आगरा में रहने वाले कबीर कोहली एक मोटिवेशनल स्पीकर व ब्लोगर हैं. वह शौकिया तौर पर सामजिक विषयों पर लेखन करते हुए अपनी लेखनी से अनछुए बिन्दुओं को समाज के सामने लाने का प्रयास भी करते हैं. कबीर एक उम्दा गायक के साथ – साथ माउथऑर्गन बजाने का हुनर भी रखते हैं. तेज समाचार के पाठकों के लिए उनका लेखन.
वाह रे ‘मक्खन’, कहाँ से चले थे और कहां पहुंच गए.ऐसा बदला जीवन, बदली सूरत तो सूरत, बदल गयी तेरी सीरत. बीत गए वो दिन जहां हर वर्ग में शक्ति का स्त्रोत माने जाते थे पर आजकल तो कमज़ोर वर्ग(सोच से) की ढाल एवं स्वाभिमानी सोच और दिलों में चुभन का एहसास हो तुम. कहाँ गए वो दिन जब तुम परांठो पर लगते थे , आज इंसानो पर लगाने के काम आते हो.
दिन वो भी थे जब लोग दिन – रात घिसाई ( जी तोड़ मेहनत) किया करते थे और गगनचुम्बी ऊंचाइयों का एहसास करते थे पर आजकल तो होल में पोल है और दुनिया गोल है और तुझे लगाकर जल्द से जल्द आगे भड़ने की होड़ है. तुझे(मक्खन)लगाने की कला है निराली जसके आ जाये सफलता उसी के कदमों में है आनी .
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बिन तेरे जीवन अब जीवन कितना नीरस सा लगता है, ना नौकरी में मज़ा ना गृहस्त में रस है. चारों ओर तेरी ही जयजयकार है, ऐसा तेरा स्वरूप और ऐसा सम्मान है .
वाह रे ‘मक्खन’ कहाँ से चले थे, और कहां पहुँच गये क्या यह तेरी पहचान है?
क्या मेरी हैसियत कि मैं तेरी तारीफ न करूँ, फिर सोचा तू है ही काबिले तारीफ , फ़िर क्यूं ना तेरी तारीफ करूँ.
जितना लगे उतना कम,
जिसके ना लगे उससे उतना गम,
तेरी लीला अपरम अपार,
बिन तेरे न इस पार, ना उस पार.
तुझे जो लगाए, उसकी दुनिया बदल जाये,
तू जिसके लग जाए, वो आसमान से तारे तोड़ लाये,
ऐसी तेरी चाल निराली,
जहां लगे वहां कर दे हरियाली.
तू बिगड़े काम बनाता है, जीवन से दुख घटाता है,
तुझे लगाना भी एक कला है,
जिसे ना आये वो आधा अधूरा है.
राजाओं को रंक बनते देखा,
मूर्खों को कीर्तिमान,
ऐसी तेरी शख़्सियत ऐसा तेरा प्रभाव,
जिसके लग जाये, उसके बदल जाए हाव- भाव.
वाह रे ‘मक्खन’ ऐसी तेरी हस्ती, ऐसा तेरा सम्मान.
– कबीर कोहली ” के.के.”