नई दिल्ली ( संजीव चड्ढा तेज़ समाचार के लिए ) – राजधानी के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मात्र छह माह की आयु का नवजात अपनी जिंदगी से जूझ रहा है. यथार्थ दत्ता नाम के इस नवजात शिशु में एक ऐसा सिंड्रोम पाया गया है जिसके विश्व भर में 1000 से 1200 मामले ही अब तक सामने आये हैं.
इस बिमारी में पीड़ित खुद सांस लेने में समर्थ नहीं होता और मरीज़ के गहरी नींद में पहुँचते ही उसकी जान चली जाती है. यह ऐसा सिंड्रोम है जो नवजात में जन्म से ही होता है. इस बिमारी को कंजेनिटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (Congenital Central Hyperventilation Syndrome अथवा CCHS) कहते हैं. यह सांस से जुड़ा एक दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर है.
मंगलवार को राजधानी नईदिल्ली से प्रकशित इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर ने लोगों में कंजेनिटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम एवं इससे जूझ रहे छह वर्ष के नवजात यथार्थ दत्ता के बारे उत्सुकता निर्माण कर दी. दिन भर सोशल मीडिया पर इस खबर पर चर्चा जारी रही.
यथार्थ के इस सिंड्रोम के बारे में तब पता चला जब वह मात्र 16 दिन का था. यथार्थ 25 जुलाई 2018 को सेंट स्टीफन हॉस्पिटल में प्रीमैच्योर पैदा हुआ था. पांच महीने बाद ये लोग सर गंगाराम हॉस्पिटल में शिफ्ट हो गए.
डॉक्टर्स के अनुसार यथार्थ के प्रीमैच्योर जन्म के कारण उसका एक लंग कमजोर है जो कि उसकी बढ़ती उम्र के साथ ही विकसित होगा. लेकिन यथार्थ के जन्म के बाद से ही उसके मुंह में हवा डालनी पड़ रही है.
यथार्थ की मां 29 वर्षीय मीनाक्षी दत्ता का कहना है कि जब 6 महीने का यथार्थ दत्त प्रीमैच्योपर पैदा हुआ तो डॉक्टर्स ने सलाह दी थी कि उसे अधिक से अधिक सोने दो, इससे उसकी सेहत अच्छी होगी. लेकिन लगातार आ रही तकलीफों के बाद डॉक्टर्स ने जांच करने के बाद कहा कि यदि यथार्थ गहरी नींद में चला गया जो उसकी जान जा सकती है.
सर गंगाराम हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट,आपातकालीन बाल चिकित्सा, क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी और एलर्जी विकार के डाक्टरों ने बताया कि पिछले दो दशक में यह तीसरा मामला देखने को मिला है.
सर गंगाराम हॉस्पिटल के शिशु रोग विभाग और क्रिटिकल केयर विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब यथार्थ 4 माह का था तो उसको एपनिया हुआ था. श्वसन इंफेक्शन के कारण उसे एक बैग और मास्क की जरूरत थी ताकि उसे फिर से ठीक किया जा सके. यथार्थ को कार्डिएक अरेस्ट भी हुआ था जिसमें उसे सीपीआर की जरूरत थी. इसके बाद यथार्थ का कंजेनिटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम और जेनेटिक टेस्ट भी किया गया जो कि पॉजिटिव पाया गया.
इस सिंड्रोम के कारण यथार्थ के लिए डॉक्टर्स ने रात में आर्टिफिशियल वेंटिलेशन और एक डायाफ्राम-पेसिंग सिस्टम के सर्जिकल इंप्लांसटेशन की सलाह दी, जो श्वसन पंप के रूप में बच्चे के खुद के डायाफ्राम का उपयोग करके सांस लेने में मदद करता है. डॉक्टर्स ने ये भी सुझाव दिया कि बाद में एरोबिक एक्सरसाइज के अलावा यथार्थ को आर्टिफिशियल वेंटिलेशन और एक डायाफ्राम-पेसिंग सिस्टम कीजीवन भर जरूरत पड़ सकती है. डाक्टरों ने जिस सर्जिकल इंप्लांसटेशनसर्जरी की सलाह दी उस पर लगभग 38 लाख रूपए तक खर्च आ सकता करवाने में असमर्थ हैं. फिलहाल दिल्ली ईस्ट कैलाश के करावल नगर में रहने वाले यथार्थ दत्ता के 31 वर्षीय पिता प्रवीन दत्त व मां 29 वर्षीय मीनाक्षी दत्ता इस खर्च को सहन करने में असमर्थ हैं. प्रवीण दत्ता एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट का काम करते हैं.
प्रवीण दत्ता ने बताया कि मेरा बच्चा दुनिया में आया मेरी जिंदगी बदल गई. उसके अब तक के इलाज़ के लिए वह पहले ही अपने दोस्तों और सहयागियों से 6 लाख रूपए उधार ले चुके हैं. ऐसे में मेरा बेटा जिंदगी भर वेंटिलेशन पर कैसे रह सकता है. जब डॉक्टर्स ने यथार्थ के परिवार को इंप्लांट की लागत के बारे में और ये भी बताया कि ये सर्जरी अमेरिका में होगी तो उसके पिता ने सारी उम्मीद खो दी लेकिन मां मीनाक्षी को अभी भी उम्मीद है.
प्रवीण दत्ता का परिवार हर समय यथार्थ की निगरानी करता है और देखता रहता है कि वो गहरी नींद में तो नहीं. वे ये भी देखते हैं कहीं उसकी स्किन या लिप्स पर कोई ब्लू निशान तो नहीं है. यह संकेत शरीर में ऑक्सीजन कम होने के होते है.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस उम्र में माँ-बाप, परिवार नवजात को अधिक सोने के लिए प्रयासरत रहते हैं वहीँ यथार्थ के माता-पिता और दादा-दादी बस इसी किसी कोशिश में लगे रहते हैं कि यथार्थ किसी तरह गहरी नींद में ना सोने पाए.