साल 1975 . फिल्म थी ‘चुपके चुपके’ . इस फ़िल्म का एक सीन शूट किया जाना था जिसमें असरानी सेंट्रल कैरेक्टर थे. असरानी को सीन के दौरान सूट पहनने के लिए दिया गया जबकि धर्मेंद्र को एक ड्राइवर के कपड़े. अब ये माजरा किसी को समझ नहीं आया. धर्मेंद्र सोच में थे . जबकि फ़िल्म के निर्देशक सेट पर आराम से चेस खेलने में मग्न थे.
जब जिज्ञासा शांत ना हुई तो धर्मेंद्र ने असरानी से पूछ ही लिया, ‘क्यों, मैं तुम्हारा ड्राइवर बना हूं क्या ? क्या चल रहा है ? तुम्हें सूट और मुझे ड्राइवर के कपड़े क्यों ?’
असरानी ने कहा कि “पता नहीं.”
निर्देशक जो दोनों की बातें सुन रहे थे और उन्हें ऐसे बतलाते देख उस निर्देशक ने धर्मेंद्र को जोर से आवाज लगाई और कहा, ‘ऐ धरम, असरानी से क्या पूछ रहे हो ? सीन के बारे में मुझसे पूछो ? अगर कहानी की इतनी ही समझ होती तो तुम आज हीरो होते क्या ?’
इतना सुनते ही गरम ‘धरम’ बिल्कुल चुप हो गए.
तब तक इस फ़िल्म के दूसरे कलाकार और सुपर स्टार अमिताभ बच्चन भी सेट पर आ गये. उनको धर्मेंद्र के साथ हुए इस वाकये के बारे में जानकारी नहीं थी और उन्होंने भी अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए असरानी से सूट वाला माजरा पूछ ही लिया और कहा, ‘तुम आज सूट में कैसे ? किसका ऑफिस है ये सेट पर ?’
लेकिन इस बार निर्देशक इतना जोर से चिल्लाए कि अमिताभ के होश उड़ गए. अमिताभ बच्चन को डांटते हुए उन्होंनेे कहा, ‘ ऐ अमित तुम क्या पूछ रहे हो सीन या कहानी ? ऐ धरम बताओ अमित को जो मैंने तुमसे कहा. तुम लोगों को अगर इतनी ही समझ होती तो आज तुम लोग फिल्म में हीरो नहीं होते, डायरेक्टर होते. समझे . चलो अब काम पर.’
निर्देशक की ऐसी बात सुनकर अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र अपना-सा मुंह लेकर चले गए लेकिन यह इस निर्देशक की मेहनत का ही नतीजा था कि ये फिल्म ‘चुपके चुपके’ बाद में क्लासिक हिट बनी.
जानते है वो निर्देशक कौन था जिनकी डांट से अमिताभ और धर्मेन्द्र जैसे सुपरस्टार भी कांपते थे . वो थे महान निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी उर्फ हृषी दा.
बॉलीवुड में ऋषिकेष मुखर्जी को ऐसे स्टार मेकर यानी निर्देशक के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, अमोल पालेकर, जया भादुड़ी जैसे सितारों को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित किया.
विविधता के लिहाज से सत्तर के दशक ने हृषीकेश मुखर्जी को ऊंचा मुकाम दिया. हृषीदा की सबसे बेहतरीन फ़िल्में इसी दरम्यान रिलीज हुईं थी. कहा जा सकता है कि वह एक बेहतरीन दौर था जिसमे जिसमें हृषी दा की आनंद, बुढ्ढा मिल गया ,गुड्डी , बावर्ची, अभिमान,मिली जैसी फिल्में रिलीज हुई .
जिसे आज इंडिपेंडेंट सिनेमा कहा जाता है. जिसे आर्टहाउस सिनेमा कहा जाता है. जिन फिल्मों को ऑस्कर में जीत मिलती है. उनमें जो खास बातें हैं वो सब ऋषिदा की फिल्मों में थीं. जैसे उन फिल्मों की स्क्रिप्ट को देख सकते हैं. वे कहां से शुरू होकर, किस रास्ते से होते हुए कहां खत्म होतीं . इसमें तब प्रचलित स्क्रिप्टराइटिंग के ढर्रों को वे फॉलो नहीं करते थे. उनकी फिल्मों में गूढ़ कला नहीं रखी जाती थी. उनकी फिल्मों में हीरो-हीरोइन के पीछे सैकड़ों लोग नाचते नहीं थे, फिर भी उनके गाने हमें आज भी याद है. उनकी फिल्मों में वही होता था जो असल जीवन में हो सकता है लेकिन फिर भी वे सपनीली थीं.
हिंदी फिल्मों के क्षेत्र के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्यविभूषण से भी सम्मानित किया गया.