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चक्रव्यूह – मंदिर का निर्माण करें, जनता चाहे भूखी मरे!

Tez Samachar by Tez Samachar
November 4, 2018
in Featured, विविधा
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Mandir fund collection

File Image

 एक बार फिर देश में राम मंदिर निर्माण को लेकर बहस चल रही है. मोदी सरकार को उसके ‘रिमोट कंट्रोल’ यानि कि आरएसएस (संघ) ने अध्यादेश लाने का सुझाव दे दिया है. अन्यथा 1992 जैसा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है. मोदी सरकार ने वैसे भी कांग्रेस के लौहपुरुष की भव्य मूर्ति गुजरात में लगवा कर अपनी पार्टी के लौहपुरुष को कबाड़खाने में डाल रखा है. अब वह 2019 के आम चुनाव से पहले राम मंदिर पर राजनीति कर रही है. हम जगह-जगह पुतले (स्टैच्यू) और भगवानों की मूर्तियां लगवा कर श्रद्धा व आस्था के सहारे राजनीति का खेल तो खेल लेते हैं, मगर यह समझ से परे है कि इन मूर्तियों और मंदिरों से आम जनता को क्या मिलता है? क्या इससे देश का भला होता है?
          मुझे तो लगता है कि देवी-देवताओं के बड़े-बड़े मंदिर बनवाने से कई बड़े-बड़े लोगों की ‘दुकानें’ चलने लगती हैं. और आम जनता उसमें पिसी जाती है. देश में पचासों ऐसे भव्य मंदिर हैं, जहां रोजाना लाखों का दान आता है. वैष्णोदेवी, तिरुपति तिरुमला बालाजी, सिद्धिविनायक मुंबई, शिर्डी के साईंबाबा, जगन्नाथ पुरी और काशी विश्वनाथ जैसे छह मंदिरों में ही एक दिन में औसतन 10 करोड़ रुपयों का दान आता है. इन छह मंदिरों की सालाना कमाई ही 3287 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा है. यह पैसा दान के रूप में उक्त मंदिरों में आता है, जो मंदिरों के रखरखाव के अलावा भी कई तरीकों से खर्च होता है. अकेले तिरुपति बालाजी मंदिर की कुल संपत्ति 1.30 लाख करोड़ रुपए है, जो देश के सबसे बड़े अमीर मुकेश अंबानी की दौलत से भी बहुत ज्यादा है.
       दूसरी ओर हैदराबाद के चिरकुल बालाजी मंदिर में दान देना सख्त मना है. यहां हजारों श्रद्धालु रोज दर्शनार्थ आते हैं, मगर किसी से भी दान नहीं लिया जाता. यहां मंदिर का खर्च सामने बनी पार्किंग से ही निकल जाता है. वहीं पास में एक शनि मंदिर भी है, जहां सांसदों-विधायकों और मंत्रियों की एंट्री पर पाबंदी है. मंदिर समिति का मानना है कि इन सफेदपोशों के चलते ही देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. वैसे दान करना, मंदिर बनाना, पूजा करना गलत नहीं है, मगर सोचने वाली बात यह है कि मंदिरों में किए गए दान से किसका भला होता है? देश के किसान बदहाल हैं, कर्जदार हैं. कई किसान जीवनयापन के लिए मजदूरी करने लगे हैं. कई आत्महत्या कर रहे हैं. कई गरीबों का तो सरकारी अस्पतालों में भी इलाज नहीं हो पाता और कई भूख से भी मर जाते हैं. मगर ये मंदिर बनवाने वाले या दान करने वाले इनके लिए आगे क्यों नहीं आते? ये बड़े लोग मंदिरों में या किसी मंदिर के लिए लाखों-करोड़ों का गुप्तदान कर सकते हैं, मगर भूखों को भोजन देने या गरीब की मदद करने को तैयार नहीं होते! …तो फिर क्या मतलब है ऐसे मंदिरों के निर्माण का? क्या इससे श्रीराम प्रसन्न होंगे?
        मैं स्वयं हिंदू हूं. भगवान में मेरी भी आस्था है. लेकिन आस्था जताने के लिए मंदिर-मंदिर का राग अलापने और दान-धर्म करने का दिखावा करना क्या जरूरी है? क्या ‘जय श्रीराम’ या ‘बम-बम भोले’ का जयकारा और नारा लगाने से ही देश का भला हो जाएगा? ये मंदिर बनाने या दान करने वाले लोग, उन खैराती अस्पतालों या अनाथाश्रमों में बड़े दिल से दान कर पुण्य क्यों नहीं कमाते? जहां रोज भूख या इलाज के अभाव में हजारों लोग दम तोड़ देते हैं! मंदिर बनाने या यहां-वहां चढ़ावा चढ़ाने से बेहतर है कि भूखों-गरीबों की मदद कर दी जाए. उनकी दुआओं से ज्यादा पुण्य लाभ मिलता है. मंदिरों में दिए गए दान का कोई हिसाब नहीं होता. इससे सिर्फ मंदिरों के कर्ताधर्ताओं का ही भला होता है.
        …..तो क्या इसीलिए हमारे देश में 3000 करोड़ रुपए खर्च करके सरदार पटेल की भव्य मूर्ति लगवाई गई? और उसके प्रचार के लिए 1000 करोड़ के विज्ञापन दिए गए? क्या इससे गरीबों और कर्जदार किसानों का भला नहीं किया जा सकता था? क्या अब देश की जनता की आस्था का दोहन करने ही श्रीराम मंदिर के निर्माण का बिगुल फूंका जा रहा है? क्या यहां भी गरीबों और आम लोगों को प्रभु श्रीराम के दर्शन करने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगानी पड़ेंगी? और वीआईपी लोगों के लिए आसानी से पट खोल दिए जाएंगे? अगर ऐसा ही होना है, तो किस काम का होगा ये राम मंदिर? भक्तगण क्षमा करें, लेकिन कड़वा सच यही है.

(मो. 96899 26102)

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