चक्रव्यूह : अकाल-पीड़ित गांव में 20 लाख का ‘जादूगर’…!
गांव में जब महामारी फैल गयी, तो सभी दुकानें ‘लॉकडाउन’ की तरह बंद करवा दी गयीं. सर्वत्र अकाल पड़ गया. लोगों को खाने के लाले पड़ गए. लोग घबरा गए. गांव का मुखिया एक जादूगर था. वह खुद को ‘प्रधानसेवक’ कहलवाता था. लोगों को उससे बहुत उम्मीदें थीं. सभी ने उससे गुहार लगाई, कि जादूगर साहब कुछ करिए! कम-से-कम हमें वही 15-15 लाख रुपए दे दीजिए, जो आपने चुनाव जीतने के पहले देने का आश्वासन दिया था. जादूगर बड़ा चतुर-चालाक था. उसने इस बार भरी ग्रामसभा में ऐलान कर दिया कि 15-15 लाख से क्या होता है? मैं तो तुम्हारे लिए अब 20 लाख करोड़ का इंतजाम कर रहा हूं! लोगों ने भी उस पर यकीन कर लिया कि ‘जादूगर है, तो मुमकिन है…!’
जादूगर ने तुरंत हनुमानजी का रूप धारण किया, तो लोगों को लगा कि अब ये यहां फैली महामारी को खत्म करने संजीवनी बूटी अवश्य ही लाएगा. लेकिन जोश-जोश में वह गलत बूटी का पहाड़ ले आया. बोला कि ये ‘आरोग्य सेतु’ (ऐप) है, इसे डाउनलोड कर लो, तो महामारी से बचे रहोगे. गांव के आधे से ज्यादा लोगों ने इसे नकार दिया. अब खुद जादूगर परेशान है कि इस गलत पहाड़ को कहां रखूं? सो, जादूगर के भक्त लोग… उस पहाड़ को ढोने के लिए मजबूर हो गए हैं. ये वही जादूगर है, जो समय-समय पर लोगों को ‘कोरे जुमले’ बांटता रहा है. कभी गांव को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने, कभी हर वर्ष करोड़ों लोगों को रोजगार देने, कभी विदेशों से काला धन वापस लाने और कभी बुलेट ट्रेन चलाने का झांसा वह पहले ही दे चुका है. फिर भी गांव के गधों ने इस बार उसके 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज को सच मान लिया… और इंतजार करने लगे कि इसमें से कुछ तो उन्हें जरूर मिलेगा!
मुखिया जादूगर ने ऐलान किया कि कल से यहां ‘निर्मला दरबार’ भरेगा, जिसमें हर किसी के हिस्से में कुछ-न-कुछ जरूर आएगा. गांव वालों ने अब तक ‘निर्मल बाबा का दरबार’ देखा था. कई ने इसके बारे में सिर्फ सुना था, लेकिन वे अब ‘निर्मला दरबार’ देखने लगे. अब निर्मला माता रोज ही अपने बोलवचनों से ज्ञान बघार कर बता रही हैं कि ‘कृपा यहां अटकी हुई है’. अगर इस निर्मला देवी की विभिन्न योजनाओं से कृपा बरस गयी, तो ठीक ….अन्यथा गांव के लोगों का भगवान ही मालिक होगा! यह माताजी जादूगर के आदेश पर ही सब को ‘आत्मनिर्भर’ बनने की सीख दे रही हैं. ऐसे में कई चोर-उचक्के-लुटेरे इतने आत्मनिर्भर बन रहे हैं कि खुद ही नोट छापने लगे हैं! ऐसे में सवाल यह भी है कि यदि सब के सब आत्मनिर्भर बन गए, तो इन सफेदपोश जादूगर और माताओं को पूछेगा कौन?
इस जादूगर ने अकाल-पीड़ित गांव में पिछले 55 दिनों में चार बार दर्शन दिए हैं. पहली बार आते ही इसने थालियां-तालियां बजवा दीं. तब अति उत्साही भक्तों ने शंख और नगाड़े तक बजा डाले ….और डार्विन के सिद्धांत को ही पुख्ता किया कि हां, हमारे पूर्वज बंदर थे! तभी तो कई गांवों (देशों) में महामारी की नवजन्मी वैक्सीन का प्रयोग बंदरों पर ही किया जा रहा है. अब महामारी कब खत्म होगी? इसका सही-सही उत्तर ना तो जादूगर को मालूम है, ना निर्मला देवी को, लेकिन उन्होंने मिलकर लस्त-पस्त-त्रस्त गांव वालों को 20 लाख करोड़ का, ‘बिना नाड़े का वह पायजामा’ पहनने दे दिया है, जिसे अपनी जिंदगीनुमा कमर पर संभालने में ही ऊर्जा नष्ट होनी है. मतलब यह कि जो कोई भी इस पायजामे को पहनने लगेगा, वह कब नंगा हो जाएगा, कोई नहीं जानता!
कड़वा सच तो यही है कि जनता के पसीने की कमाई, ….उसकी शिक्षा, सेहत और सुविधाओं के बजाय जब-जब मूर्तियों, हथियारों और तमाशों पर लुटाई जाएगी, तब-तब नतीजे ऐसे ही निकलते रहेंगे! हर रोज सड़क हादसों में पचासों पदयात्री मजदूर ऐसे ही मरते रहेंगे, लेकिन जादूगर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह ट्विटर पर अपनी शोक-संवेदना देकर खानापूर्ति कर लेता है. उसके वे भक्त जो कभी गांव-गांव में दहाड़ते फिरते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं, ….वे अब घर बैठे मिमिया रहे हैं, ‘भाइयों, सच में बुरे दिन चल रहे हैं!’ उधर मीडिया से उम्मीद थी कि वह मूल मुद्दों को उठाकर जादूगर एंड कंपनी को आईना जरूर दिखाएगा, लेकिन वह आज भी हिंदू-मुस्लिम या भारत-पाकिस्तान में ही लगा हुआ है. शायद हरिशंकर परसाई ने ऐसे ही मीडिया के बारे में लिखा था, ‘केंचुए ने हजारों वर्षों की तपस्या के बाद यह उपलब्धि हासिल की, कि उसकी रीढ़ नहीं होती!
(लेखक, नागपुर के चर्चित दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’ के कार्यकारी संपादक एवं ‘व्यंगश्री’ अवार्ड विजेता प्रसिद्ध कवि हैं) (संपर्क : 96899 26102)