साल था 1975 ।मराठी फिल्म “पांडू हवलदार” प्रदर्शित हुई। दादा कोंडके नामक एक कलाकार ने इसी नाम के पात्र का रोल किया था । यह फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई । इसकी लोकप्रियता इतनी थी कि बाद में महाराष्ट्र में हवलदारों को ‘पांडू’ नाम से संबोधित किया जाने लगा। फिर यह पूरे देश मे चर्चित हो गया । उस दौर में हर पुलिसवाले को “पांडू ” बुलाया जाने लगा। दादा कोंडके को लीजेंड माना जाने लगा ।
उनकी नौ फिल्में 25 से ज्यादा हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली। इसका गिनीज़ विश्व कीर्तिमानहै। मराठी सिनेमा में कॉमेडी को एक नई ऊंचाई (या निचाई) पर ले जाने वाले वे पितृपुरूष बन गए । उनकी कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने कहा था कि वे जीवन में कभी सफल नहीं होंगे। उन्हें गरीबी में ही जीवन यापन करना होगा। लेकिन वे फिल्मों में स्टार बने। करोड़पति हुए। एक गंदली चॉल से बॉम्बे के शिवाजी पार्क में शानदार पेंटहाउस तक पहुंच गए । शिव सेना की रैलियों में लाखों की भीड़ दादा कोंडके के नाम पर इकट्ठा होती थी । वे उस समय बाल ठाकरे के सबसे विश्वस्त आदमी माने जाते थे लेकिन ठाकरे ने सदा उनका इस्तेमाल किया ।
हिंदी फिल्मों में लक्ष्मीकांत बेर्डे से लेकर सुपर सितारे गोविंदा तक ने उनकी स्टाइल की नकल की है। सन 1986 में आई हिंदी फिल्म “अंधेरी रात में , दीया तेरे हाथ में ” निम्न मध्यम वर्ग के लोगों में सुपर हिट साबित हुई । यह कहानी थी गुल्लू नाम के भोले मराठी ग्रामीण आदमी की जो धारियों वाला कच्छा पहनता है। बाहर नाड़ा लटकता रहता है। एक बंजारन है जो दर्शकों की सेक्सुअल फैंटेसी को गुदगुदाती है। फिर बाकी कमी अलग-अलग स्थितियां और संवाद पूरी कर देते हैं। हीरोइन का ये रोल ऊषा चव्हाण ने किया था जो कोंडके की ज्यादातर फिल्मों में हीरोइन होती थीं। इस फ़िल्म के चरित्र बाद कि कई हिंदी फिल्मों में उठाये गए। कोंडके विवादास्पद रहे । लेकिन वे उन चुनिंदा कलाकरों में रहे जिनका अपना विशेष दर्शक वर्ग रहा ।
आज दादा कोंडके साहब का जन्मदिन है । हैप्पी बड्डे ।