• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

आजम खान – रमा देवी और बिहार का लोमहर्षक हत्याकांड

Tez Samachar by Tez Samachar
July 28, 2019
in Featured, विविधा
0
आजम खान – रमा देवी और बिहार का लोमहर्षक हत्याकांड

80 के दशक का उत्तरार्द्ध । उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में दो बडे कैंपस थे, जहां से अपराध का रास्ता खुलता था। एक था लंगट सिंह और बिहार यूनिवर्सिटी का संयुक्त कैंपस, दूसरा था शहर के दूसरे छोर पर स्थापित एमआईटी यानि मुजफ्फरपुर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी का कैंपस।

इस शहर के डॉन बृजबिहारी प्रसाद इसी एमआईटी की पैदाइश थे। इस कैंपस ने उन्हें इतना सशक्त कर दिया था कि नब्बे के दशक में वो उत्तर बिहार के सबसे बाहूबली नेता बन चुके थे। पिछड़ों और दलितों की राजनीति करने वाले बृजबिहारी प्रसाद ने अपनी छवि रॉबिनहुड की बना रखी थी। और उस पर तुरुप का इक्का यह कि बृजबिहारी प्रसाद बनिया/ वैश्य समाज से आते थे ।

ये अत्यंत आश्चर्य का विषय था कि बनिया समाज का आदमी पूरे उत्तर बिहार का सबसे बड़ा डॉन और दलितों का मसीहा था। उस दौर में हाजीपुर से लेकर चंपारण तक राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को मजबूती देने में बृजबिहारी ने अहम भूमिका निभाई थी। लालू यादव से उनकी नजदीकियां इतनी अधिक थी कि बृजबिहारी प्रसाद उनके घर के सदस्य जैसे थे।

कहते हैं लालू यादव की सरकार में बृजबिहारी प्रसाद की तूती बोलती थी। 90 के दशक में पूरा देश नई उद्योग और विज्ञान क्रांति के दौर से गुजर रहा था। ऐसे में सबसे अधिक विकास की संभावनाएं इसी क्षेत्र में थी। ऐसे में बृजबिहारी प्रसाद को बिहार के विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। यह विभाग उस वक्त सबसे अधिक कमाऊ विभाग के रूप में जाना जाता था। बृजबिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के स्टूडेंट थे, इसलिए उनके लिए भी यह विभाग काफी फलदायी सिद्ध हुआ। बिहार में भले ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तरक्की नहीं हुई, लेकिन इस विभाग के नेता सहित तमाम अफसरों, इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्यों और कर्ता धर्ताओं ने खूब तरक्की की।

इसी बीच वर्ष 1996 में बिहार में इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में बड़ा घोटाला हुआ। मीडिया द्वारा इस घोटाले की खबर ने पूरी बिहार की सत्ता को हिला कर रख दिया था। एक पूरे नेक्सस ने बिहार कंबाइंड इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा का पूरा सिस्टम ही हैक कर लिया था। इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी बृजबिहारी प्रसाद के सबसे खास रहे आरसी विकल ले। बहुत कम लोगों को पता होगा कि बृजबिहारी प्रसाद दरअसल डॉ. बृजबिहारी प्रसाद थे। प्रसाद ने आरसी विकल के गाइडेंस में ही पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थी। बृजबिहारी प्रसाद की कृपा से ही आरसी विकल बिहार कंबाइंड इंजीनियरिंग परीक्षा के को-कनेवनर बनाए गए थे। सीबीआई की रिपोर्ट कहती है कि को-कनेवर का उस वक्त कोई पोस्ट ही नहीं था, लेकिन बृजबिहारी प्रसाद की हनक ने सभी नियमों को ताक पर रख दिया था।

जो लोग इस वक्त 30 से 40 उम्र के या उससे अधिक होंगे उन्हें पता होगा कि उस दौर में कैसे यह बात आम थी कि 50 हजार से एक लाख या दो लाख में इंजीनियर बना दिए जाते थे। प्रवेश परीक्षा में ही खेल कर दिया जाता था। बेहद शतिराना अंदाज में आरसी विकल ने प्रवेश परीक्षा में एक ऐसे सिस्टम को डेवलप कर दिया था कि जिसे नाम दिया गया था पैसा फेंको तमाशा देखो। सीबीआई जांच के दौरान 1996 की प्रवेश परीक्षा में करीब 246 बच्चे आइडेंडिफाई किए गए थे जिन्होंने इसी नेक्सस के जरिए परीक्षा दी और विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया। अंदाजा लगाइए इससे पहले कितने बच्चे पास भी कर चुके होंगे।

जब इस नेक्सस का खुलासा हुआ तो बिहार सरकार हिल गई। लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक प्रेशर में सीबीआई जांच की अनुशंसा करनी पड़ गई। इस स्कैम के बाद लालू यादव और बृजबिहारी प्रसाद में तल्खी काफी बढ़ गई थी। अंदर के सूत्र बताते हैं कि लालू यादव और उनकी टीम को यह बात नागवार गुजरी कि अकेले-अकेले बृजबिहारी प्रसाद पूरे बिहार के साइंस और प्रौद्योगिकी का “इतना उत्थान”कैसे कर गए !

खैर लालू यादव द्वारा सीबीआई जांच की अनुशंसा करते ही बृजबिहारी प्रसाद और लालू यादव का मनमुटाव खुलकर सामने आ गया। मीडिया में बृजबिहारी प्रसाद ने कुछ ऐसा बयान दे डाला जिसमें इस बात का जिक्र था कि सिर्फ प्रसाद ही इस स्कैम में शामिल नहीं, बल्कि कई बड़े नाम भी हैं। सीबीआई जांच शुरू हुई तो बृजबिहारी प्रसाद को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा गया। वो न्यायीक हिरासत में भेज दिए गए।

न्यायिक हिरासत में उनके साथ वही हुआ जो आज तक सभी नेताओं को होता आया है। बृजबिहारी प्रसाद की सेहत खराब हो गई। सीने में जलन हो गई। दर्द होने लगा। और उन्हें पूरे तामझाम के साथ मुजफ्फरपुर से दूर पटना के सबसे प्राइम लोकेशन में स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) में भर्ती करा दिया गया।

उधर बिहार और यूपी के सबसे खतरनाक अपराधियों वाले गैंग्स ने एक ग्रुप बना लिया। इस ग्रुप ने अपने करीबियों विशेष तौर से छोटन शुक्ला की हत्या का बदला लेने की संयुक्त रूप से कसम खाई। इस गैंग ने यह भी तय किया कि बदला भी ऐसा लेना है कि पूरा बिहार देखे। ऐसे में बृजबिहारी प्रसाद को आईजीआईएमएस में ही मौत के घाट उतारने की व्यूह रचना की गई।

आईजीआईएमएस के जिस वॉर्ड के जिस कमरे में बृजबिहारी को रखा गया था उसकी बनावट कुछ ऐसी थी कि वहां एक साथ धावा बोलना असान नहीं था, क्योंकि वहां तक पहुंचने में काफी समय लगता। दूसरा, बृजबिहारी प्रसाद की सुरक्षा के लिए वहां बिहार पुलिस के कमांडो भी तैनात थे। बृजबिहारी प्रसाद के अपने लोग भी उसके आसपास ही रहते थे। बताते हैं कि ऐसे में तैयार किया गया शंकर शंभू को। भुटकुन शुक्ला की हत्या के बाद अंदरखाने शंभू बृजबिहारी का खास बना हुआ था। उस वक्त बृजबिहारी प्रसाद ने आईजीआईएमएस को ही अपना वर्किंग प्लेस बना लिया था। वहीं से वह अपनी सत्ता चला रहा था। शंभू को टास्क मिला था पूरी रेकी करने का। साथ ही तय समय पर किसी तरह बृजबिहारी प्रसाद को हॉस्पिटल के प्रांगण या पार्किंग एरिया तक लाने का। वहां उपयोग किया गया मोबाइल। उस वक्त मोबाइल यूज करना शान की बात मानी जाती थी। चुनिंदा लोगों के पास ही मोबाइल हुआ करता था। वॉर्ड के अंदर मोबाइल का टावर ठीक से नहीं मिलता था, इसलिए तय हुआ कि किसी जरूरी काम से मोबाइल बृजबिहारी प्रसाद तक पहुंचाया जाएगा, फिर बात करने के बहाने उन्हें नीचे लॉन में ले आया जाएगा।

सबकुछ प्लान के साथ ही हुआ। दिन तय हुआ 13 जून 1998। वक्त तय हुआ शाम के आठ बजे का। जगह तय हुई हॉस्पिटल का खुला कैंपस। जून के महीने में वैसे भी शाम को लोग टहलने निकलते हैं। जून के महीने में आठ बजे का समय न तो बहुत उजाला होता है और न बहुत अधिक अंधेरा। ऐसे में किसी की पहचान भी आसान है और निकल भागना भी आसान। तय समय के अनुसार बृजबिहारी प्रसाद अपने तीन-चार बॉडिगार्ड और उनसे मिलने आए क्षेत्र के लोगों के साथ मोबाइल पर बात करते हुए नीचे आए। ठीक 8 बजकर 15 मिनटर पर एक सूमो गाड़ी जिसका नंबर था बीआर 1पी-1818 , बेली रोड की तरफ से हॉस्पिटल के साउथ गेट से अंदर आई। इसी गाड़ी के साथ उजले रंग की अंबेसडर गाड़ी भी थी। बृजबिहारी प्रसाद और उनके सहयोगी और बॉडिगार्ड जहां खड़े थे वहां से ठीक बीस कदम पीछे दोनों गाड़ी रुकी। इससे पहले मैदान में बैठे कुछ लोग भी गाड़ी के अंदर प्रवेश करते ही हरकत में आ गए थे। वो पीछे की तरफ से आगे बढ़े, जबकि गाड़ी सामने की तरफ से आ रही थी। गाड़ी रुकते ही सबसे पहले बृजबिहारी प्रसाद की पहचान की गई। पहचान होते ही ताबड़तोड़ फायरिंग की आवाज से पूरा हॉस्पिटल कैंपस गूंज गया। जब तब बृजबिहारी प्रसाद और उनके बॉडिगॉर्ड हरकत में आते तब तक गोलियों की बौछार के बीच चारों तरफ खून ही खून पसर गया गया था। अपराधियों ने पिस्तौल, कार्बाइन और एके-47 की बौछार से बृजबिहारी प्रसाद का अंत कर दिया था। इस गोलीबारी में बृजबिहारी प्रसाद के बॉडिगार्ड लक्ष्मेश्वर शाह को भी गोली लगी। शाह भी मौके पर ही मारे गए। प्रसाद के साथ वहां खड़े एक दो और लोगों को गोली लगी। बृजबिहारी की हत्या के बाद अपराधियों ने हवा में गोलियां बरसाई और उसी सूमो और अबेंसडर गाड़ी से निकल गए। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि उस समय हमलावरों ने हत्या के बाद जय बजरंगबली का जयघोष भी किया था।

इधर बृजबिहारी की हत्या हुई उधर पूरे बिहार में कोहराम मच गया। पूरा हॉस्पिटल परिसर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया। पटना से लेकर पूरे तिरहुत क्षेत्र में अलर्ट जारी कर दिया गया। बृजबिहारी प्रसाद की हत्या का मैसेज फ्लैश होते ही मुजफ्फरपुर में आनन फानन में पुलिस की अतिरिक्त टुकड़ी को तैनात कर दिया गया।

उस वक्त मोबाइल, सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स का जमाना नहीं था। लेकिन रेडियो से शाम के नौ बजे के समाचार प्रसारण के बाद पूरा मुजफ्फरपुर गोलियों के धमाकों से गूंजने लगा। माड़ीपुर से लेकर बैरिया तक सन्नाटा पसर गया था, लेकिन नया टोला से लेकर कलमबाग चौक, कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर खबड़ा तक में गोलियों की तड़तड़ाहट ने खौफ पैदा कर दिया था। रह-रह कर हर्ष फायरिंग हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे दीपावली का जश्न मनाया जा रहा है। आम आदमी घरों में कैद हो गया था। पुलिस लगातार लाउडस्पीकर से शांति बनाने की अपील कर रही थी, पर उसी दोगुने रफ्तार से हवा में गोलियां दागी जा रही थी। अजब दहशत, खामोशी और भय का माहौल था। पूरे दो से तीन दिन तक रह-रह कर फायरिंग की आवाज आती रही। स्कूल कॉलेज बंद करवा दिए गए थे। हर तरफ पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी। मुजफ्फरपुर के मार्केट भी स्वत: बंद थे। अनजाने भय से हर कोई आशंकित था।मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड का अब तक सबसे खौफनाक हत्याकांड हुआ था। वह भी बिहार की राजधानी पटना में।

उधर, पटना में 13 जून 1998 को पुलिस का शायद ही ऐसा कोई अधिकारी हो जो हॉस्पिटल में मौजूद न हो। शाम 8.15 में यह हत्या हुई और पटना पुलिस की पहली टीम को घटनास्थल पर पहुंचने में 45 मिनट का वक्त लग गया। इस बीच पूरे हॉस्पिटल कैंपस में अफरातफरी मच चुकी थी। हर कोई बदहवास इधर-उधर भाग रहा था। कई मरीजोें के परिजन उन्हें लेकर भाग गए थे। चप्पल से लेकर जूते तक हर तरफ कैंपस में बिखरे पड़े थे। रात नौ बजे घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वालों में थे शास्त्री नगर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर एसएसपी यादव। रात करीब 12 बजे इस हत्याकांड की पहली एफआईआर गर्दनीबाग पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई। एफआईआर नंबर था 336/98। आईपीसी की धार 302/307/34/120बी और 379 के तहत मामला दर्ज हुआ। पहली एफआईआर सहित बाद की जांच में दर्ज नाम में सबसे बड़ा नाम था बाहूबली सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी, राजन तिवारी, भूपेंद्र नाथ दूबे, सुनील सिंह सहित अनुज प्रताप सिंह, सुधीर त्रिपाठी, सतीश पांडे, ललन सिंह, नागा, मुकेश सिंह, कैप्टन सुनील उर्फ सुनील टाइगर का।

भारत सरकार के डिपार्टमेंट आॅफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने सात अप्रैल 1999 को स्पेशल पॉवर के साथ सीबीआई को मामला जांच के लिए सौंप दिया। कई आरोपी गिरफ्तार हुए। जेल भेज गए। कई जमानत पर रिहा हुए। सीबीआई ने लंबी जांच की। चार्जशीट दायर हुआ। पटना की निचली अदालत ने 12 अगस्त 2009 में दो पूर्व विधायकों राजन तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, पूर्व सांसद सूरजभान सिंह सहित 8 अभियुक्तों को इस मामले में दोषी पाया था। इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई। सभी ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। बाद में लंबी बहस के सबूतों के आभाव में पटना हाईकोर्ट ने बृजबिहारी हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को 25 जुलाई 2014 को बरी कर दिया।

इधर बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के साथ तिरहुत और मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड में शांति छा गई। बृजबिहारी की हत्या का सबसे अहम किरदार डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला बृजबिहारी हत्याकांड के तीन महीने के अंदर उत्तरप्रदेश एसटीएफ के इनकाउंटर में ढेर कर दिया गया।

गाजियाबाद के निकट हुए इस इनकाउंटर ने बिहार और उत्तरप्रदेश में खौफ का बड़ा नाम बन चुके 26 साल के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का अंत कर दिया। अरशद वारसी द्वारा अभिनित फिल्म ‘सहर’ कमोबेश श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन पर ही है। मुन्ना शुक्ला का अंडरवर्ल्ड में नाम उनके भाईयों के साथ अनायस ही जुड़ा। वो अपने राजनीतिक जीवन में लग गए। अंडरवर्ल्ड से जुड़े किसी बड़ी घटना में उनका नाम बाद में कहीं नहीं आया। मिनी नरेश, चंदेश्वर सिंह, हेमंत शाही, अशोक सम्राट, छोटन शुक्ला, भुटकुन शुक्ला और बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के साथ ही मुजफ्फरपुर संगठित अपराधों से दूर होता गया।

इधर गुरुवार को सुनने में आया की समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान की लोकसभा स्पीकर की चेयर संभाल रहीं महिला सांसद पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी है। यह महिला सांसद है रमा देवी। जी सही पहचाना यह वही रमा देवी है। बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी ।लगता है इस केस में आजम बहुत लंबा नपेंगे ।

सादर/साभार

सुधांशु

शैक्षणिक परिशिष्ट
Tags: #आजमखान#रमादेवीअपराधबिहारलोकसभा
Previous Post

चक्रव्यूह – किसान की बेटियां – आशा भी, निराशा भी !

Next Post

शिंदखेड़ा के सागर का ISRO में चयन

Next Post
rcpit isro

शिंदखेड़ा के सागर का ISRO में चयन

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.