भूमिका एवं आवाहन पर कागज सामग्री, जनजाति चेतना परिषद के गीत,’रावलापाणी’ स्वतंत्र संग्राम की पुस्तिका एवं तरुण भारत का नव चेतना विशेषांक दिया जा रहा था.
प्रवेश द्वार के निकट आदिवासी जनजीवन की विशेषताओं, बारीपाड़ा एवं कृषि विज्ञान केंद्र नंदुरबार स्थित उपक्रमों की जानकारी देने वाली चित्र प्रदर्शनी मौजूद थी. जिसे देखने वालों की भारी भीड़ मौजूद थी.
प्रदर्शनी के प्रारंभ में प्रभु रामचंद्र एवं शबरी माता की भेंट का रंगीन कटआउट भी मौजूद था. साथ में ही वीर एकलव्य की सुंदर रंगोली बनाई गई थी.शोभायात्रा से पहले उपस्थित गणमान्य के हाथों इस प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया .
आदिवासी पारंपरिक संस्कृति के नृत्य के प्रस्तुतीकरण के साथ शोभायात्रा निकाली गई.उपस्थित गणमान्यों के साथ दीनदयाल चौक तक एवं पुनः मूल स्थान तक वापस लौटने तक का शोभा यात्रा मार्ग तय किया गया था.
परिषद के नियोजित सभी कार्यक्रम अनुशासित तरीके से संपन्न हुए.गुणवत्ता एवं अध्ययन पूर्ण चिंतन के साथ सभी वक्ताओं ने श्रोताओं को जगह पर ही बांधे रखा. अपनी मिट्टी व संस्कृति के साथ ईमान रखने वालीकष्टालू, परिश्रमी, जनजाति देश का इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य कितना महत्वपूर्ण है, यह बिंदु वक्ताओं द्वारा स्पष्ट किए गए.
रावलापाणी स्वतन्त्रता संग्राम की पुस्तिका का प्रकाशन करने के उपरांत स्वतंत्रता काल में वीरगति को प्राप्त हुए वीरों के लिए सभागृह में सभी ने कुछ क्षण खड़े रहकर, शांत, मौन धारण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान भारत माता की जय के नारों के साथ सभागृह गूंज उठा. रावलापाणी स्वतन्त्रता संग्राम के प्रत्यक्ष गवाह स्वर्गीय माधव फत्तु नाईक के दामाद डॉ भरत वलवी, सम्पादन मंडल के जितेंद्र महाराज पाडवी को सम्मानित भी किया गया.
लक्ष्मण सिंह मरकाम ने पांचवी अनुसूची इस विषय पर देश के जनगणना कार्यों का आंकलन करते हुए जनजाति ही देश की मूल निवासी होने के दावे प्रस्तुत किए. अखंड भारत व इस भूमि के खनिज संपदा का संरक्षण करने वाले समाज के रूप में जनजाति समाज का गौरव भी किया. लक्ष्मण सिंह ने कहा कि सिकंदर को भारत में प्रवेश करने के लिए 14 महीने लगे, अन्य आक्रमणकारियों को भी जनजाति समाज के भाइयों ने ही रोके रखा . इन सबके उपरांत अकबर ने जनजाति के साथ समझौता कर लिया. जिसके कारण उसके राज्य का विस्तार होता रहा. आगे चलकर अंग्रेजों ने जनजाति के शौर्य, वीरता का भय देखते हुए धर्मांतर, खनिज संपदा की लूटपाट करने के लिए अनेक शैलियां निर्माण की,और प्रशासनिक कार्य व कानून में बदलाव किए . वर्ष 1793 से अंग्रेज स्थिर होते गए और देश गरीब होने लगा.
अपने अध्ययन पूर्ण भाषण में लक्ष्मण सिंह मरकाम ने पेसा कानून के बारे में भी जानकारी की. पेसा एवं पांचवीं सूची का प्रभाव नष्ट करने के लिए जनजातियों के बीच कलह निर्माण किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं. गौत्र पर आधारित समाज व्यवस्था होते हुए भी सभी जनजाति समुदाय में रावण महिषासुर को विशेष जनजाति का होने का दावा प्रस्तुत करते हुए झूठा प्रचार किया जा रहा है. भिल्लीस्थान, गोंडवन, झारखंड आदि स्वतंत्र राज्य की मांग करते हुए देश विघातक शक्तियों का षड्यंत्र स्थापित हो रहा है. इससे सावधान रहने की आवश्यकता को भी मरकाम ने बल दिया. उन्होंने कहा कि जनजाति भाई शिव एवं शक्ति के उपासक हैं. रावण का कहीं भी मंदिर नहीं है. इस नाम का कोई भी राजा नहीं है. आदिवासी है हिंदू ही है .इन सब से संबंधित उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि हम स्वतंत्र हैं. जनजाति के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक शिक्षण, स्वास्थ्य संबंधित विकासात्मक परियोजनाएं हैं. जिसके लिए सरकार अत्यधिक सुविधाएं दे रही है. इन सुविधाओं व योजनाओं के बारे में जानना चाहिए और इन सब बातों के लिए धर्म छोड़ने की आवश्यकता नहीं है. लक्ष्मण मरकाम ने जनजाति भाइयों को अपनी आस्था ,परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रखते हुए आगे बढ़ने की बात कहीं. उन्होंने कहा कि देश की अखंडता व एकता के लिए हम सभी सक्षम हैं. देश का 1 इंच भी भूभाग हम तोड़ने नहीं देंगे .इस संकल्प को पूरा करने के लिए ओजस्वी शैली में लक्ष्मण सिंह मरकाम ने अपने मुद्दे प्रस्तुत किए. लक्ष्मण सिंह मरकाम के अध्ययन पूर्ण बिन्दुओं के प्रस्तितिकरण से सभागृह तालियों के साथ गुंजायमान हो उठा.