कहावत तो यही है, ‘चोर-चोर मौसेरे भाई!’ लेकिन आजकल के सफेदपोशों के सामने चोर-उचक्के, बदमाश-गुंडे या कथित ‘भाई लोग’ बहुत बौने हो गए हैं. इन बड़े-बड़े सफेदपोशों की बराबरी अगर कोई कर सकता है, तो वे हैं ‘अंडरवर्ल्ड डॉन’ …यानि माफिया सरगना! कहते हैं ‘डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है!’ इस पर हमारा मानना है कि जब पकड़ने वाले ही डॉन से दोस्ती कर लेते हैं, उनसे मेलजोल बढ़ाते हैं, उनका सम्मान-सत्कार करते हैं, तो डॉन को पकड़ने की जरूरत ही क्या है? फिर बेचारे ये डॉन लोग ही इन बड़े-बड़े सफेदपोशों को अपना ‘गॉडफादर या माई-बाप’ मानते हैं, तब इनके सामने डॉन की औकात ही क्या होती है? यानि डॉन तो ‘छोटी मछली’ होती है और ये सफेदपोश ‘बड़े मगरमच्छ’!
खैर… इन दिनों अंडरवर्ल्ड डॉन और बड़े नेताओं के संबंधों को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति में खलबली मची हुई है. शिवसेना के बड़बोले नेता-प्रवक्ता संजय राउत ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला से मिलने मुंबई आने की जानकारी देकर ‘चाय की प्याली में तूफान’ लाने की कोशिश की. वैसे संजय राउत के बयान में नया कुछ भी नहीं है. उन्होंने जो होता रहा, उसी को सबके सामने रखा. वे एक पत्रकार-संपादक हैं और कड़वा सच बोलने-लिखने में सिद्धहस्त हैं. वैसे आजकल के 90 फ़ीसदी पत्रकार ना सच बोलते हैं, ना सच लिखते हैं! 100 में से 90 बेईमान… फिर भी मेरा भारत महान! वैसे राउत ने सत्ता के दबाव में अपना बयान वापस भी ले लिया… जय भवानी!
संजय राउत चाहते, तो अन्य ‘दलालनुमा’ पत्रकारों की तरह सच छुपा सकते थे, लेकिन उन्होंने सच का साथ दिया. इससे कांग्रेस के पिछवाड़े मिर्ची लग गई. कई कांग्रेसियों ने उनसे इस बात के सबूत भी मांग लिए कि बताओ, इंदिरा जी कब मिली थीं डॉन करीम लाला से? राउत द्वारा इसका जवाब देने से पहले ही करीम लाला के पोते जहनजीब खान ने न केवल इंदिरा गांधी के साथ, बल्कि बाल ठाकरे और शरद पवार के साथ भी करीम लाला की तस्वीरें उनके दफ्तर में होने की जानकारी मीडिया के जरिए वायरल कर दी. संजय राउत चले थे लाला-गांधी का रिश्ता बताने, मगर उल्टा बाल ठाकरे वाला रिश्ता ही सामने आ गया. इसे कहते हैं, ‘नमाज पढ़ने गए थे, रोजे गले पड़ गए!’
वैसे नेताओं और अंडरवर्ल्ड डॉनों (माफिया सरगनाओं) का नाता बहुत पुराना है. करीम लाला को मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन माना जाता है. फिर हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार और दाऊद इब्राहिम जैसे डॉनों के साथ भी कई राजनेताओं के अच्छे-खासे संपर्क रहे हैं. खुद बाल ठाकरे ने 80 के दशक में मुंबई मनपा में शिवसेना का मेयर बनवाने के लिए तत्कालीन डॉन हाजी मस्तान से मुलाकात की थी. 1995 के चुनाव में मुंडे-महाजन आदि भाजपा नेताओं ने शरद पवार और मुंबई ब्लास्ट के मुख्य आरोपी जल्लाद- डॉन दाऊद इब्राहिम के बीच संबंध होने के आरोप लगाए थे. यह भी जानकारी है कि 1990 के दशक में गठित ‘वोरा कमीशन की रिपोर्ट’ में नेता-माफिया संबंधों को कई नेताओं का नाम लेकर उजागर किया जा चुका है. मगर बवाल से बचने के लिए तत्कालीन अटल सरकार ने यह रिपोर्ट ही दबा दी. इसमें शरद पवार, लालकृष्ण आडवाणी, ओमप्रकाश चौटाला सहित कई दिग्गज राजनेताओं के नाम शामिल थे. मतलब यह कि ‘ना रहा बांस, ना बजी बांसुरी!’
जाहिर है कि ये सारे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं. अब किस पर भरोसा करें? …और किस पर नहीं! यही विचारणीय है. कांग्रेस के जख्मों पर नमक रगड़ते हुए जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सवाल दागा कि क्या कांग्रेस को राउत का दावा मंजूर है? तो बौखलाई कांग्रेस ने पलटवार कर दिया कि फडणवीस को इस मुद्दे पर बोलने का नैतिक अधिकार ही नहीं है. क्योंकि खुद उन्होंने ‘वर्षा’ बंगले में मुख्यमंत्री रहते हुए एक अंडरवर्ल्ड डॉन से मुलाकात की थी. यानि ये सभी नेता अंडरवर्ल्ड के हमाम में नंगे हैं! कोई दूध का धुला हो, तो मुझे अवश्य बताइएगा.