मैं एकदम अलग ही दुनिया में था, मानो मैं एक तेज़ दौड़ती रेलगाड़ी में सवार था, मेरे सपने थे, गोल्स थे, योज़नाएं थी और मैं पूरी तरह से उनके साथ मसरूफ था। लेकिन अचानक ही किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक टीसी खड़ा था। टीसी ने मुझसे कहा – आपकी मंजिल आने वाली है। अब आप उतर जाइए। लेकिन मैं उतरना नहीं चाहता था, मुझे पता है मेरी मंजिल नहीं आई है। लेकिन वहां से आवाज़ आती है – ‘नहीं बस इतना ही। यही आपकी मंजिल है।’ तब आपको एहसास होता है कि शायद ज़िंदगी में यूं ही पलक झपकते ही कुछ भी हो सकता है। आप समुद्र में उस छोटे से कॉर्क की तरह फील करते हो, जो नदी के बहाव को बदलना चाहता है, लेकिन वो कुछ नहीं कर पाता।