– जर्मन कंपनी मांग रही थी 50 लाख, हमारे इंजीनियरों ने खर्च कराए सिर्फ डेढ़ लाख
कटनी (तेज समाचार डेस्क). ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कटनी (ओएफके) के इंजीनियरों ने एके-47 और इंसास राइफल की बुलेट के ग्लिडिंग मेटल कप यानी खोखा बनाने वाली मशीन को सुधारकर नया कीर्तिमान रच दिया है. इससे पहले तक ऐसी मशीनों की मरम्मत विदेशी कंपनियां ही करती आई हैं. इस बार भी जर्मनी की कंपनी से इस मशीन को सुधरवाने की तैयारी थी, लेकिन उसने 50 लाख रुपए की डिमांड रखी. इस पर ओएफके के इंजीनियरों ने खुद ही बीड़ा उठाया और एक साल से बंद पड़ी मशीन को कोरोना संकटकाल के तीन माह में महज डेढ़ लाख रुपए में सुधार दी. अब दोनों हथियारों के लिए डिमांड के मुताबिक पाट्र्स का उत्पादन किया जा रहा है.
– स्पेयर पार्ट्स भी हमारे इंजीनियरों ने ही बनाए
आत्मनिर्भरता की इस कहानी की खास बात यह है कि मशीन में लगने वाले पार्ट्स भी आयात नहीं किए गए. ओएफके के इंजीनियरों ने स्थानीय स्तर पर ही पुर्जे बनाए और मशीन चालू कर दी. उन्होंने मशीन की ड्राइव भी इलेक्ट्रॉनिक से बदलकर मैनुअल कर दी.
– एक साल से बंद पड़ी थी मशीन
ओएफके के महाप्रबंधक वीपी मुंघाटे ने बताया, मशीन एक साल से बंद पड़ी थी. स्थानीय इंजीनियरों द्वारा उसे ठीक किए जाने के बाद अब इंसास राइफल की बुलेट के लिए 5.56 ग्लिडिंग मेटल कप और एके-47 के लिए ए-7 ग्लिडिंग मेटल कप तैयार किया जा रहा है.
– इनकी रही महत्वपूर्ण भूमिका
आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में ओएफके के सीएस, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिक मैंटनेंस टीम की भूमिका रही. इसमें अपर महाप्रबंधक एन. इक्का, ज्वाईंट जीएम एसके यादव और अरुण कुमार, उमा दत्त गौतम, जेडब्ल्यूएम रेजीनॉल्ड जेकब, नीरज गोटिया, वीरेंद्र वर्मा, विनय शर्मा, विनोद रजक, मनोज कुमार, सुरेश, हर्ष नारायण, मनीष सेन, राम प्रसाद, सुभाष शर्मा, सत्य नारायण लोहार, अंशुल तिवारी और रजनीश शर्मा.
– मशीन में सुधार इसलिए था जरूरी
लगातार बदलते वैश्विक परिदृश्य के बाद एके-47 और इंसास राइफल के लिए बुलेट की डिमांड बढ़ी तो ओएफके को बुलेट के खोखे के बनाने के लिए उत्पादन लक्ष्य भी बढ़ गया. इस बीच मशीन खराब होने के बाद इंजीनियरों को लगा कि रक्षा उत्पाद लक्ष्य पूरा करना मुश्किल हो जाएगा और मशीन को सुधारने का काम शुरू किया. मशीन में कई पाट्र्स भी खराब मिले जिन्हे विदेशों से आयात करना था, लेकिन कोरोना संकट काल में इन पुर्जों का आयात मुश्किल था. तब इंजीनियरों ने ओएफके में ही पुर्जे बनाए, मशीन का बारीकी से अध्ययन किया और हर जरूरी पुर्जे स्थानीय स्तर पर ही तैयार मशीन को सुधार दिया.