नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). कोरोना वायरस को पूरी दुनिया में फैलानेवाले चीन को लेकर ट्रम्प का गुस्सा शांत होनेवाला नहीं है. इस बार उसने चीन के प्रति नरम रुख अख्तियार करनेवाले जर्मन को दो टुक चेतावनी दे दी है. अमेरिका ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि वह या तो चीन का साथ छोड़ दे या अमेरिका का.
– अमेरिका का चीन के प्रति कड़ा रुख
कोरोना के बाद से ही अमेरिका अपने सभी साथियों पर चीन के खिलाफ कडा रुख अपनाने का दबाव बना रहा है. अमेरिका ने पहले 5जी तकनीक क्षेत्र में चीन को दरकिनार करने के लिए UK और कनाडा जैसे देशों पर दबाव बनाया, इसके बाद अमेरिका ने जी7 को जी10 बनाकर चीन को घेरने का प्लान भी सामने रखा. हालांकि, यूरोपीय देशों और खासकर जर्मनी का रुख शुरू से ही चीन को लेकर काफी नर्म रहा है. जिस जी7 बैठक को राष्ट्रपति ट्रम्प ने रद्द किया, उसमें जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल ने शामिल होने से पहले ही इंकार कर दिया था. अब अमेरिका ने जर्मनी को बड़ा झटका देते हुए जर्मनी से अपने करीब 10 हज़ार सैनिक निकालने का फैसला लिया है. इस फैसले के जरिये अमेरिका ने जर्मनी को यह साफ संदेश दे दिया है कि या तो जर्मनी अमेरिका के साथ हो सकता है, या फिर चीन के साथ! जर्मनी की यह monkey balancing अब और नहीं चलने वाली है.
– जर्मनी में डटे है अमेरिकी सैनिक
बता दें कि यूरोपीय देश जर्मनी में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमेरिकी सैनिक डटे हुए हैं. जर्मनी में अभी लगभग 34,500 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. द वॉल स्ट्रीट जर्नल और द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, इस निर्णय के बाद जर्मनी में अमेरिकी सैनिकों की संख्या 25,000 तक रह जाएगी. जर्मनी की सुरक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को बड़ा अहम माना जाता है. ऐसे में अब जर्मनी को जल्द ही चीन और अमेरिका से किसी एक को चुनने का फैसला लेना होगा.चीन को लेकर शुरू ही जर्मनी का रवैया बड़ा ढीला-ढाला रहा है. जब कोरोना के बाद जी7 देशों की पहली बैठक हुई थी, तो उसमें अमेरिका संयुक्त बयान में Chinese virus शब्द शामिल करवाना चाहता था, लेकिन तब जर्मनी ने सबसे ज़्यादा बवाल बचाया था और उसका नतीजा यह निकला था कि जी7 तब कोई संयुक्त बयान जारी ही नहीं कर पाया था.
UK पर भी दबाव बना चुका है चीन
इससे पहले अमेरिका UK पर भी चीन के खिलाफ कडा रुख अपनाने का दबाव बना चुका है. कुछ ही दिन पहले अमेरिका ने UK को चीन का साथ छोड़ने को कहा था. आसान भाषा में अमेरिका ने यूके को अमेरिका और चीन में से कोई एक ट्रेड पार्टनर चुनने का विकल्प दे दिया था. उसके बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने नौकरशाहों को निर्देश दिया था कि चिकित्सा आपूर्ति और अन्य रणनीतिक आयातों के लिए चीन पर से ब्रिटेन की निर्भरता को समाप्त करने की योजना बनाई जाये. इस प्लान का नाम ‘प्रोजेक्ट डिफ़ेंड’ रखा गया था, जिसमें चीन से आयात होने वाली सभी गैर खाद्य वस्तुओं को हटाया जाएगा.इसके अलावा यूके अब हुवावे के खिलाफ 10 लोकतन्त्र देशों का समूह यानि D 10 संगठन बनाने का प्रस्ताव भी पेश कर चुका है. वहीं, अमेरिकी दबाव के बाद ही कनाडा ने भी अपने यहां से हुवावे को चलता कर दिया है.
– चीन के प्रति नरम रुख बर्दाश्त नहीं
अमेरिका अभी चीन को सबक सिखाने के लिए अपने साथियों पर किसी भी हद तक का दबाव बना सकता है. इसके साथ ही अमेरिका ने यह भी साफ कर दिया है कि वह ऐसे किसी भी “साथी” को बर्दाश्त नहीं करेगा जो चीन के प्रति नर्म रुख दिखाएगा. जर्मनी के खिलाफ अमेरिका का यह कदम इसलिए भी बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि जर्मनी NATO का एक बड़ा partner है. अमेरिका ने उन सभी देशों को कडा संदेश दे दिया है, जो अभी भी चीन को लेकर नर्म रुख दिखा रहे हैं.